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यशस्विनी ने मीरा को आगे समझते हुए कहा…. और हमें अपने कानून एवं
व्यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। हमारा देश और हमारा समाज अभी इतना असुरक्षित नहीं हुआ
है…. थोड़े खतरे तो अवश्य हैं लेकिन बाकी देशों की तुलना में कम ही हैं मीरा…..।
" समझ गई दीदी, इसीलिए मेरी छठी इंद्रिय उस दिन मैदान पर मुझसे
हमले के ठीक एक सेकंड पहले ही जाग गई थी और मैंने तत्काल झुक कर उस बड़े हमले से अपने
को बचा लिया था….."
" हां पर सावधानी बरतते रहनी चाहिए मीरा।…. वैसे अपने अगले
साप्ताहिक आलेख में मैं सभी बच्चों के माता-पिता से यही अपील करने जा रही हूं कि अपने
घर के लड़कों को घर में ही महिलाओं और लड़कियों का सम्मान करना सिखाएंगे तो ये बाहर
जाकर ऐसी कायराना और शर्मनाक हरकत नहीं करेंगे... और मीरा सभी लड़के भी ऐसे नहीं होते...
अधिकांश अच्छे हैं... कुछ ही लोगों ने पूरे माहौल को बिगाड़ रखा है।"
यशस्विनी की बातों से मीरा को अत्यंत सहायता मिली और नैतिक रूप से
उसका मनोबल अत्यंत उच्च हुआ।उसे बहुत धन्यवाद देते हुए मीरा चली गई लेकिन जाने से पहले
उसने यशस्वी से यह आश्वासन लिया कि जब भी उसे आवश्यकता होगी, वह सहायता अवश्य देंगी,
इस पर यशस्विनी ने हंसते हुए कहा-अरे हां, क्यों नहीं? तुम मेरी शिष्या जो हो।
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मीरा जिन दंशों से बच गई, उन दंशो की पीड़ा को नेहा ने अपनी देह और अपनी अंतरात्मा तक में कहीं गहरे तक महसूस किया है। यशस्विनी नेहा की भी प्रेरणा स्रोत है।यशस्विनी की प्रेरणा से नेहा शहर के एक अन्य संस्थान में जाकर मार्शल आर्ट सीखने लगी। उसे अपनी व्यस्तता के कारण सीधे तौर पर यशस्विनी के योग शिविर में शामिल होने का अवसर नहीं मिल पाया था। यशस्विनी बहुत जल्दी पारंगत हो गई।
कुछ ही दिनों बाद संयोग ऐसा आया कि नेहा के लिए सीखे गए ज्ञान के प्रायोगिक
परीक्षण का मौका भी आ गया।एक दिन नेहा फिर रात को ठीक 8:30 बजे उस उपनगरीय ट्रेन से
उसी रेलवे स्टेशन पर उतरी।संयोग यह कि वही अपराधी फिर इस बार घात लगाए थे और उन्होंने
फिर से नेहा को टारगेट किया।रेलवे स्टेशन से मुख्य शहर को जोड़ने वाले रास्ते के अचानक
सुनसान हो जाने पर पैदल जा रही नेहा को वही तीनों अपराधी फिर झुरमुट झाड़ियों में खींच
ले गए। नेहा को ध्यान से देखने पर उनके मुंह से निकला- वाह! फिर से तुम ही।मजा आ गया।
नेहा थोड़े संघर्ष के
बाद ही उनकी पकड़ से बाहर निकल आई। उन्होंने मिलकर नेहा पर हमला किया, लेकिन मार्शल
आर्ट सीख चुकी नेहा ने उनके छक्के छुड़ा दिए।उसने तीन से चार मिनटों में तीनों अपराधियों
के होश ठिकाने लगा दिए। वे जमीन पर बेसुध हो गए।
नेहा इन
अपराधियों का अंग भंग कर देना चाहती थी लेकिन सभी ने उसे रोका। उन अपराधियों ने जैसे
ही उठने की कोशिश की, अकेली नेहा ने उन तीनों पर फिर से ताबड़तोड़ हमले किए। नेहा का
प्रतिशोध एक अलग ढंग से पूरा हो रहा था। नेहा द्वारा सूचना देने पर इंस्पेक्टर रागिनी
भी दल-बल के साथ वहां पहुंच चुकी थी।घटनास्थल का दृश्य और घायल बदमाशों को तड़पते देखकर
वह सारा माजरा समझ गई।उसने कहा- नेहा! बाकी सब तो ठीक है लेकिन तुमने कानून को हाथ
में क्यों लिया?
