वो खुशनुमा सी शाम
वो चांद की सरगोशियां
वो झुका झुका सा आसमां
और वो नदी का किनारा
वो तेरा उड़ता आंचल
गालों पे पड़ते तेरे डिंपल
वो लरजती सी गोरी बांहें
छन छन करती तेरी पायल
वो तेरी बिंदिया का सितारा
वो तेरी लौंग का लश्कारा
जुल्फों से टपकती नन्ही सी बूंदें
तेरी आंखों में डूबा ये जहां सारा
वो गुलाब से होठों की छुअन
वो कदली सा चिकना बदन
वो सांसों से छलकती तड़पन
वो जीवन सा तेरा आलिंगन
वो तेरा दबे पांव आना
चुपके से आंखों पर हाथ रखना
फिर उन्मुक्त हंसी हंसना
और बात बात पर खिलखिलाना
आईने की तरह दिखता चेहरा
तेरी आंखों की वो गुस्ताखियां
वो कातिल सी एक मुस्कान
मुझे सब कुछ याद है, मेरी जान
तू नहीं है आज , पर तेरी याद तो है
लबों पे तेरे आने की एक फरियाद तो है
मेरे दिल की पुकार ना सुन, कोई बात नहीं
तुझे पुकारता वो नदी का किनारा तो है
हरिशंकर गोयल "हरि"
21.6.22