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आज के प्रश्नोत्तर सत्र में जिस तरह यशस्विनी
ने विभिन्न चक्रों के जागरण से संबंधित जानकारी दी,वह रोहित के लिए भी एकदम नई थी।
अपने कक्ष में आकर बहुत देर तक रोहित का ध्यान चक्र और उनकी गतिविधियों में लगा रहा,लेकिन
नाड़ियों के संबंध में जब उसकी जिज्ञासा दूर नहीं हुई तो उसने यशस्विनी से चर्चा की
सोची।
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-यशस्विनी, इतनी देर रात
को फोन करने के लिए क्षमा चाहता हूं। क्या मैं आपसे कुछ बातें पूछ सकता हूं?
-हां हां क्यों नहीं? अवश्य पूछिए।
- आप आज जब चक्र के बारे में साधकों को जानकारी दे रही थीं तो नाड़ी
के संबंध में कुछ बातें मेरे मन में सही तरह से बैठ नहीं पाईं।
-ओह, तो बताइए क्या जानना
चाहते हैं आप?
-यही कि आपने कहा इड़ा, पिंगला
और सुषुम्ना नाड़ी ….. तो आप मुझे इन नाड़ियों के बारे में जानकारी दीजिए…
-देखिए रोहित जी मैं समझ
रही हूं कि आपको यह जानकारी इसलिए चाहिए क्योंकि पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनाने के लिए
आपको गहराई में डूबना होगा... तब जाकर आप साधकों की काम की चीज डिस्प्ले कर सकते हैं
...तो सुनिए..
…. हमारे शरीर में अनेक नाड़ियाँ होती हैं….
- इन नाड़ियों को क्या हम धमनी और शिराएं कह सकते हैं?
- नहीं इन्हें धमनी या नस नहीं कहा जा सकता है यह शरीर में उस माध्यम
या रास्ते का कार्य करती हैं जिनसे प्राण शक्ति का संचार होता है वास्तव में यह नाड़ियाँ
भौतिक रूप से दिखाई नहीं देती है लेकिन आप इनकी गति को इनके स्पंदन को महसूस कर सकते
हैं।
- यह तो अपने अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी थी लेकिन हम इन्हें पहचानेंगे
कैसे और महसूस कैसे करेंगे?
- देखिए रोहित, शरीर की हजारों गाड़ियों में से तीन नाड़ियां ही
मुख्य होती है जिनके बारे में आपने भी प्रश्न पूछा है इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना।
- तो इन तीनों की उपस्थिति शरीर में कहां रहती है?
- इड़ा नाड़ी को चंद्र नाड़ी
भी कहते हैं।यह शीतलता और चित्त को अंतर्मुखी करने वाली है।इसका उद्गम मूलाधार चक्र
माना जाता है और मेरुदंड के निचले भाग के बाईं ओर स्थित होती है। वही पिंगला नाड़ी
सूर्य नाड़ी है जो धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। यह शरीर में जोश और चेतना का संचार
कर व्यक्ति को बहिर्मुखी बनाती है। यह मूलाधार अर्थात मेरुदंड के निचले हिस्से के दाहिने
भाग में होती है।
- तो हमने योग के कई वर्णनों में सुषुम्ना के बारे में सुना है यशस्विनी
जी। इस सुषुम्ना की उपस्थिति कहां होती है?
- देखिए रोहित यही सुषुम्ना नाड़ी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी के
माध्यम से शरीर में ऊर्जा का प्रमुख रूप से परिवहन होता है यह मूलाधार से प्रारंभ होकर
सिर के सर्वोच्च स्थान सहस्रार तक आती है इसीलिए यह नाड़ी सभी चक्रों से होकर गुजरती
है और अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- क्या सहस्रार नाड़ी को जाग्रत करना अत्यंत कठिन है?
- रोहित कठिन तो कुछ भी नहीं लेकिन हां कड़ी साधना और अभ्यास तो
अवश्य चाहिए ….आप इड़ा को इस तरह पहचानेंगे जब हमारी बाईं नाक के छिद्र से सांस आती
है और….. जब हमारी दाएं ओर के नासिका छिद्र से सांस आती है तब पिंगला नाड़ी चल रही
होती है ….अगर यह दोनों नाड़ियाँ संतुलित हैं, तभी हमारा शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ माना
जाता है।प्रायः इन दोनों नाड़ियों की गति में ही हम जीवन गुजार देते हैं और मनुष्यों
की सुषुम्ना नाड़ी प्रायः निष्क्रिय ही रह जाती है। अगर यह सक्रिय हो जाए तो मनुष्य
आध्यात्मिक रूप से सफल होने लगता है।
- यशस्विनी जी,तो क्या यह सुषुम्ना नाड़ी भी मूलाधार चक्र से निकलती
है?
