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17: संघर्ष का दौर  

1 अक्टूबर 2023

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 17: संघर्ष का दौर

 

         (50)

      यशस्विनी भी छूट की अवधि पूरी होने से पहले ही घर लौट गई।वह इतने सारे मास्क श्री कृष्ण प्रेमालय में रहने वाले बच्चों के लिए खरीदना चाहती थी।उसका मन छोटे उस्ताद पिंटू के साहस पर अति प्रसन्न हुआ। उसने सोचा, बड़े लोग सक्षम समर्थ होते हुए भी थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति के आने पर निराशा के गर्त में डूब जाते हैं और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं लेकिन यह पिंटू है कि आठ-नौ साल की छोटी उम्र में ही कमाने के लिए घर से बाहर निकल पड़ा है। आज की डायरी में यशस्विनी ने इस घटना को लिखा…….

"....... एक अदने से वायरस ने सारी मानवता को बैकफुट पर ला दिया है। लगता है लंबे समय तक लोगों को अपने घरों में ही रहना होगा और अब मास्क जीवन की अनिवार्य आवश्यकता में शामिल हो गया है…….. आज मैंने टीवी पर देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान के निदेशक को टीवी पर बोलते हुए सुना कि अभी इस रोग का इलाज नहीं है…. इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत रखने और कुछ आवश्यक दवाइयों के सेवन से यह वायरस 14 दिनों के भीतर शरीर से निष्क्रिय हो जाता है…... अभी कोरोना रोग की सटीक दवा बनी भी नहीं है…... लोगों को धैर्य और संयम से काम लेना होगा। साथ ही हमें इसके इलाज के लिए वैक्सीन की संभावनाओं पर तेजी से काम करना होगा…… यशस्विनी ने आगे लिखा ………….हालात कठिन है स्कूल, कॉलेज, धर्मस्थल, संस्थान…. सब बंद हैं…… यह कठोर संयम और धैर्य का समय है…. नवरात्र पर मां के मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा नहीं हो रही है… अरबों की आबादी घरों में स्वनिर्वासन और एक तरह से कैद की स्थिति में है…... हे ईश्वर सभी घरों में चूल्हे जलते रहे….. आज मनकी का फोन आया था कि एक हफ्ते बाद मनकी के पति के छोटे कारखाने के मालिक ने श्रमिकों को आगे काम पर नहीं रखने और उनकी तनख्वाह नहीं देने का नोटिस दिया है…... उन्हें बस कंपनी की ओर से 20 दिनों का निःशुल्क राशन आगे और मिलेगा…...आज की डायरी का समापन यशस्विनी ने अपनी लिखी एक कविता से किया……

"

शीर्षक:- कल,आज और कल

      (1)कल

 

बच्चा था मनुष्य,

जब

प्रकृति संतुलित थी,

हरे भरे पेड़,नदी, झरने,वन

और वह था इनकी गोद में

खेलता निश्छल,

इन्हीं जैसा,

इनसे जुड़ा हुआ,

जितनी जरूरत

उतनी लेता हुआ।

 

  (2)आज

 

