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सामाजिक

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कुछ देर बाद ही ट्रेन अपने गंतव्य से रवाना हुई...। साक्षी और उसके दोनों बच्चे अभी नीचे वाली सीट पर ही बैठे थे...। ट्रेन के चलते ही साक्षी मन ही मन थोड़ी विचलित सी होने लगी.... क्योंकि उस बोगी में अब भी

काश्वी के बड़े होने के सिलसिले में कई मोड़ आए, कभी वो खुद से सवाल करती, तो कभी कोई उससे, कब खुश होती, कब उदास उसे खुद भी नहीं पता चलता, दूसरी लड़कियों से कुछ अलग थी, उसके पापा उससे अक्सर पूछते थे कि उ

कहानी शुरु होती है एक स्कूल के प्रिंसिपल रुम से जहां एक 10 साल की बच्ची को उसी के पेरेंटस के सामने प्रिंसिपल डांट रही है, “मिस्टर कुमार आपकी बेटी इतनी शरारती है, इसकी वजह से एक बच्चे का हाथ टूट गया, इ

पिछले भाग में आपने पढ़ा वीणा अपनी बेटी को स्कूल लेने के लिए आई है और वहाँ वह अपने अतीत में खो जाती है इस स्कूल से उसकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं। बेटी को लेकर वह मार्केट जाती है।  वे दोनों खाना

समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग क

"आज एक नई सुबह है, और इस नई सुबह की नई शुरुआत",खता- खत सिया अपने पुराने टाइपराइटर पर अपनी नई कहानी लिखे जा रही थी। महीने भर की कड़कती धूप के बाद दिल्ली में आज आखिरकार बारिश हुई थी। पूरा शहर उसी तरह

क्या हुआ मैं लड़की हूं तो मेरा हक नही यहा जीने का ?मेरा मन नहीं खुल के हॅसने का?मै नहीं चाहती क्या खेलना ?क्यूँ मना करते है लोग ?क्यू बताते रहते है कि हम लड़की है ,लड़कियों को ज्यादा हँसना नहीं च

6 माह बाद       एक लड़की आधी रात को सड़क पर किसी से छूप कर भाग रही थी । उसे कहां जाना है ? कुछ पता नहीं था ।  बस वह भागे जा रही थी । कुछ देर तक भागने पर जब उसकी सांस फूलने लगी

       श्रद्धा जब से सुनी थी कि अक्षत  किसी से प्यार करता है । तब उसकी आंखों में एक खौफ नजर आने लगी थी । वो खोई - खोई सी रहने लगी थी । जहां भी वह बैठती थी ,  वो वहीं बैठे

                      श्रद्धा एक साधारण परिवार की लड़की है । उसका हमेशा से यह इच्छा थी कि उसे भी उसके घर वाले प्यार करे । जब वो देखती की लोग

👩लड़कियां तितली होती है ,🦋उसे पकड़ कर एक जगह नहीं रख सकते है ,उसे भी जाना होता है एक घर से दूसरे घर ,जैसे तितलीयां एक फूल से दूसरे फूल पर जाती है ,ठीक वैसे ही लड़कियां मायके से ससुराल चली जाती है ,त

ना कोई छेड़े मुझे ना देखे कोई गंदी नजरों से मुझेजाना है अब मुझे परियों की दुनिया मेंजहाँ हर पल  को मैं खुशी के साथ जिऊँ ।नहीं रहना मुझे ऐसी दुनियाँ मेंघिन्न आती है  मुझे ऐसी दुनिया सेजह

गीत :  बेदर्दी इश्क हाय बड़ा तरसाये  दिल को कहीं भी चैन ना आये  सारी रात आंखों में कटती जाये  बेदर्दी इश्क हाय बड़ा तरसाये।। तेरी याद सताए सजन , दिल में उठती है अगन  कह भी ना

मां , मां आप कहां हो ? देखो ये बड़ा ही डरावना राक्षस मुझे लिए जा रहा है।"छोटी सी टिनीया नींद मे ही जोर जोर से रोने लगी। कुमुद ने पास मे सोई अपनी नन्ही सी परी को जब इस तरह से डरते हुए देखा तो उठकर उसे

सुहानी शाम ढल चुकी।ना जाने तुम कब आओगे।"रेडियो पर गीत बज रहा था।सुधा जी अपने कमरे मे बैठी।कमरे के बाहर बगीचे का नजारा ले रही थी।शाम ढल रही थी।काफी दिनों से तेज गर्मी पड़ रही थी।आज सुबह भी मौसम काफी गर

शिखा अपने चार साल के बेटे को सुला रही थी। नमन सोने  नाम ही नही ले रहा था वह बार बार लोरी गाती पर वो थोडी देर पलके बंद करता और फिर से खोल लेता था।आज ही तो मायके से आयी थी ।एक महीना हो गया था अपने

आज नीरा के लिए और दिन से कुछ खास दिन था ।वैसे तो वही सुबह उठना बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना और स्वयं तैयार होकर आफिस जाना रहता था। लेकिन आज आफिस से मेल आयी थी कि उसे सात आठ दिन के लिए मीटिंग के लि

तेरी याद की बदली जब छाती है  रिमझिम सावन साथ ले आती है  भीगने लगता है तपता हुआ मन  ये बेजान जिंदगी थम सी जाती है  वो बीते हुए पल तैरते हैं आंखों में  जलन सी महसूस होती है सांस

वो कदम तेज़ी से उस हरे भरे विशाल मैदान में चल रहे थे| चारों ओर ऊँचे ऊँचे दरख्तों और सुंदर,रंग बिरंगे फूलों से घिरे मैदान में वो क़दम लगातार चले जा रहे थे कि अचानक मैदान खत्म हो गया अब सामने एक खंडर था|

मुक्तक  : वो दौर निकल गया तो ये दौर भी निकल जायेगा बहारों का मौसम फिर से, पलटकर जरूर आयेगा आशाओं के दीयों को कभी बुझने ना देना ऐ दोस्त एक दिन ये आसमां,  तेरे कदमों में सि

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