नेहा- अगर मैं इनकी पिटाई
नहीं करती तो ये लोग फिर से वही ज़ुर्म दोहराने वाले थे। इस बार तो सारे सबूत मेरे पास
हैं। मेरे कपड़ों में लगे हुए हिडन कैमरे में।
इंस्पेक्टर रागिनी- फिर भी कानून को हाथ में नहीं लेना चाहिए।नेहा
इसका भविष्य में ध्यान रखना।
नेहा ने संयत भाव से कहा-
इंस्पेक्टर साहिबा।इनकी जान सलामत है।यहां केवल पिटाई हुई है। कई बार ऐसे मामले में
तो स्वयं पुलिस अपराधियों का एनकाउंटर कर चुकी है………..
इंस्पेक्टर रागिनी उन तीनों अपराधियों को जेल भेजने से पहले अस्पताल
भेजना चाहती थी,इसलिए उसने पहले एंबुलेंस को फोन किया।
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नेहा के साहस की अत्यंत प्रशंसा हुई।अखबार उसकी
बहादुरी के किस्सों से रंग गए। टीवी चैनलों में इस समाचार को दिखाने की होड़ लग गई
। लाइव डिबेटें आयोजित की गईं जिसमें प्रतिभागियों ने जोर देकर कहा कि नेहा का तरीका
कानून सम्मत ना होने पर भी अनुचित नहीं है क्योंकि इसका और कोई रास्ता नहीं है।तीनों
अपराधियों को अस्पताल से जल्द छुट्टी मिल गई और पुलिस ने अपनी हिरासत में लेकर तगड़ा
केस तैयार किया। वास्तव में वे अपराधी थे, लेकिन अदालत से जुर्म साबित होने तक उन्हें
आरोपी ही लिखा पढ़ा जा रहा है।
फास्ट
ट्रायल कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई जल्दी होने लगी। नेहा के पास पर्याप्त सबूत भी थे।
अपराधियों के परिजनों को इस बात का डर था कि पुलिस अदालत लाने ले जाने के क्रम में
कहीं उनका एनकाउंटर न कर दे। अपराधियों के परिजन हाई कोर्ट तक भी चले गए ताकि वे पुलिस
को इन तीनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बारे में पर्याप्त निर्देश दे सकें। कोर्ट
ने इस मामले मैं पुलिस को कोई निर्देश देने से साफ इनकार किया हां इतना अवश्य कहा कि
हिरासत में अपराधियों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए और आरोपियों के परिजनों की आशंका
को देखते हुए उनकी सुरक्षा बढ़ा दी जाए।
अदालत में पेशी के दौरान स्थिति
अब उल्टी हो गई थी। पहली वारदात के समय इन तीनों अपराधियों को चेहरे पर कुटिल मुस्कान
रहती थी अब इसका स्थान ग्लानि,भय और आतंक ने ले लिया था।उधर नेहा जो डरी सहमी रहती
थी, अब वह आत्मविश्वास से युक्त थी।
एक दिन अदालत से वापसी के समय इन तीनों अपराधियों
में से एक की मां ने नेहा के पैर पकड़ लिए।
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कहा- बेटी! मेरे बच्चे को माफ कर दो ,उससे गलती हो गई। उसे सुधार
का एक मौका दो।
नेहा ने उसे अपने पैरों से उठाते हुए कहा-
अरे आप यह क्या कर रही हैं? आप मुझसे बड़ी हैं।
- मेरे बेटे की जिंदगी अब आपके हाथ में है।
- यह आपने पहले सोचा होता। अगर ऐसे ही विनम्रता और संस्कार आपने
उसे पहले सिखाए होते तो यह नौबत नहीं आती।
- बेटी, मुझे यह पता नहीं था कि वह बिगड़ रहा है।
- बच्चा बिगड़ रहा है कि नहीं यह पता नहीं चलता। पता लगाना होता
है।उसकी हरकतों पर नजर रखनी होती है। जब मुझ पर हुई घटना के बाद पहला मुकदमा चल रहा
था तो आप ही ने उसे सपोर्ट किया था और उसके हौसले तब कितने बुलंद थे।
- मुझे माफ कर दे बेटी ,लेकिन उसे रिहा करवा दो।
- वाह गलती करने वाले को दंड के बदले आप उसकी पैरवी कर रही हैं।
यह आपने तब नहीं सोचा,जब वह सड़कों पर आवारागर्दी करता था। आपने उससे तब क्यों नहीं
पूछा जब वह घर से देर रात तक बाहर रहता होगा।
- उसे सुधरने का एक मौका तो दो।
- क्या दलील है आपकी?उसे सुधरने का एक मौका दें या फिर से उसे ऐसा