मनुष्य ने

जीतना चाहा

प्रकृति को ही।

धरती से भी आगे

चंद्रमा के बाद मंगल और

उसके आगे के ग्रहों पर

विजय के सपने

और इनके लिए

शक्तिशाली रॉकेट।

इधर धरती पर

निष्कंटक होने

हजारों मील दूर से ही

विश्व के सबसे खतरनाक आतंकवादी

को मारने का साहसिक,

जोखिम भरा अभियान चलाने वाले,

इस दुनिया का स्वामी कहाते मनुष्य।

अघोषित भगवानों को

बस अपने भगवान होने की

घोषणा करने की देर थी,

कोरोना ने पानी फेर दिया।

लगा प्रश्नचिह्न

उस ब्रह्मांड विजयी मनुष्य के ऊपर,

जिसकी दुनिया में

जीवन रक्षक दवाइयों

मास्क, वेंटिलेटर और रोटी से

कहीं ज्यादा जरूरी हो चले थे,

घातक हथियार,

एके-47 से लेकर हाइड्रोजन बम,

हजारों मील दूर से

सटीक वार कर सकने वाली

निर्देशित मिसाइलें।

एक अदृश्य वायरस ने

ला दिया

सर्वशक्तिमान मनुष्य को

घुटने पर।

आज,

लगभग सुनसान और वीरान से हैं

अनेक धर्मस्थल।

भगवान

सामने आते हैं,

पीपीई सूट,मास्क पहने हुए,

डटे रहते हैं युद्ध के मोर्चे पर,

संक्रमितों का इलाज कर,

दुनिया के अब तक के

सबसे घातक शत्रु के खिलाफ,

डाल, स्वयं की जान जोखिम में।

जंग दूसरे मोर्चों पर भी है।

अज्ञानता के कारण कुछ लोगों द्वारा

कोरोना योद्धाओं पर

बरसाए जाते पत्थर,

तो कुछ लोगों की कोशिश

घोषित करने की-

कोरोना वायरस का धर्म

कोरोना वायरस की राष्ट्रीयता

और वश चले तो कोरोना की

कोई जाति और भाषा भी।

वैसे कोरोना ने

कर दिया था एक

गरीब-अमीर

सब बराबर थे

लेकिन बस कुछ ही दिन

और

फिर नजर आने लगा भेद

फिर आने लगे लोग

पटरियों के नीचे,या

पैदल दम तोड़ते…...

 

(3)कल

 

हारेगा कोरोना,

पुराना दौर लौटेगा,

फिर निकलेंगे

बूढ़े सुबह की सैर पर,

अपने परिवार की

ज़िम्मेदारी उठाने वाले लोग,

घरों से टिफिन ले के,

अपने कार्य स्थलों को,

बेख़ौफ़, बेहिचक।

और

फिर खुलेंगे स्कूल,

जहाँ,

हंसते-मुस्कुराते,पढ़ने

और खेलने लगेंगे,

फिर से बच्चे।"

 

 

 

 

                            (51)

     अगले दिन यशस्विनी चौराहे के पास निर्धारित स्थान पर पहुंची,जहां छोटे उस्ताद पिंटू से उसकी भेंट हुई थी।पिंटू वहाँ नहीं था।उसकी चलित मास्क की दुकान भी नहीं थी।उसने आसपास के लोगों से पूछने की कोशिश की, लेकिन कोई भी दुकान वाले कुछ बता नहीं पाए। इतना ही कहा,वह लड़का कल तो आया था, लेकिन आज सुबह से नहीं दिखा है।

 

     यशस्विनी का मन कई तरह से सोचने लगा।उसे लगा,हो सकता है वह किसी मुसीबत में हो क्योंकि उसकी मां के पैर में भी हल्का फ्रैक्चर है….. शायद और कोई मुसीबत आ गई हो और बच्चा घर से न निकल पाया हो।दूसरी ओर उसने यह भी सोचा कि हो सकता है पिंटू बुरे स्वभाव का हो और 500 रुपये मिल जाने के बाद वह फरार हो गया हो। लेकिन इस दूसरे प्रकार की सोच के लिए उसने अगले ही क्षण अपने मन को धिक्कारा। वैसे अपने पैसे के चले जाने का ग़म यशस्विनी को हो ही नहीं सकता था।उसे दुख इस स्थिति में भी होता ... पर केवल इसलिए कि पिंटू ने मेरे विश्वास को तोड़ा है,लेकिन इतने छोटे बच्चे से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं करना सही नहीं था। इसलिए यशस्विनी ने यह निष्कर्ष निकाला कि पिंटू किसी मुसीबत में फंस गया होगा।

     यशस्विनी चौराहे से आगे बढ़ गई। खाद्य सामग्रियों की दुकानों पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। दुकानदारों ने सफेद रंग से जमीन में एक निश्चित दूरी पर अलग-अलग स्थानों में वृत्ताकार पोताई कर दी थी और ग्राहकों को अनिवार्य रूप से इन गोल चिह्नित जगहों पर ही खड़े होने के लिए कहा जा रहा था। सभी ने अनिवार्य रूप से मास्क लगाए हुए थे….

