योग साधना के ढीले ढाले वस्त्र पहनकर यशस्विनी
साधना के हाल में पहुंची। यह एक बड़ा खुला स्थान था जहां एक साथ लगभग 100 लोग ध्यान
और योग का अभ्यास कर सकते थे। मंच पर पब्लिक एड्रेस सिस्टम लगा हुआ था।ऊपर ग्रीन ट्रांसपेरेंट
शीट लगी हुई थी जिससे बारिश की स्थिति में भी साधकों के योगाभ्यास पर कोई असर न पड़े।
मंच को इस तरह साइड मूविंग विंगों के साथ बनाया गया था कि अगर प्रोजेक्टर चालू कर सफेद
पर्दे पर कोई दृश्य दिखाना पड़े या पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन की आवश्यकता हो तो तत्काल
ऐसा किया जा सके। तत्काल मंच पर काम लायक अंधेरा भी हो जाए।
इस बैच में 50 साधक थे और सब नियत समय प्रातः
6:30 बजे अपना अपना आसन ग्रहण कर चुके थे।यशस्विनी को देखते ही उन लोगों ने राधे राधे
कह कर उनका अभिवादन किया। मंच पर योगगुरु के आसन पर यशस्विनी विराजमान हुई। आज योग
शिविर का पहला दिन था इसीलिए यशस्विनी ने सभी से उनका परिचय प्राप्त किया।सभी के चेहरे
पर ऊर्जा और उत्साह साफ झलकता था।
आसमान में सूर्यदेव अभी अपने रथ पर सवार होकर प्रकट
नहीं हुए थे लेकिन उनके आने की सूचना लाल कणों के बिखरे रूप में सारे आकाश में दृष्टिगोचर
थी। ऐसा कोई भी क्यों न?सूर्य हमारे सौरमंडल के राजा हैं। एक राजा के आगमन के पूर्व
जिस तरह उनके अनुचर पूर्व घोषणा करते हैं, उसी तरह उषा सुंदरी ने आकाश में बिखरे रंगों
को और चटक करते हुए सूर्य देव का अभिनंदन किया। योग शिविर में प्रार्थना के बाद यशस्विनी
का संबोधन प्रारंभ होते -होते क्षितिज के एक कोने में भगवान दिवाकर मुस्कुरा उठे। ठीक
उसी समय रोहित भी आ पहुंचे और चेहरे पर किंचित ग्लानि भाव होने के कारण यशस्विनी के
बगल में निर्धारित अपने आसन पर आकर बैठ गए।
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यशस्विनी के सामने
इस बार नए साधकों का समूह है।ये युवाओं का समूह है।इसमें देश के विभिन्न भागों से इस
विशेष योग सत्र के लिए एकत्र हुए साधक हैं।अनेक बालक बालिकाएं व युवक युवतियां इसी
आश्रम के हैं। यशस्विनी मंच पर विराजमान है। यशस्विनी के योग वस्त्र पूरी तरह शालीन
और गैरिक रंग के हैं।ऐसा लग रहा है, जैसे योग साधना ने स्वयं एक साकार रूप धारण कर
लिया हो। स्फूर्तिमान चेहरे पर दमकता ओज, आत्मविश्वास से परिपूर्ण,हंसमुख,गेहुआँ रंग,स्वस्थ
शरीर, लगभग 21 वर्ष की युवती।
यशस्विनी ने सबसे पहले
योग प्रशिक्षार्थियों को योग की मूल अवधारणा समझाई।यशस्विनी ने कहना शुरू किया-योग
का अर्थ है, जोड़ना। स्वयं से स्वयं को जोड़ने, स्वयं को समाज के अन्य लोगों से जोड़ने
….से होते हुए यह जोड़ना और संयुक्त होना एक दिन परम पिता परमेश्वर से स्वयं को जोड़ने
तक जा पहुंचता है।योग भारत की प्राचीन पद्धति है।जिसके प्रमुख सूत्र हमें पतंजलि ऋषि
के योग दर्शन में मिलते हैं।महर्षि पतंजलि ने कहा है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।वहीं महा
ऋषि कपिल के अनुसार मन के निर्विषय होने का नाम ध्यान है-ध्यान निर्विषयं मन:।……..वास्तव
में योग का अर्थ केवल कुछ योग अभ्यास,शारीरिक व्यायाम और शारीरिक अभ्यास कर लेने का
ही नाम नहीं है।योग भारत की एक प्राचीन और सर्वाधिक प्रभावी जीवन शैली है,जिसमें हम
ध्यान योग-आसनों और अष्टांगिक योग की अवधारणा के माध्यम से ईश्वर से स्वयं को जोड़ने
अर्थात उनसे सम्बद्ध करने का प्रयास करते हैं।अपने विराट रूप में यह जोड़ना सारी समष्टि
को एकाकार कर देता है और फिर एक महाआनंद छा जाता है।
मंच पर लगे स्क्रीन पर प्रोजेक्टर के माध्यम से रोहित ने योग की
प्राचीन पद्धति और उसके पूरे इतिहास को खूबसूरत स्लाइडों के माध्यम से साकार कर दिया।
रोहित साथ-साथ व्याख्या भी करते जाते थे कि आज देश को पश्चिम से सबसे बड़ी चुनौती मिल
रही है।ज्ञान और विज्ञान का देश ने सदैव स्वागत किया है हम दूसरी सभ्यताओं और संस्कृतियों
से अच्छी बातें भी सीख सकते हैं लेकिन दूसरे देशों की संस्कृति को आधुनिकता और फैशन
के नाम पर अपनाना और उसका अंधानुकरण करना बिल्कुल गलत है।
एक साधक ने यशस्विनी से पूछा:- आखिर हमें योग की
आवश्यकता क्यों होती है?
यशस्विनी:- अगर मैं यह कहूंगी तो आपको एक बार भी विश्वास नहीं होगा
कि आज की आधुनिक जीवन शैली की भागदौड़ और मनुष्य की बेचैनी और चित्त की अस्थिरता का
एकमात्र समाधान योग की जीवन शैली में है। वास्तव में चंचल मन को वश में करना बड़ा मुश्किल
होता है और इसके लिए योग का सहारा लेना पड़ता है।
योगेंद्र