हदों को लांघने का देखो रिवाज चल पड़ा है इसीसे तो दुखों से आज बेहद पाला पड़ा है सागर भी भूल रहे हैं अपनी हदों की सरहदें छूने को आसमान "सुनामी" सा आ खड़ा है हदों से बाहर निकल के नंगा न
जब दिल में प्रेम का अंकुर फूटता है तो यह जहां कितना मनोरम लगता है आसमान "जन्नत" जैसा दिखाई देता है "सागर" प्रेम पतवार का खिवैया लगता है पत्ती पत्ती डाली डाली "कामनाएं" सी लगती हैं&nb
रिश्ते भी एक धाराप्रवाह नदी की तरह होते हैं । नदी पहले बहुत आवेग के साथ बहती है । फिर उसमें प्रगाढ़ता आ जाती है और फिर वह धीरे धीरे मंथर गति से बहने लगती है । फिर अचानक एक मोड़ आ जाने पर जिस तरह
"अरे और लो ना तुमने तो । अभी कुछ खाया ही नही " यह कह कर मुकर्जी गिन्नी ने डाक्टर दीपांकर की प्लेट मे थोड़ा और माछेर झोल डाल दिया । "नही नही मेरे पेट मे अब बिलकुल भी जगह नही है " यह कह कर दीपांकर ने
प्रोफेसर मोहन के घर महफिल जमी थी । १५-२० लेखक कवि और पत्रकार लोग पधारे थे । मोहन ने अपनी ओर से पार्टी दी थी । एक मशहूर पत्रिका मे उनका लेख जो छपा था , और उनके एक मित्र की लिखी बहुचर्चित पुस्तक बाजार म
“ मम्मी जल्दी से यहाँ आओ “ टीना ने जैसे ही अपना चेहरा दर्पण मे देखा तो , घबरा कर एक चीख मार कर अपनी माँ को पास बुलाया । अपनी बेटी टीना की ऐसी घबराई हुई आवाज सुन कर माँ लिली तो एकदम डर ही गई और जल्दी
“ हेलो ! पामेला ! मै रीना बोल रही हूँ “ “ गुडमार्निंग रीना ! कैसी हो ? कहो कैसे याद किया ?” “ जी मै अच्छी हूँ । आपको याद दिलाने के लिए फोन किया है कि बुधवार को किटी पार्टी है । समय - दोपहर के तीन ब
“अरे पढ़ लो, पढ़ लो, परीक्षा सिर पर है । तुम दोनो अभी तक खेले ही जा कहे हो । इतनी शाम हो गई और तुम दोनो ने किताब तक ना खोली । मै कहता हूँ कि जिन्दगी मे बस पढ़ाई ही काम आने वाली है ये फालतू की उछल कूद
उसका असली नाम पता नही क्या था । पर उस इलाके के लोग उसे बकरी बाई के नाम से जानते थे । वो इसलिये कि वो सालों से बकरियाँ चराने का काम करती थी ।उसे अपने इस अजीब से नाम से कोई शिकायत नही थी ।वो इस नाम की
सुनो दिल्ली से फूफाजी का फोन आया था , वे और मुनिया बुआ दोनो अगले हफ्ते यहाँ आ रहे हैं ।उन्हे कोई काम है और वे लोग हमारे घर तीन दिन तक रूकेगे " विकास ने अपनी पत्नी गीता को यह खबर सुनाई " दिल्ली वाले बु
अरे आ गई हमारी बिट्टो ! शादी वाले ,हमारे इस घर मे असली रौनक अब आई है जब घर की बिटिया अपने घरवाले के साथ विराजी है ! , बड़ी बहू जरा जल्दी से आरती की थाली लाकर कुँवर साहब की और बिटिया की आरती तो उतारो
कितनी परवाह करते हो, बताने की जरूरत नहीं तुम्हारी आंखों से ही सब कुछ समझ आ जाता है नींद में भी तुम्हारे लबों पर , मेरा ही नाम रहता है मेरे जरा से कष्ट में , तुम्हारा कलेजा कांप जाता
डायरी सखि, "ये क्या हो रहा है देश में ? 2002 के दंगों का फैसला 20 साल बाद 2022 में आ रहा है । क्या यह महज एक संयोग है या कोई साजिश" ? जिन्होंने "साहेब" को फंसाने की साजिश रची थी , पुलिस उन्हें क्
हम क्यों लिखते हैं ? मैं लिखता हूँ, क्योंकि कहने को बहुत कुछ है । जीवन की लंबी मैराथन दौड़ से हासिल अनुभवों का पिटारा भर गया है मेरे दिल और दिमाग़ में । मन करता है कि अपनी भावनाओं को अपने अनुभवों को ल
पुस्तक का प्रथम समर्पण मेरे आराध्य श्री राम एवं बजरंग बली जी को। द्वितीय समर्पण उन मनीषियों एवं पाठकों को जिनके प्रोत्साहन से हिन्दी भाषा की लौ निरंतर प्रकाशमान हो रही है । मैं आभारी हूँ श्रीमती कमले
उगते सूर्य की किरणों से झिलमिल करती माँ नर्मदा की लहरों पर बहता मृत प्रायः युवा नारी शरीर…..क्या उसमें जीवन शेष था ? …….. सदानंद बाल-ब्रह्मचारी है। सांसारिक बंधनों से मुक्त होते हुए भी वह एक ऐसी परीक
दो वर्ष पश्चात् ———————- जबलपुर का लम्हेटा घाट । सूर्यास्त होने वाला है । लालिमा युक्त सूर्य का प्रतिबिंब नर्मदा के जल पर क्रीड़ा सी कर रहा है ।घाट की सीढ़ियों पर बैठी मानसी के केशों के मध्य से झांक
समय -चक्र का पहिया अपनी धुरी पर समान गति से घूम रहा है, किंतु संसार में जो घट रहा है वो समान नहीं है । जो कल था वो आज नहीं है, जो आज है वो संभवतः कल नहीं होगा । भारतीय लोकतंत्र के वो २१ महीनों के आपा
वृक्षों की परछाई लंबी हो गई हैं । सूर्य का लाल गोला पश्चिम की ओर अस्त होने की प्रक्रिया में तत्पर हो चला है । वृक्षों के साये में धुँधलका घिरने लगा है । नर्मदा के तिलवारा घाट से मीलों दूर, यहाँ से सघन
कुछ महीने अमेरिका में अपनी बड़ी बेटी सुरभि के पास रहने के पश्चात संदीप शर्मा एवं पत्नी सुलेखा इंडिया लौट आए थे ।अमेरिका की भव्यता भी घायल ह्रदय में कोई रंग न भर सकी थी । मन में सुकून न हो तो महकी बगिय