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सामाजिक

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    सौम्या उसको (अनिका को ) चिढ़ाते हुए कहती है — अच्छा - अच्छा ठीक है । जाओ भागो यहां से जल्दी ।       अनिका मुंह बनाकर — हां  - हां जा रही हूं ।     

        अनिका — अ ... ह ... क्या शशांक तुमसेलड़ाई किया है कभी ... बताओं ? उसने तो कभी ऊंचीआवाज में बात ही नहीं की होगी तुमसे । जबकि वो तुमसे   प्यार करता है , तो उसे भी त

      मैं बहुत खुश नसीब हूँ कि मेरे भाई - भाभी  मुझसे इतना प्यार करते है । वो मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकते हैं ।          अनिका — सौम्या को रोते हु

     चलों कोई नहीं ... अब ऊपर थोड़ा फुलनदेवी से बात करने के लिए जा रही हूँ भाभी । आप चिंता मत करिए ।मैं उसे समझा दूंगी और   ये कहते अनिका मुस्कुराते हुए ऊपर चली गई सौम्या के क

          सौम्या को मैं जब भी चिढ़ाती थी तो वो उल्टा मुझे ही खरी - खोटी सुना देती थी ।फिर प्रगति जी अनिका से पूछी की आप लोग वहाँ गए थे तो फोटो - वोटो नहीं लिये थे क्या ?&

          ( मिस्टर कौशिक - सौम्या को समझाते है , उसको इतना परेशान देखकर ) -- बेटा .... हर लड़की के घर वाले चाहते है कि उनकी बेटी अपने ससुराल में खुश रहें । उसे वो सरी खुश

सौम्या को अभी खामोश रहना ही अच्छा लगा , तो वो बस मुस्कुरा रही थी और वो भी दिखावे के लिए ।कुछ देर बैठने के बाद सूर्यवंशी परिवार यह कह कर चली गई की हम घर जाकर इस विषय पर सोच - विचार कर के ... 2 दिन में

जब शशांक ने सौम्या से बोला कि plz .... मेरी भी सुन लो ना एक बार सौम्या ... , आप क्यों इतना परेशान हो रही हो । भैया है ना .... बात कर लेंगे वह मेरे मम्मी पापा से दहेज के मामले में ।     

प्रगति जी के कहने पर ना चाहते हुए भी सौम्या ... शशांक को अपने साथ अपने रूम में ले जाती है . . . सौम्या को इस समय शशांक पर बहुत गुस्सा आ रहा था ; वो बस यही सोच रही थी ,कि ये इतने पढ़ें लिखे होकर भी दहे

सौम्या मन में अनिका से बात करते हुए कहती है - तुम अब से इसलिए शशांक नाम नहीं लोगी क्योंकि अब मेरी शादी होने वाली है  , वो भी किसी और से ... समझी ,तो Plz अब नाम मत लेना शशांक का , किसी के सामने ।

सौम्या को देखते ही लड़का एकदम से चौक गया , तब उसके हाथ से चाय का कप गिरते - गिरते बचा था , जब से सौम्या नीचे आयी थी , तभी से वो एकटक से उसे ही देखे जा रहा था । वो इस समय यह भूल गया था की अभी उसके साथ

प्रगति जी सौम्या से कहती हैं - - -           प्रगति जी - अब चलों जल्दी से नीचे ,,, वोलोग तुम्हारा वेट कर रहे है और तुम्हारे होने वाले वो ..... भी ...☺️ प्रगती जी ने तुम्ह

काश्‍वी के करियर का ये मोड़ उसके परिवार को नए उत्‍साह से भर गया। घर लौटते हुए सब इसी के बात करते रहे। पापा ने काश्वी से पूछा “एक महीने की वर्कशॉप, कब से जाना है?” “दो दिन बाद रजिस्ट्रेशन कराने जाना है

कल रात नींद मुझे देर तक नहीं आई लेटी हुई  बिस्तर पर और सोच रही थी अपने आप से सवाल कुछ पूछ रही थी जांत पांत ऊंच-नीच आख़िर क्यों बनाई शक्ल एक है, रुप एक है, रंग भी एक है, यहां तक की रगों में ब

छुआछूत जो करते है,उनको दुनिया का ज्ञान नहीं।जो छुआछूत को मिटा सके, दुनिया का कोई विज्ञान नहीं।तन मिट्टी का बना हमारा,जब मिट्टी में मिल जायेगा।उस मिट्टी से उपजा अन्न जन,उसको क्या नहीं खायेगा।।उसी मिट्ट

 निष्‍कर्ष की बात ने काश्‍वी की सारी खुशी को धुंधला कर दिया। थोड़ी देर पहले तक वो खुद पर इतरा रही थी लेकिन अब उसे खुद पर ही शक होने लगा। धीरे – धीरे निराशा उसे घेरने लगी और वो चुपचाप एक कोने में जाकर

काश्वी ने अपने पापा को काम्पिटीशन के बारे में बताया, वो इतनी खुश थी कि उसके पापा ने झट से हां कर दी, रात भर पूरा परिवार उसकी तस्वीरों में से 10 ऐसी तस्वीरें ढूंढता रहा जो उसके टेलेंट को सही - सही दिखा

कुछ देर बाद ही ट्रेन अपने गंतव्य से रवाना हुई...। साक्षी और उसके दोनों बच्चे अभी नीचे वाली सीट पर ही बैठे थे...। ट्रेन के चलते ही साक्षी मन ही मन थोड़ी विचलित सी होने लगी.... क्योंकि उस बोगी में अब भी

काश्वी के बड़े होने के सिलसिले में कई मोड़ आए, कभी वो खुद से सवाल करती, तो कभी कोई उससे, कब खुश होती, कब उदास उसे खुद भी नहीं पता चलता, दूसरी लड़कियों से कुछ अलग थी, उसके पापा उससे अक्सर पूछते थे कि उ

कहानी शुरु होती है एक स्कूल के प्रिंसिपल रुम से जहां एक 10 साल की बच्ची को उसी के पेरेंटस के सामने प्रिंसिपल डांट रही है, “मिस्टर कुमार आपकी बेटी इतनी शरारती है, इसकी वजह से एक बच्चे का हाथ टूट गया, इ

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