     शहर के स्वयंसेवी संस्थान के लोगों ने श्री कृष्ण प्रेमालय के बच्चों के लिए लगभग एक महीने के राशन की व्यवस्था कर दी थी। अतः महेश बाबा निश्चिंत थे। उनकी टीम कोरोना से लड़ाई में अपना योगदान करने लगी।

    14 अप्रैल 2020 को यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा:-" आज देश में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर कुल 10000 हो गई है। देश में केवल सिक्किम और दादरा नगर हवेली ही ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जो अब तक इस बीमारी से अछूते हैं। यह रोग देश के अनेक हिस्सों में पांव पसार रहा है और प्रधानमंत्री जी ने 3 मई तक फिर से कड़े लॉकडाउन की घोषणा कर दी है। ऐसा लग रहा है कि अगर बीमारी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो अस्पताल में रोगियों को भर्ती करना संभव नहीं होगा …. क्योंकि जगह ही नहीं बचेगी और फिर उन्हें घर पर रखकर ही इलाज करना होगा; लेकिन समस्या तब आएगी जब मरीजों को ऑक्सीजन और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों की आवश्यकता होगी, ऐसी स्थिति में देश को बड़े पैमाने पर वेंटीलेटर्स की आवश्यकता होगी। सरकार बहुत कुछ कर रही है लेकिन अचानक आई इस बीमारी के सामने शायद हम बेबस हो उठते हैं….. भारत की शीर्ष चिकित्सा संस्थान के निदेशक ने टीवी पर कहा……. हमें टेस्टिंग की संख्या बढ़ानी होगी……... ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता है कि इस बीमारी का पीक किस दिन आएगा….. अगर डॉक्टर साहब की बात मानें तो हम लोगों के सामूहिक प्रयास के बीच पीक अर्थात उच्चतम स्तर पर आने के बाद केसेस अपने आप घटने शुरू हो जाएंगे….. यह थोड़ी राहत की बात लग रही थी…. इधर देश में केंद्र सरकार और राज्यों के स्तर पर गरीबों के लिए निःशुल्क राशन की स्कीम लागू की गई है और इसके साथ कार्यकर्ता घर-घर सूखा राशन लेकर भी पहुंच रहे हैं….. अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए अनेक उपायों की तैयारी हो रही है लेकिन डर इसी बात का है कि ये सारी चीजें जब अनुपालन में आएंगी तो कोरोना और संक्रमण के भयंकरतम खतरों के बीच होकर….मानवता को कदम रखना होगा…. मानवता को आगे बढ़ना ही होगा….. यह सोचकर हम लापरवाही नहीं बरत सकते कि यह बीमारी मुझे होगी ही नहीं…..."

      

        यशस्विनी ने अपनी डायरी में आगे लिखा," अपने 157 सालों के इतिहास में भारतीय रेल के पहिए पहली बार थमे और देश की यह जीवन रेखा और इसका जाल पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया…. इससे अपने घर लौटने को बेचैन श्रमिकों को पूरी तरह बसों पर ही निर्भर होना पड़ा है….. लेकिन बसे हैं कि वे भी नहीं चल रही हैं…. कहीं किसी बस के संचालन की घोषणा होती है या केवल अफवाह फैलती है तो हजारों की भीड़ वहां पहुंच जाती है……."

दिन पर दिन बीतते गए। यशस्विनी की डायरी के पन्ने भरते गए…. लंबे लॉकडाउन का दुष्परिणाम भी देखने को मिला लेकिन आखिर किया भी क्या जा सकता था…. इधर कुआं…. उधर खाई….. लॉकडाउन को लेकर अपने-अपने तर्क थे…. अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता तो न जाने कोरोना के मामले 1 से 2 महीने में ही कहां से कहां पहुंच जाते और देश तबाही का एक बहुत बड़ाकेंद्र बन जाता…. वहीं इसका समर्थन नहीं करने वालों के भी अपने तर्क हैं…..।

             (52)