- हां रोहित, यह तीनों नाड़ियाँ यहां से निकलती हैं और आज्ञा चक्र
में जाकर इस तरह मिल जाती हैं जैसे त्रिवेणी संगम होता है।पर यह उच्च कोटि की साधना
से ही संभव है।
-हम इस बात का पता कैसे
लगा लें कि हमारी सुषुम्ना नाड़ी चल रही है?
- अरे रोहित जी जिस तरह आपने इड़ा और पिंगला नाड़ियों के चलने को
क्रमशः बाएं और दाएं श्वांस के चलने से पहचाना था,वैसे ही अगर श्वांस दोनों छिद्रों
से आ रही है तो सुषुम्ना नाड़ी चल रही है, यह आप जान लीजिए।
- यशस्विनी जी,यहीं कहीं मैंने कुंडलिनी के बारे में भी सुना था।
- रोहित आपने ठीक सुना था …. कुंडलिनी या शरीर की सर्वोच्च संवेदना
शक्ति जो कुंडली का रूप लिए होती है वह भी इसी मेरुदंड के रास्ते चलती है। इड़ा और पिंगला
दोनों नाड़ियाँ इसी तरह शरीर के ऊपरी चक्रों तक सर्पिलाकार गतिमान होती हैं और इनमें
संतुलन स्थापित करने का कार्य करती है सीधी रेखा दंड सदृश सुषुम्ना नाड़ी जो दोनों
नाड़ियों की सर्पिल कुंडलियों में संतुलन साधती हुई सहस्रार तक पहुंचती है।
- अब मुझे समझ में आ रहा है यशस्विनी जी कि कुंडलिनी शक्ति मूलाधार
चक्र में साधारणतया सुषुप्त अवस्था में होती है और यह साधना के माध्यम से सक्रिय होकर
सहस्रार चक्र तक पहुंचती है। न जाने यशस्विनी जी वह दिन कब आएगा जब मैं कुंडलिनी जागरण
में समर्थ हो जाऊंगा और अपने प्राणों के स्पंदन को सहस्रार में महसूस करूंगा जहां चारों
और आनंद होगा…. शांति होगी दिव्यता होगी .बाकी बिहारी जी होंगे और उनका दिव्य वृंदावन
लोक होगा….. जहां कोई भेदभाव नहीं होगा मैं पूरी तरह से उस आनंदलोक में बांके बिहारी
जी से तादात्म्य की स्थिति में रहूंगा जहां के लिए आप ही कहा करती हैं ना कि व्यक्ति
को खुद की सुध बुध नहीं रहती….आह! कितना अद्भुत होगा वह लोक?
- आप सच कहते हैं रोहित जी उस अवस्था तक तो मैं भी नहीं पहुंच पाई
हूं….. वैसे इसके लिए भी बांके बिहारी जी की कृपा अवश्य चाहिए….. वहां पहुंचना और उस
महानंद में डूबना मेरा भी सपना है ….हां मुझे यह तो ज्ञात है कि योग, ध्यान और प्राणायाम
के निरंतर अभ्यास से इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना के संगम से कुंडलिनी शक्ति का जागरण होता
है हमारे प्राण अधोगति के बदले ऊर्ध्व गति को प्राप्त होते हैं।
- क्या आप मेरा मार्गदर्शन करेंगी यशस्विनी जी?...... क्योंकि कुंडलिनी
शक्ति का जागरण भी शरीर में एक झंझावात की तरह होता है... ऐसा मैंने आकलन किया है..
श्वास की गति पर नियंत्रण और ओम का जाप करते-करते अनायास अगर मैं उस अवस्था पर पहुंच
गया तो मुझे संभालेगा कौन?
