कमलादेवी का भरा पूरा परिवार था ।चार बेटे और एक बेटी सब अपनी अपनी गृहस्थी वाले थे। कमलादेवी ने कोई मोती ही दान किये थे जो ऐसे बच्चे दिए थे भगवान ने ।सबसे बड़ा गिरधारी था जिसके बच्चे भी शादी लायक हो गये
सफलता के हुनर उन्हें आते हैं दुनियादारी को जो जान जाते हैं मतलब की तराजू पे तौल कर नाते रिश्तों को वो निभाते हैं । झूठी मुस्कान सजाते हैं लबों पर कातिल इरादों को जो छुपात
तर्ज : कोई दीवाना कहता है सावन की झमाझम ने आस दिल में जगाई है कलियों की ठिठोली ने प्यास दिल में लगाई है जवां मौसम सुनाता है गजल कोई मोहब्बत की हसीं ऋतु ओढ़कर चादर हरियाली की आई
डायरी सखि, आज बड़ा अच्छा लग रहा है कि पापियों के पाप अब सामने आ रहे हैं । एक कहावत है कि पाप का घड़ा कभी न कभी तो फूटता जरूर है । मगर इस "लोक" और "तंत्र" के कुचक्र में न्याय "अन्याय" का दंश झेलने
मुक्तक रिश्तों को सबने मतलब की तराजू में तोला है जिससे मतलब निकल गया उसे बाय बोला है तब तक वे मेरे साथ थे जब तक इशारे पे चला खुद को अकेला पाया जब भी ये मुंह खोला है
डायरी सखि, आज तो बहुत दिनों के बाद तुमसे मुलाकात हो रही है सखि । इतने विलंब से मिलने का कारण वही है सखि जो मैंने तुम्हें पहले बताया था । मैं अपनी दूसरी पुस्तक "यक्ष प्रश्न" के लिये रचनाओं की प्रू
तुमसे मिलने की तमन्ना दिल में छुपाए बैठे हैं कितने नादान हैं जो ऐसे ख्वाब सजाए बैठे हैं फलक पे बैठी हुई एक परियों की रानी हो तुम बेदर्द जमाने के हाथों अपने पर कटवाए बैठे हैं ख्वाबो
सास , जेठानी और छोटी बहू मैं आज सुबह सुबह अपने मोबाइल में आने वाले मैसेज देख रहा था कि अचानक मेरी नज़र एक मैसेज पर पड़ी । यह मैसेज तो कुछ जाना पहचाना सा लगा । तुरंत ध्यान आया कि यह तो मेरा ही एक
लड़का होना गुनाह हो गया है आजकल जमाना कितना बदल गया है आजकल । एक जमाना था जब लड़की होना गुनाह था । अब जमाने ने पलटी मारी है और अब लडका होना गुनाह हो गया है । एक वाकया सुनाता हूं । लखनऊ की व्
सबसे बड़ा साधक जीवन में अनेक प्रश्न ऐसे आते हैं जिनका उत्तर कहीं नहीं मिलता है । जैसे सबसे बड़ी साधना क्या है ? सबसे बड़ा साधक कौन है ? ऐसे प्रश्नों के उत्तर किताबों में नहीं मिलते हैं , किस्से कहानि
एक दिन हुस्न और इश्क में गजब ठन गई उस दिन की वो मुलाकात आखिरी बन गई हुस्न तो अपने सौंदर्य के नशे में मगरूर था आवेश में दोनों अभिमानी भृकुटियां तन गई इश्क समंदर देखता रहा
आंसुओ का समंदर तो हर कोई देता है "हरि" प्यार का दरिया बन जाओ तो कोई बात बने प्यार कोई इम्तिहान नहीं जिसमें पास फेल हों प्यार के अहसास में डूब जाओ तो कोई बात बने
आजकल की दुनिया मैं ये कैसी विषैली सोच भर गई है लगता है कि कोई "अंतरंगी चुड़ैल" मन में घर कर गई है नफरतों की आंधियां चलने लगी है जोर से हर तरफ उन्मादियों की भीड़ देखो ये कैसा ताण्डव क
मेरे अंगने में बिखरी पड़ी हैं स्वर्ण रश्मियां, तुम्हारी मुस्कानों की इनसे खिला खिला रहता है मेरे दिल का मन उपवन यहां दिन भर बरसता है तुम्हारी इनायतों का सावन जिनमें
सावन की झड़ी कुछ ऐसी लगी है सोई सी प्रीत अब दिल में जगी है उमड़ घुमड़ फिर घिर आये बदरा बिजुरिया से ये कर रहे दिल्लगी है हवा भी बही जाये अपनी ही धुन में ये भी क्या किसी के
सखि , आजकल रात में दूर कहीं दक्षिण दिशा से , पता नहीं राष्ट्र से या महाराष्ट्र से बड़ी मार्मिक आवाज में एक गाना सुनाई देता है ये क्या हुआ कैसे हुआ कब हुआ, क्यों हुआ जब हुआ तब
सरिता की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे । आंसुओं से पूरा तकिया भीग गया था । मुंह से रह रह कर हिलकियां निकल रही थीं । पूरे बदन में कंपकंपी हो रही थी । मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था । उसके हाथ बार बार
इस समुंदर को मुझे दिखाना था इसलिए रेत का घर बना लिया मैंने.... अपने सपनों को जगा लिया मैंने खुशी से बिता लिया दिन मैंने..... परछाई भी न अब ढूंढे मुझे अपने को रेत में छुपा लिया मैंने..... खुशियो
जीवन क्या है , एक रेत का घर है एक लहर आई और बहाकर ले गई सपनों की तरह बनते बिगड़ते हैं घर मगर कोशिशें कभी बेकार नहीं जाती सारी जिंदगी लग जाती है घर बनाने में एक धक्के से भरभराक
इस समुंदर को मुझे दिखाना था इसलिए रेत का घर बना लिया मैंने.... अपने सपनों को जगा लिया मैंने खुशी से बिता लिया दिन मैंने..... परछाई भी न अब ढूंढे मुझे अपने को रेत में छुपा लिया मैंने..... खुशियो