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10: वो अनछुई सी छुअन  

6 अगस्त 2023

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            10: वो अनछुई सी छुअन

 

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   आज के शाम के योग सत्र में रोहित नहीं पहुंचा। रक्तदान के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी कर वह रक्तदान के कक्ष में पहुंचा।बेड पर लेटते ही उसे आत्मसंतुष्टि की अनुभूति हुई।वह जानता था कि रक्त की एक बूंद किसी की प्राण रक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। शरीर से निकाले जाते गाढ़े रक्त को एक बैग में इकट्ठा होते देखकर अलग तरह की अनुभूति होती है।दीवार पर रक्तदान, प्लाज्मा दान आदि के फ्लेक्स थे। अपने हाथों से स्पंज बॉल को दबाते हुए रोहित इन सब को पढ़ता जा रहा।जब शरीर से रक्त निकलता है तो थोड़ी सरसराहट महसूस होती है, लेकिन मन में होने वाले किसी की मदद के गहरे आत्म संतोष के कारण यह सरसराहट भी एक अजीब सी उत्तेजना का कार्य करती है और व्यक्ति को एक नई ऊर्जा मिलती है। रक्तदान के बाद थोड़ी देर रोहित और उनका मित्र दूसरे कक्ष में बैठे रहे।अस्पताल की ओर से दूध का गिलास ला कर दिया गया। मित्र की आंखों में कृतज्ञता का भाव था लेकिन वह जानता था कि उसने एक शब्द थैंक्यू कहा और रोहित है कि नाराज हो जाएगा।

         रोहित नियमित तौर पर रक्तदान करते हैं और दिन भर तो फोन संदेश पर  दौड़ पड़ते हैं। रात को भी बिना हिचक के लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। इसीलिए उनका मोबाइल फोन रात को भी बंद नहीं होता। माता और पिता दोनों गांव में हैं।पिता वहीं पास के एक स्कूल में शिक्षक हैं। माता गृहिणी। रोहित को उन्होंने पढ़ने के लिए शहर भेजा। पास के कस्बे में हाई स्कूल की पढ़ाई अच्छी होती थी लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए आखिर 50 किलोमीटर दूर एक और बड़े कस्बे में जाना पड़ता था, इसलिए माता-पिता ने रोहित को शहर भेज दिया था। दोनों मित्र लगभग आधे घंटे बाद अस्पताल से बाहर आकर वहीं एक

 बेंच पर बैठे रहे। लगभग 1 घंटे तक वे घर परिवार से लेकर अपने कॉलेज के दिनों की याद करते रहे। कितना बदल गया है यह शहर। दोनों मित्र सोचने लगे।जहां 10 से 15 साल पहले यहां की मुख्य सड़क भी सूनी रहती थी, वहां अब इस शहर के गली-मोहल्लों में भी मेन रोड जैसा ट्रैफिक है।

        अस्पताल जाकर अपने मित्र के संबंधी को ब्लड डोनेट करने के बाद घर पहुंच कर रोहित को कमजोरी महसूस हो रही थी।यूँ तो वह अनेक बार रक्तदान कर चुका था लेकिन पता नहीं क्यों इस बार उसे लगा कि तुरंत काम पर लौटने से अच्छा है आज आराम किया जाए।

          शाम के योग सत्र के बाद ज्ञान चर्चा का दौर चलता है, जिसमें साधक अपनी जिज्ञासा यशस्विनी के सामने रखते हैं और यशस्विनी उन प्रश्नों का समाधान करती है।जब रोहित चर्चा सत्र के दौरान भी नहीं पहुंचा तो यशस्विनी को थोड़ी चिंता हुई। उसने मोबाइल फोन पर रोहित के नंबर को डायल किया लेकिन रोहित ने फोन नहीं उठाया। उसकी चिंता और बढ़ गई। योग सत्र के समापन के बाद यशस्विनी अपने घर पहुंची लेकिन हर 10 वें सेकेंड में वह मोबाइल अपने हाथ में ले लेती थी और यह चेक किया करती थी कि कहीं रोहित ने मिस्ड कॉल तो नहीं किया और उसका नया संदेश तो नहीं आया। एक बार तो उसके मन में हुआ कि रोहित के घर जाकर हालचाल जाना जाए लेकिन उसने प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।

       प्रेम करने वाले जब प्रेम की गहराई को महसूस करने की स्थिति में नहीं पहुंचे होते हैं तो उन्हें अपने आत्मसम्मान की बहुत फिक्र होती है। प्रेम का अंकुरण मन के किसी कोने में हो चुका होता है, लेकिन मनुष्य इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। अब यह प्रेम कभी आंखों से तो कभी अन्य चेष्टाओं से झलक ही उठता है। बस ज़ुबाँ बंद होती है।

       उधर रोहित है कि घर पहुंच कर कमजोरी महसूस करने के कारण बिस्तर पर लेटे हुए हैं।रात को 9:00 बज रहे हैं और उठकर खाना बनाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं।एक घंटा पहले दूध और मलाई वाली चाय पीने के बाद रोहित बिस्तर पर फिर लेट गया। रात लगभग 9:30 बजे यशस्विनी से रहा नहीं गया। उसने फोन रिसीव नहीं होने पर व्हाट्सएप से संदेश भेजा:-

हेलो….

कोई जवाब नहीं आने पर 2 मिनट बाद यशस्विनी ने फिर संदेश भेजा:-

 आप ठीक तो हैं…. रोहित जी

    रोहित की सेटिंग में सीन ब्लू स्टिक का ऑप्शन नहीं था इसलिए यशस्विनी नहीं समझ पा रही थी कि रोहित ने संदेश देख लिया है या नहीं।5 मिनट भी नहीं हुए थे कि यशस्विनी ने अगला संदेश भेजा:-

     …. आप आज योग सत्र में नहीं आए ना इसलिए हमने बस यूं ही पूछ लिया…..

    मानो यशस्विनी यह कहना चाहती हो कि मैंने बस हाल-चाल जानने की औपचारिकता निभाने के लिए ही संदेश भेजा है…. इसमें कोई अतिरेक लगाव वाली बात नहीं है…..

       लेकिन इस बार रोहित का ध्यान व्हाट्सएप में  गया और चंद सेकंडों में उसने सारे संदेश पढ़ लिए और वह मुस्कुरा उठा।

      उसका मन दुखी हुआ कि उसकी लापरवाही के कारण यशस्विनी कितनी देर परेशान रही। उसने यशस्विनी को तत्काल संदेश भेजा ….क्षमा चाहता हूं यशस्विनी जी….आपको संदेश नहीं भेज पाया…. बात यह है कि आज एक रक्तदान कार्यक्रम में चले जाने के कारण मैंने अचानक तेज कमजोरी महसूस की इसलिए... घर पर ही रुका हुआ हूँ….

       यशस्विनी ने तुरंत फोन लगाकर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कहा …. मुझे बुला लेते रोहित जी ...लेकिन अगले ही पल सुधारकर कहा -तो मुझे बता देते रोहित जी तो मैं किसी को आपके पास भेज देती……. और आपने खाना भी तो नहीं बनाया होगा….

       इससे पहले कि रोहित कुछ कह पाता,यशस्विनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा- मैं टिफिन भेज रही हूं आपके लिए…………

 

योगेंद्र ©

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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