भाग
2.स्मृति
(3)
यशस्विनी आज शाम को
ऑफिस से जब घर पहुंची तो किसी भी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। घर लौटने के बाद
एक कप चाय पीते हुए वह अखबारों में दिनभर की खबरों पर एक दृष्टि डालती है। यूं तो वह
सुबह भी अखबार पढ़ लेती है लेकिन सरसरी तौर पर अभी वाले अखबार पढ़ाई के समय में वह
कुछ विशेष खबरों पर ध्यान केंद्रित करती है और उसे रुचिपूर्वक पढ़ती है। घर में नौकर
चाकर से लेकर रसोईया तक सभी तैनात हैं लेकिन वह घर का सारा कार्य खुद अपने हाथों से
करना पसंद करती है। उसका यह मानना है कि मनुष्य अगर अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए
भी दूसरों पर निर्भर हो गया, तो आत्मनिर्भरता समाप्त हो जाएगी और बिना किसी के अगर
अकेले रहने की स्थिति आएगी तो उस समय अपार कष्ट की अनुभूति होगी।
वह अपने चाय के प्याले
के साथ गार्डन में आकर बैठ गई और मौसमी पौधों और उन पर खिले फूलों को देख कर मंत्रमुग्ध
होती रही।
यशस्विनी बड़ी देर तक फूल,पौधों, पेड़ों और पत्तियों के भूगोल को
देखने समझने की कोशिश करती रही और इन्हीं के साथ वह पुरानी यादों में खो गई………….
……..महेश बाबा के साथ वह इसी तरह उपवन के पौधों में पानी दिया करती
थी…...
यशस्विनी के घर में कहने को तो कोई नहीं है, लेकिन जैसे इस स्कूल
के हर बच्चे उसके अपने परिवार के सदस्य हैं।जब से उसने होश संभाला है,अपने को एक अनाथालय
में पाया है।कृष्ण प्रेमालय अनाथालय के संचालक महेश बाबा ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला
है।
यशस्विनी तो यह भी नहीं जानती थी कि अनाथालय क्या होता है।उसके घर
का नाम तो कृष्ण प्रेमालय ही है। स्कूल में अपनी सहेलियों के पूछने पर वह यही कहती
थी। विजयपुर के सरकारी स्कूलों में आज के पब्लिक स्कूलों और मॉडर्न सरकारी स्कूलों
की तरह पेरेंट्स टीचर मीटिंग नहीं होती थी। जब भी स्कूल में माता पिता को बुलाया जाता
तो उसकी ओर से महेश बाबा ही वहां जा पहुंचते थे।
(4)
यशस्विनी को जीवन में अपने माता-पिता की कमी का अनेक बार अहसास होता
था और वह महेश बाबा से पूछती भी थी।इस पर एक दिन महेश बाबा ने उसे बताया कि तुम मुझे
इसी अनाथालय के द्वार पर एक चादर में लिपटी हुई मिली थी। तब तुम केवल कुछ घंटों की
नवजात शिशु ही थी।यह सुबह का कोई 5:30 का वक्त था और मैं अपने अनाथालय के बाहरी द्वार
के पास स्थित राधा कृष्ण जी के मंदिर में पूजा के लिए जा रहा था।अचानक किसी के रोने
की महीन आवाज आई और आवाज की दिशा में जब मैंने कदम बढ़ाए तो पास जाकर तुम्हें वहां
देखा। मैं असमंजस में था कि पहले तुम्हें उठाऊं या राधाकृष्ण जी के मंदिर के पट खोलूँ।
फिर मैंने निर्णय लिया और तुम्हें सावधानी से उठाकर सीधे मंदिर के दरवाजे जा पहुंचा।एक
हाथ से बड़ी मुश्किल से मैंने द्वार खोला तो गर्भ गृह में बिहारी जी और मां राधिका
के देव विग्रह जैसे मुस्कुरा रहे थे।
न जाने क्यों जैसे ही
मैं गर्भगृह के भीतर देव विग्रहों की ओर बढ़ा,राधिका जी के पास पहुंचते ही तुम्हारा
रोना रुक गया। तुम ब्रह्मांड जननी किशोरीजी को एकटक देखने लगी और तभी मेरे मुंह से
तुम्हारा नामकरण हुआ- यशस्विनी, जो राधा जी के नामों में से एक है।
"थोड़े ही देर
में गुरु माई भी पूजा के लिए वहां पहुंचीं और मैंने तुम्हें उनके सुपुर्द कर दिया।बिटिया,तब
से मुझे और तुम्हारी गुरु माई को ही तुम्हारी देखरेख का सौभाग्य मिला हुआ है।"
महेश बाबा ने यशस्विनी
को आगे का किस्सा बताते हुए कहा कि हम दोनों ने तुरंत पुलिस और समाज कल्याण विभाग से
संपर्क किया। इस पर समाज कल्याण विभाग वालों ने कहा कि अगर इस बच्ची पर किसी ने दावा
नहीं किया तो यह आप ही के संरक्षण और देखरेख में रहेगी और आप ही इसके धर्म पिता होंगे।
यशस्विनी को याद आने लगा कि वह महेश बाबा के परिवार में ही रहने
लगी।उसने महेश बाबा की उंगली पकड़ कर ही चलना सीखा और कृष्ण प्रेमालय के ही बने स्कूल
में उसका दाखिला करा दिया गया था। महेश बाबा और गुरु माई माता पिता की ही तरह उसकी
देखरेख करते थे और उसे ज्ञान, सदाचार और संस्कार की शिक्षा भी देते थे, लेकिन थोड़ा
समझदार होने पर उन्होंने उसे यह अहसास कराना भी शुरू किया कि वे उसके वास्तविक माता-पिता
नहीं हैं। वह इस दुनिया में अकेली है और उसे अपना भावी जीवन पथ अकेले ही तय करना है
क्योंकि महेश बाबा और गुरु माई एक सीमा तक ही उसका साथ दे पाएंगे।
अपने जीवन में माता
पिता की कमी का अहसास होने पर भी जब यशस्विनी कृष्ण प्रेमालय में रहने वाले अनेक बच्चों
को देखती तो वह अपना दुख भूल जाती थी और उसे लगता था कि हम सब एक बड़ा परिवार हैं जिसके
संरक्षक स्वयं महेश बाबा और गुरु माई हैं लेकिन शाम की प्रार्थना के समय महेश बाबा
सभी बच्चों से यही कहते थे कि हम तो संसार के माता-पिता हैं।वास्तविक माता-पिता तो
बिहारी जी और किशोरी जी ही हैं। एक दिन हमारा शरीर साथ छोड़ देगा लेकिन ये दोनों चिर
माता पिता के रूप में आप लोगों का हर सुख-दुख में साथ देते रहेंगे।
इस पर बालिका यशस्विनी महेश
बाबा से पूछती- क्या कान्हा जी उस तरह से दौड़कर हमारे लिए भी आएंगे, जिस तरह से उन्होंने
मगरमच्छ के मुंह में फँसे हुए गजेंद्र को तारा था?इस पर महेश बाबा आत्मविश्वास पूर्वक
कहते-हाँ…... और भोली यशस्विनी इस पर विश्वास
कर लेती।
(क्रमशः)
(काल्पनिक रचना ,किसी व्यक्ति ,वस्तु ,स्थान, जाति ,धर्म ,भाषा,
क्षेत्र आदि से अगर कोई समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र है)