यशस्विनी ने डायरी में आगे लिखा…. पिछले 1 मई से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन 17 मई तक बढ़ा दिया गया है…. ….सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों में टीवी देख रहे लोगों को यह बात आश्चर्य में डालती है कि लोगों ने कोरोना  प्रोटोकॉल तोड़ा और उन्होंने बिना सोशल डिस्टेंसिंग के बस अड्डों और अन्य जगहों पर भीड़ लगाई हुई है और अनेक श्रमिक पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों को लौटने के लिए चल पड़े हैं... कुछ लोग कहते हैं, ये लोग मूर्खता क्यों कर रहे हैं,क्या वे जहां रहते हैं,वहां उनके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है, क्या वहां सरकारी मशीनरी और स्वयंसेवी संस्थाएं नहीं हैं….. मेरा अनुमान है कि उन लोगों की स्थिति वही लोग समझ सकते हैं ….शायद कंपनी वाले और नियोक्ता कितने दिनों तक अपने बंद काम के लिए मजदूरों को भुगतान करेंगे और बड़े महानगरों में लोग चालों में रहते हैं…. जहां एक ही कमरे में अनेक लोग शिफ्टवाइज रहते हैं…. सोते हैं…... एक सोता है तो दूसरे के कारखाने में जाने और काम करने का समय होता है…. जब वह लौटता है तो सोए हुए व्यक्ति के घर से निकलने का समय हो जाता है…. अब ये सभी लोग एक साथ घर में रहेंगे तो जगह कहां होगी?…... घर लौटने के लिए ट्रेन की पटरियों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के दुर्घटना का शिकार होने के कारुणिक दृश्यों को देखकर मैं विचलित हो जाती हूं…... हे बांके बिहारी जी, मानवता पर यह कैसा संकट है?"

                   (53)

        सरकार ने लॉकडाउन में छूट की अवधि शाम 4:00 बजे तक बढ़ा दी है। यशस्विनी, रोहित और अन्य स्वयंसेवक दिनभर के राहत अभियान के बाद अभी आधा घंटा पहले ही अपने-अपने घरों को लौटे हैं और अपराह्न को 3:30 बज रहे हैं….. कॉल बेल बजने पर यशस्विनी ने दरवाजा खोला। वह आश्चर्य से मुस्कुरा उठी। वहां पिंटू खड़ा था और उसके हाथ में एक पैकेट था। उसने कहा," दीदी यह रहा आपके द्वारा खरीदे गए 100 मास्कों का पैकेट….. मुझे माफ कर दो दीदी आपको इन मास्कों की सप्लाई अगले दिन नहीं कर पाया क्योंकि मेरी मां कोरोना टेस्ट में पॉजिटिव निकल गई थी….. हल्के बुखार के बाद जब मां ने टेस्ट कराया था तो इसके एक घंटा बाद उनके मोबाइल पर मैसेज आया और इसके थोड़ी देर बाद अस्पताल वाले आकर एंबुलेंस में मां को लेकर अस्पताल चले गए थे दीदी….. मां तीन दिन पहले ही घर लौटी हैं और हमने मिलकर ये मास्क बनाए हैं…. बस आप हमें गलत मत समझना दीदी….. आप ये मास्क रखेंगी न दीदी, अगर नहीं रखेंगी तो मुझे आपको रुपये वापस करने के लिए एक हफ्ते का टाइम दीजिएगा दीदी….."

 

     …... छोटे उस्ताद पिंटू एक ही सांस में यह सब कहते गए और इसे सुनकर यशस्विनी की आंखों में आंसू आ गए…. उसने इतना ही कहा, "नहीं, मुझे अभी भी इन मास्कों की जरूरत है, बल्कि ऐसे 100 मास्क और चाहिए छोटे उस्ताद….।

      यह सुनकर पिंटू का चेहरा खिल उठा, "हां दीदी,ये मास्क आपको दो से तीन दिनों में ही मिल जाएंगे।"

