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9: अंधेरे में एक किरण

1 अगस्त 2023

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: अंधेरे में एक किरण

 

                     (19)

 

   आखिर जिसका डर था,वही हुआ आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले और आरोपी अपराधी न बन सके, आरोपी ही रह गए और इससे भी आगे….वे बाइज्जत बरी हो गए। उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष गवाह भी नहीं थे।

कोर्ट की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील द्वारा पूछे जाने वाले हर प्रश्न नेहा को चुभते थे और उसे लगता कि बार-बार उसके साथ वह घटना दोहराई जा रही है। सुनवाई भले बंद कमरे में होती थी लेकिन इस बंद कमरे के बाहर…. कोर्ट परिसर में प्रवेश से लेकर वापसी तक हजारों आंखें उसे घूरती रहती थीं…. मानो वह खुद अपराधी हो और वास्तविक अपराधियों के चेहरे पर कुटिलता की मुस्कान रहती थी।इससे हर सुनवाई के दौरान उसका खून खौल उठता था। पूरा परिवार नेहा के साथ था और इस बार तो पड़ोसियों ने भी नेहा के परिवार की पूरी मदद की। सबने कहा-हम तुम्हारे साथ हैं और मिलकर अपराधियों को दंड दिलाएंगे लेकिन नतीजा वही…...सिफर। नेहा के लिए सब कुछ एक झटके में खत्म…...।

             फैसले के बाद से नेहा ने अपने को फिर से कमरे में बंद कर लिया था।वही रोना सुबकना और परिवार के लोगों की वही लाचारगी …. शायद इस परिवार के लिए सब कुछ अब हमेशा के लिए खत्म हो गया था।

 

                       यशस्विनी ने घंटों तक नेहा की बातें बड़े ध्यान से सुनीं। उसने नेहा का उत्साह बढ़ाया।उससे मिलने के बाद नेहा में एक नए साहस का संचार हुआ। उसके मन में अपराधियों को दंडित करने को लेकर एक कसक तो थी लेकिन वह सही मौके की प्रतीक्षा में थी और यशस्विनी ने भी उससे ऐसा ही करने को कहा था।               

 

            

                   (20)

           यशस्विनी के योग शिविर में सूर्य की प्रथम रश्मियों के साथ ही सूर्यनमस्कार का सामूहिक अभ्यास शुरू हुआ। सभी साधक योग मेट पर अपनी-अपनी जगह पर खड़े थे। रोहित ने प्रोजेक्टर के माध्यम से बैकग्राउंड में स्लाइडों का प्रदर्शन शुरू किया। सबसे पहले यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार के इतिहास की जानकारी दी और इस आसन से होने वाले फायदों को बताया। उसने कहना शुरू किया:-

"आज हम सूर्य नमस्कार का अभ्यास करेंगे।क्या आप लोगों को पता है कि इसका नाम सूर्य नमस्कार क्यों है?"

- जी,इसलिए कि यह सूर्य के अभिमुख होकर किया जाता है और यह सूर्य को प्रणाम करना और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता का प्रदर्शन होता है।

" सही कहा आपने,सूर्य हमारे सौरमंडल का केंद्र है यह हमारे लिए जीवन का स्रोत है जिस सूर्य से सौरमंडल और इसके सारे ग्रह ऊर्जा ग्रहण करते हैं तो यह हमारे शरीर के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।उस सौर चक्र के साथ हमारा तालमेल होना अत्यंत आवश्यक है।"

     एक साधक ने प्रश्न किया:-जब सूर्य इतनी दूर है तो उसका हमारे जीवन पर या हमारी मनोदशा पर क्या प्रभाव पड़ता होगा?

     "सूर्य करोड़ों किलोमीटर दूर है फिर भी इसका हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव है। आप स्वयं सोचिए अगर सूर्य एक दिन न निकले तो धरती की क्या दशा होती है?" यशस्विनी ने जवाब देते हुए कहा।

  " दीदी आपने सही कहा तब तो त्राहि-त्राहि मच जाएगी।"

   " और एक दिन ही क्यों? जब ग्रहण लगता है तो केवल कुछ मिनटों के लिए ही सही,अंधेरा होने पर पूरी दुनिया में असहजता की स्थिति बन जाती है।जब सूर्य संपूर्ण पृथ्वी पर प्रभाव डालता है तो उसका हमारे शरीर और इसके ऊर्जा केंद्रों पर तो अवश्य असर पड़ता है। हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्रों और चक्रों को ही संतुलित और जाग्रत करने का कार्य करता है ये सूर्य नमस्कार।"