- अगर मैं समर्थ होंउंगी
तो अवश्य मदद करूंगी रोहित…. आप ठीक कहते हैं
योग और प्राणायाम के अभ्यास से इन चक्रों को ऊर्जा और उत्तेजना मिलेगी यह सक्रिय
होंगे और कुंडलिनी जागरण अर्थात इड़ा, पिंगला नाड़ियां सुषुम्ना नाड़ी के आधार संतुलन
से आज्ञा चक्र में भेंट करेंगी तो एक उच्च स्तरीय आध्यात्मिक भाव भूमि में हम पहुंच
जाएंगे।
-यशस्विनी क्या यह वह क्षेत्र है जहां रीढ़ की हड्डी का ऊपरी भाग
होता है और मस्तिष्क का क्षेत्र प्रारंभ होता है?
- हां रोहित यहीं आकर एक दिव्य प्रकाश की अनुभूति होती है।
- समझ गया यशस्विनी, इसीलिए इस सुषुम्ना नाड़ी को पुल भी कहा गया
है जो एक सर्किल चक्र का निर्माण करती हुई रीड की हड्डी के निचले सिरे से होकर ऊपरी
सिरे तक पहुंचती हुई मस्तिष्क के सिरे से जुड़ती है। सारे चक्र भी सुषुम्ना में ही
विद्यमान होते हैं और श्वास प्रश्वास की गति ,ध्यान व प्राणायाम के माध्यम से यह सुषुम्ना
नाड़ी सक्रिय होती है।यही योग का मार्ग है।
- अब रात बहुत हो गई है
योगाचार्य जी, आप सो जाइए…. अब मैं सोच रही हूं कि अगली कक्षा और योग सत्र का संचालन
आप ही करें…. ऐसा कहती हुई यशस्विनी खिलखिला कर हंस पड़ी।
घबराते हुए रोहित ने कहा-अरे..
अरे.. ये क्या कह रही हैं यशस्विनी जी? यह मेरे वश की बात नहीं है... कम से कम अभी
तो बिल्कुल नहीं….
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रोहित से फोन वार्ता
समाप्त होने के बाद यशस्विनी सोने के लिए बिस्तर पर आ गई लेकिन उसका ध्यान बार-बार
रोहित से हुए इस विस्तृत संवाद पर अटका रहा…. तो सहस्रार चक्र पर जब मैं पहुंच जाऊंगी
तो वहां मेरे आराध्य श्री कृष्ण होंगे….. कभी-कभी मुझे लगता कि क्या मुझे वहां तक पहुंचने
में रोहित की सहायता लेनी पड़ेगी…. वह मेरी योग साधनाओं में भी अपनी पवित्रता और एक
संवेदनशील और भावुक सच्चे आत्मा का स्वामी होने के कारण सहायता दे सकता है …..
उधर वही हाल रोहित
का था…. क्या योग साधना के मार्ग में यशस्विनी जी से जो सहायता मैं ले रहा हूं…. कहीं
मुझे उनसे आसक्ति न हो जाए और यह आसक्ति कहीं प्रेम में न बदल जाए और कहीं हम दोनों
ईश्वरीय प्रेम को भूल कर एक दूसरे के साथ सांसारिक प्रेम के बंधन में तो नहीं बंध जाएंगे?
रोहित बिस्तर पर लेटे-लेटे देर तक अपने फोन में विभिन्न अवसरों पर खींची गई यशस्विनी
की फोटो देखने लगे...ये कैसा गहरा आकर्षण है यशस्विनी जी के मुख मंडल पर... कहीं वे
भी ईश्वर का अंश तो नहीं? कितनी पवित्र हैं वे... जैसे पूर्णिमा का उजला चंद्र... जिसमें
कोई दाग धब्बे नहीं…...।
ऐसा सोचते सोचते रोहित
की नींद लग गई ….जैसे नींद लगी है और वह जाग भी रहा है... जैसे अचानक वह विस्तृत नीले
आकाश में चंद्र और तारों के बीच पहुंच गया है...वह एक घोड़े पर सवार है और दूर ब्रहमांड
के एक कोने में यशस्विनी खड़ी है बिल्कुल राजकुमारियों की सी वेशभूषा धारण की हुई और
जैसे अपने से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर आकाशगंगा के एक कोने में खड़ी यशस्विनी तक पहुंचने
के लिए अब उसे अपने घोड़े को प्रकाश से भी अधिक गति से ले जाना होगा ……
….. और यशस्विनी के पास पहुंचकर जैसे रोहित उससे कह रहा हो... क्या
तुम मेरे साथ इस ब्रह्मांड के अनेक अनदेखे जगहों की यात्रा पर चलोगी?.......
(क्रमशः)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय