भाग 4 आहट
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यशस्विनी की नींद रोज की तरह
प्रातः 5:00 बजे ही खुल गई। यह उसके रोज का नियम है।अगर वह देर से भी सोती है, तब
भी जैसे उसके शरीर की जैविक घड़ी उसके उठने के समय का संकेत कर देती है और ठीक उसी
समय वह जाग उठती है।
आज ध्यान और योग साधना के
बाद जब वह पूजा में बैठे तो बिहारी जी की मूर्ति के आगे ध्यान अवस्था में उसे
श्रीमद्भागवत गीता के नवे अध्याय के 26 वें श्लोक का स्मरण हो आया। तत्काल गीता
हाथ में लेकर वह श्लोक तक पहुंची:-
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे
भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि
प्रयतात्मनः।(9/26)।
भगवान
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र,पुष्प,फल, जल
अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि और निष्काम प्रेमी भक्तों की प्रेमपूर्वक अर्पण की
हुई वह भेंट मैं प्रेमपूर्वक स्वीकारता हूं।
थोड़ी देर
और ध्यान में डूबने पर उसका मन शांत होने लगा और कल रात की उद्विग्नता समाप्त हो
गई। जब मन ध्यान की अतल गहराइयों में डूबता है तो जैसी यशस्विनी अपनी सुध बुध खो बैठती
है। 10 से 15 मिनट में उसे अनुभव हुआ कि कक्ष नीले प्रकाश से भर उठा है और सफेद
रंग के हल्के धुएं में जैसे वह कक्ष से ऊपर उठकर आसमान की एक विशिष्ट ऊंचाई पर
पहुंच गई है, जहां केवल वह है और उनके आराध्य बिहारी जी की उपस्थिति का आभास है।
ध्यान
साधना है ही ऐसी चीज कि मनुष्य विलक्षण अनुभव के सागर में गोते लगाने लगता है और
अगर वह इसमें पूरी तरह से डूब गया तो फिर वापस चैतन्य अवस्था में आने में अत्यंत
कठिनाई होती है।यशस्विनी ध्यान के अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर इस बात को अच्छी
तरह से जानती थी, इसलिए उसने आज भी अलार्म लगाया हुआ था।
(9)
इससे पहले कि
ध्यान समाप्त करने के लिए अलार्म बजता, उसके मोबाइल फोन की घंटी बजी और वह एकाएक
चैतन्य हो उठी।
फोन रोहित का था। फोन उठाने
से पहले हाथ जोड़कर यशस्विनी ने साधना कक्ष में बांके बिहारी जी और किशोरी जी की
मूर्ति को प्रणाम किया।
-सुप्रभात,बोलिए रोहित जी इतनी
सुबह कैसे फोन किया?
-जी,प्रणाम महोदया। मैंने
इसलिए फोन किया कि मुझे साधना भवन पहुंचने में 15 मिनटों का विलंब हो जाएगा। तो
मैंने सोचा पहले आपको सूचित कर दूं।
-सबसे पहले आप मुझे यह
'प्रणाम' और 'महोदया' जैसे अभिवादन और संबोधन से विभूषित करना छोड़ें और
सीधे मेरा नाम लेकर बात किया करें।
-ज...ज...जी…. यशस्विनी जी...
-अरे आप नहीं सुधरेंगे... अब
आप मेरे नाम के साथ 'जी' क्यों लगा रहे हैं?
-यशस्विनी क्षमा चाहता हूं,
पर आप मुझे रोहित जी क्यों कहती हैं?
-ठीक है रोहित, अब यही सही
कि मैं भी आपको आपके नाम के साथ जी नहीं कहूंगी... यह कहते
हुए यशस्विनी खिलाकर हँस पड़ी….. ठीक है आप 15 मिनट के बाद ही पहुंचना वैसे भी
तैयारियां करते करते तो आप आ ही जाएंगे….
-जी…..
-वैसे इन 15 मिनटों के विलंब
का कारण जान सकती हूं? चुहल करते हुए यशस्विनी ने पूछा…..
इस अकस्मात
प्रश्न से रोहित हड़बड़ा गया। उसने जल्दी मिलता हूं, कहते हुए फोन रख दिया।
यशस्विनी
मन ही मन मुस्कुरा उठी। उसे इस बात पर आंतरिक संतोष भी था कि लड़कों में भी ऐसे
अनेक लोग हैं जो लड़कियों से बातचीत के दौरान या अपने व्यवहार के दौरान किसी तरह
का एडवांटेज नहीं लेना चाहते हैं और एक शालीनता तथा सुरक्षित दूरी का पालन करते
हुए अपनी बात रखते हैं। अन्यथा अनेक पुरुष तो ऐसे होते हैं जो लड़कियों को देखकर
उनसे फ्लर्ट करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं…. और लड़कियों ने अगर प्रारंभिक
व्यवहार के दौरान ही लक्ष्मण रेखा नहीं खींची तो न जाने आगे और कैसी-कैसी बातें और
हरकतें करने लगते हैं….. किसी लड़की ने हँस कर बातें क्या कर लीं, तो वे समझते हैं
कि जैसे दोस्ती हो गई और फिर इसके आगे का किस्सा वे मन ही मन गढ़ने लगते हैं….. और
यह सब पानी के बुलबुलों की तरह ही होता है। अगर एक जगह यह फ्रेंडशिप की गाड़ी पहले
ही अटक गई तो उन्हें दूसरी लड़की दिखाई देने लगती है,और फिर से वही हरकत….. किसी
रेस्टोरेंट में बैठकर यशस्विनी जब कॉलेज के युवाओं के झुंड की बातें सुनती है तो
उसे बड़ी कोफ्त होती है... उन लड़कों की नजर में किसी लड़की के बाल सुंदर हैं तो
किसी की आंखें तो किसी के शरीर के और कोई अंग…. बस वे शरीर पर अटके रहते हैं और
उनके मन व हृदय का कोना झांकने की कभी कोशिश ही नहीं करते हैं….
एक तरफ
लड़कियों के पीछे पड़े रहने वाले लोग हैं तो दूसरी और रोहित जैसे लोग हैं जो
लड़कियों को देखकर भागते हैं।यशस्विनी की दृष्टि में यह भी कोई स्वस्थ बात नहीं
है। रोहित जैसे लोग लड़की देखते ही यह समझने लगते हैं कि या तो कोई भूतनी आ गई या
फिर उनकी ब्रह्मचर्य की तपस्या भंग करने वाली स्वर्ग लोक से आई कोई अप्सरा……
(क्रमशः)
(काल्पनिक रचना ,किसी भी व्यक्ति, वस्तु ,स्थान, धर्म, जाति ,भाषा क्षेत्र आदि से अगर कोई समानता हो
तो वह केवल संयोग मात्र है।)