"हम इसका एक उदाहरण समुद्र में उठने वाले ज्वार और भाटा से देख सकते हैं,जो सीधे चंद्रमा से संबंधित है। ऐसा ही प्रभाव सूर्य का भी हम पर पड़ता है और विशेष रूप से सौर चक्र की अवधि में जो 11 वर्षों से लेकर 14 वर्षों का होता है, हम इसे महसूस भी कर सकते हैं। इस अवधि में सूर्य की सतह में अनेक परिवर्तन,सौर तूफान आदि होते हैं और उनका प्रभाव कहीं न कहीं अन्य आकाशीय पिंडों पर पड़ता ही है। हम पृथ्वी में रहते हैं इसलिए हम उससे अप्रभावित नहीं रह सकते हैं।"

      यशस्विनी के इस उद्बोधन ने लोगों में उत्सुकता जगा दी।यशस्विनी ने आगे कहा-"सूर्य नमस्कार हमारे शरीर के लिए अनुकूल और लाभकारी तो है ही,यह सूर्य से भी हमारा अनुकूलन करने में सहायक है।आखिर सूर्य ऊर्जा और प्रकाश के सबसे बड़े स्रोत तो हैं ही।"

         यशस्विनी के उद्बोधन के साथ-साथ रोहित प्रोजेक्टर पर विभिन्न स्लाइडों के माध्यम से सारी चीजों को जीवंत भी कर रहे थे और एक तरह से यह दृश्य-श्रव्य समायोजन अत्यंत सुंदर दिख रहा था। स्वयं रोहित मंत्रमुग्ध से यशस्विनी की बातों को सुन रहे थे।

       इसके बाद यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार का आदर्श प्रदर्शन शुरू किया। अपने स्थान पर खड़ी होकर यशस्विनी ने सबसे पहले प्रणमासन मुद्रा से शुरुआत की।सभी 50 साधक और रोहित उन्हें देख रहे थे। बड़ी कलात्मकता के साथ यशस्विनी ने सूर्य नमस्कार का बाएं और दाएं दोनों पैरों के माध्यम से एक चक्र पूरा किया। 12 चरणों में से प्रत्येक अवस्था के पूरा होने पर वह संबंधित मंत्र का उच्चारण भी कर रही थी। यह सब मंत्रमुग्ध कर देने वाला था और लोग उनकी कला पर चमत्कृत थे। इसके बाद यशस्विनी ने साधकों से भी इस योग का अनुसरण करने के लिए कहा और प्रणाम आसन के बाद दूसरे चरण में सांस खींचते हुए अपने दोनों हाथों को शरीर से पीछे की ओर उठाकर ले जाते हुए हस्त उत्तानासन मुद्रा धारण किया। उसने बताया कि यह शरीर की स्ट्रेचिंग है और एक तरह से यह वार्मअप वाली स्थिति है।

    जब श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए पादहस्तासन की मुद्रा में हाथों से पैरों की अंगुलियों को छूने की बारी आई तो अनेक साधक गड़बड़ा गए।स्वयं रोहित को पूरी तरह से झुककर जमीन या उंगलियों को स्पर्श करने में कठिनाई हुई। इस पर माइक से यशस्विनी ने सबसे कहा- जोर देकर आप लोग नीचे न झुकें। यह धीरे-धीरे अभ्यास से होगा। आज जितनी अवस्था तक आप झुक सकते हैं ,वहां तक ही झुकें। योग और आसनों में बलपूर्वक शरीर को दबाव देने पर इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं।

                    (21)

       एक बार पुनः रोहित मन ही मन शर्मिंदा हो उठे। कहां तो उन्होंने कल रात सूर्य नमस्कार की अनेक मुद्राओं का यूट्यूब पर डेमो देखकर अभ्यास किया था और यहां यशस्विनी जी के सामने सही तरह से योग करना तो दूर, वे अपने पहले ही प्रभाव में ढीले-ढाले व्यक्ति के रूप में स्थापित हो गए। रोहित को अफसोस हुआ कि उन्होंने यशस्विनी को प्रभावित करने का एक मौका गंवा दिया लेकिन वह समझ रहा था कि इसमें उसी की कमी है। महज दो साल पहले ही रोहित अपनी फिटनेस को लेकर अत्यंत सजग था और प्रतिदिन प्रातः उठकर स्नान कर घर से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित महामृत्युंजय जी के मंदिर में जल चढ़ाने के लिए जाया करता था। लगभग 3 से 4 महीनों के अभ्यास में उसका शरीर छरहरा और संतुलित दिखाई देने लगा था। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या बरसात, रोहित इस पैदल चाल के साथ-साथ लगभग आधे घंटे का योग अभ्यास भी प्रतिदिन करता था। रोहित ने मन ही मन निश्चय किया, "अब मुझे अपनी फिटनेस सुधारनी ही होगी।"

उधर यशस्विनी सूर्य नमस्कार की चौथी मुद्रा अश्व संचालनासन का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो गई।

 

योगेंद्र

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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