         छोटे उस्ताद और यशस्विनी का संपर्क बना रहा।यशस्विनी एक बार छूट की अवधि में पिंटू के घर भी गई और उसकी मां से मिलकर कुशलक्षेम भी जानी।पिंटू का एक कमरे का छोटा सा मकान था। पिंटू की मां कोविड से उबर चुकी थी, लेकिन पोस्ट कोविड इफेक्ट के कारण उनके शरीर में कई तरह की परेशानियां आने लगी थीं।यशस्विनी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह अपनी ओर से उन लोगों की पूरी मदद करेगी।यशस्विनी की डायरी के पन्ने बढ़ते गए,

"..... देश में 17 मई को लॉकडाउन के 31 मई 2020 तक बढ़ाने की घोषणा हुई थी…. छूट में अनेक चीजों को शामिल करते हुए, वहीं कड़े प्रतिबंधों के बारे में और वांछित सावधानियों के बारे में लोगों को बार-बार समाचार पत्रों, टीवी चैनलों और स्थानीय निकायों के प्रचार तंत्र द्वारा लगातार जागरूक किया जा रहा है।…... लगता है अब लोगों को कोरोना के साथ आगे जीना होगा…..एक लंबे समय तक…"

     यशस्विनी ने डायरी में आगे लिखा,

"…..8 जून को जब 75 दिनों लंबा लॉकडाउन खुला तो देश में 7200 मौतें हो चुकी थीं और संक्रमितों का आंकड़ा ढाई लाख तक जा पहुंचा था……... लॉकडाउन के समाप्त होने के बाद के दौर को अनलॉक-1 का नाम दिया गया है और सेवाएं धीरे-धीरे शुरू हो गई हैं।अब भारतीय शहरों के रेड,ऑरेंज व ग्रीन जोन की संकल्पना के स्थान पर शहरों के सीमित क्षेत्रों में कड़े प्रतिबंध वाले कंटेनमेंट जोन पर बल दिया जाएगा….."

       जून के तीसरे हफ्ते से कोरोना के नये केस अचानक रफ्तार पकड़ने लगे। श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल ने रोहित द्वारा बनाए गए ऑनलाइन मीटिंग एप की सहायता से बैठकों का सिलसिला शुरू किया। स्कूल तो अभी भी बंद थे लेकिन शिक्षकों को ऑनलाइन शिक्षण के लिए निर्देश दिए गए और इनके प्रशिक्षण का जिम्मा उठाया रोहित और स्वयं यशस्विनी ने। मई महीने से ही यशस्विनी ने अनेक रिकॉर्डिंग ऐप के माध्यम से योग के ऑनलाइन वीडियो लेक्चर तैयार किए थे लेकिन अभी भी स्कूल के लंबे समय तक बंद रहने की संभावना को देखते हुए ऑनलाइन शिक्षा के बारे में उन लोगों ने बड़ी मेहनत के बाद यह समाधान ढूंढ़ा।

 

     गूगल फॉर्म के माध्यम से यशस्विनी ने एक ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया और किसी तरह से उसमें छोटे उस्ताद पिंटू को भी शामिल किया।सुखद आश्चर्य कि पिंटू पढ़ाई में भी अच्छा निकला…. इस टेस्ट में सबसे अधिक अंक पिंटू के ही आए और इस मौके का फायदा उठाते हुए एक दिन शाम को उसके घर पहुंच कर यशस्विनी ने उसे दो बड़े गिफ्ट दिए…. पहला पिंटू का श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में दाखिला,उसके लिए निःशुल्क शिक्षा और दूसरा ऑनलाइन कक्षाओं के लिए एक नया स्मार्टफोन….। पिंटू पहले तो इन दोनों उपहारों को स्वीकार नहीं कर रहा था क्योंकि उसमें स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा था…. तब यशस्विनी ने पिंटू की मां के माध्यम से समझाया कि प्रतियोगिता में प्रथम आने पर ही तुम्हें यह गिफ्ट दिया जा रहा है….. यह सुनकर पिंटू की आंखों में गहरे आत्मसंतोष की एक चमक दिखाई दी।

(क्रमशः)

 

योगेंद्र©

 

(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)

( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों, मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास न करें।)

( आवरण चित्र प्रतीकात्मक, कथा से संबंधित नहीं)

योगेंद्र

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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