अपराध दोहराने की छूट दें? इस बात की क्या गारंटी है कि अगर वह छूट गया तो ऐसी गलतियां
फिर नहीं दोहराएगा। दो बार तो उसने ऐसा दुस्साहस करने की कोशिश की ही है।
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मामला अधिक लंबा नहीं चला। फैसला नेहा के पक्ष
में आया। अपराधियों को 15-15 वर्षों के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। नेहा और कड़ा
दंड चाहती थी लेकिन उसने सोचा कि अभी एक शुरुआत तो हुई है। अपराधियों को दंड मिलने
से नेहा के परिवार वाले भी खुश थे।ड्राइंग रूम में बैठकर सब लोग इस मुकदमे में आने
वाली कठिनाइयों और लोगों से मिलने वाले समर्थन की चर्चा कर रहे थे।
नेहा ने कहा- अब से अपराधियों को मुँह छिपाने की जरूरत पड़ेगी।उन
लोगों को नहीं,जिन पर किसी तरह का अत्याचार होता है। यह मुकदमा एक मिसाल है।
पापा ने कहा -ठीक कहते हैं बेटा, अब समाज बदल रहा है।
मम्मी ने किचन से चाय की ट्रे लाते हुए कहा-
सचमुच ज़माना बदल रहा है। कुछ ही सालों पहले तक यह स्थिति थी कि ऐसी
घटना के शिकार लड़की महीनों तक एक कमरे में बंद रहती थी और कभी-कभी तो सदमे के कारण
वह अपने जीवन का अंत करने के बारे में भी सोचने लगती थी।
नेहा ने कहा- मम्मी अब यह सब बीते समय की बात हो गई है। अब लड़कियां
स्वयं पर होने वाले अत्याचार को लेकर मुखर नहीं होंगी तो ऐसे अपराधी तत्व उन्हें और
दबाएंगे।लड़कियां भी अब अपने सपनों को पूरा करने के लिए घर की चहारदीवारी से बाहर निकलने
लगी हैं।
पापा- ठीक कहती हो बेटा।अब अपनी माँ का ही उदाहरण लो। शादी के बाद
यह घर की चहारदीवारी तक ही सिमट कर रह गईं। मां और बाबूजी का कड़ा अनुशासन और घर की
आवश्यकता के नाम पर उसकी सारी प्रतिभा धरी की धरी रह गई।
नेहा- मैं जानती हूं पापा,मां को तो कई मामलों में अपने विचार तक
व्यक्त करने की छूट नहीं थी। पति परमेश्वर और चरणों की दासी वाली संकल्पना को अब बदल
जाना चाहिए।
मम्मी:- ऐसा नहीं कहते नेहा।बड़ों का कड़ा नियंत्रण और अनुशासन अगर
था तो वह संस्कारों और परिवार की एकता बनाए रखने को लेकर होता था। और फिर तुम्हारे
पापा ने मुझे हमेशा बराबरी का दर्जा दिया।
पापा ने कहा- समय के अनुसार बदलाव होना चाहिए और अगर पुरुष भी किचन
में महिलाओं की मदद करने लगे तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा।आखिर यह किसी नियम में
तो नहीं लिखा है कि स्त्रियों की तबीयत ठीक ना हो तब भी वे सारे घरेलू कार्य करती रहें।
नेहा ने कहा- मम्मी, पापा को तो अपने ऑफिस में सीएल और और अन्य छुट्टियां
मिलती थीं,लेकिन आपने कभी कोई छुट्टी अपने लिए ली है? कभी नहीं।
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा- वे जब चाहें,तब ले लें।ये तो
365×24 घंटे वर्किंग हैं, पर अब यह स्थिति बदलनी चाहिए। हमारे घर ही नहीं बल्कि सभी
जगह यह धारणा समाप्त होनी चाहिए कि कुछ कार्य केवल महिलाओं के लिए ही नियत हैं।
(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना
पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से
अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)
( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों,
मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास
न करें। वर्णित योग ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यास मार्शल आर्ट आदि
की सटीकता का दावा नहीं है लेखक ने अपने अध्ययन सामान्य ज्ञान तथा सामान्य अनुभवों
के आधार पर उनकी साहित्यिक प्रस्तुति की है)
योगेंद्र