8: इसके सिवा जाना कहां
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आज 12 जनवरी है। स्वामी
विवेकानंद जी के जन्मदिन को पूरे देश के लोग युवा दिवस के रुप में मनाते हैं और इस
अवसर पर सूर्य नमस्कार का सामूहिक अभ्यास भी आयोजित होता है। श्री कृष्ण प्रेमालय द्वारा
संचालित स्कूल में यशस्विनी को विशेष रूप से योग का प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित
किया गया है।श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल से यशस्विनी को विशेष लगाव है, क्योंकि स्वयं
उसकी सारी शिक्षा दीक्षा यही संपन्न हुई है।थोड़ा बड़ा होने पर महेश बाबा ने व्यक्तिगत
रूप से उसे गोद लेने की इच्छा प्रकट की थी। वास्तव में महेश बाबा ने जिस उद्देश्य को
लेकर इस संस्थान की स्थापना की थी उसमें वह अपने प्रेम को व्यक्तिगत रूप से खंडित नहीं
करना चाहते थे; इसलिए उन्होंने स्वयं किसी बच्चे को गोद नहीं लिया था।महेश बाबा शुरू
से आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। अव्वल तो वे सब कुछ छोड़कर हिमालय जाकर तपस्या करना
चाहते थे, लेकिन उनके गुरु ने समझाया था- संसार छोड़कर कहां जाना चाहते हो वत्स?
गुरु और शिष्य में कुछ देर तक संवाद भी हुआ था।
"गुरुदेव मैं आत्मिक उन्नति के लिए साधना करना चाहता हूं।यह
साधना संसार में होते हुए असंभव है।"
" यह तुमने कैसे मान लिया वत्स,कि साधना के लिए घर द्वार छोड़ना
होगा और किसी गुफा कंदरा में बैठकर ध्यान में लीन होना होगा?"
" इसलिए गुरुदेव कि संसार एक बंधन है।यहां मोह माया है।यहां
रिश्ते की चिंता है।लोग आजीविका के लिए अनेक कर्म करते हैं और कभी-कभी सही गलत रास्ता
भी अपनाते हैं।"
" तो सब लोग तुम्हारी तरह संसार के बंधनों को छोड़ देना चाहेंगे
तो यह संसार चलेगा कैसे? योगियों तपस्वियों को भी तो अन्न की आवश्यकता होती है और यह
उगाते हैं किसान जो अधिकतर गृहस्थ हैं।"
" समझ गया गुरुदेव।" यह उत्तर देते हुए युवा महेश ने तपस्या
के लिए गुरु के मार्गदर्शन में हिमालय जाने का इरादा बदल दिया।
इसके बाद महेश ने श्री
कृष्ण प्रेमालय नामक सामाजिक संस्था की स्थापना की और इसे मुख्य रूप से अनाथ बच्चों
के पालन पोषण और संरक्षण पर केंद्रित किया। अकेले महेश से अनाथालय के बच्चों की देखरेख
संभव नहीं थी इसलिए उसने विवाह का निश्चय किया लेकिन अपनी भावी पत्नी माया के सामने
यह शर्त रखी कि हमारे बच्चे नहीं होंगे और अनाथालय के बच्चे ही हमारे संतान होंगे।
महेश की यह शर्त सुनकर माया के माता-पिता पहले तो थोड़ा झिझके लेकिन व्यापक दृष्टि
से सोचने पर महेश के कार्य को ईश्वर की ही सेवा मानने और माया के भी आध्यात्मिक प्रवृत्ति
का होने के कारण उन्होंने सहमति दे दी और इस तरह दोनों का विवाह हो गया।
यशस्विनी को लेकर
दोनों के मन में अत्यंत कोमल भावनाएं थीं।एक गहरा वात्सल्य भाव था और इसी के चलते उन्होंने
यशस्विनी के छठवीं कक्षा में पहुंचने पर उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि हम दोनों
तुम्हें गोद लेना चाहते हैं। दोनों की आंखों में स्नेह और वात्सल्य को यशस्विनी ने
अनुभव किया था। अपनी 10-11 वर्ष की अवस्था होने तक उसने हर पल न सिर्फ अपने प्रति बल्कि
अनाथालय के हर बच्चे के प्रति महेश और गुरु माता माया के लाड़-प्यार और दुलार को देखा
था।
अपनी शिक्षा पूरी
होने और कैरियर निर्माण के लिए नौकरी के अनेक अच्छे प्रस्ताव आने के बाद भी जब यशस्विनी
ने कृष्ण प्रेमालयम में ही रहने का निश्चय किया तो महेश बाबा ने मना किया और कहा- बेटी
यहां तुम सीमित हो जाओगी। यहां से दूर रहकर तुम यहां के बच्चों की कहीं अधिक मदद कर पाओगी।तुममें आसमान की बुलंदियों को छूने
की संभावना है। तुम जो करना चाहती हो वह करो। नौकरी, व्यापार से लेकर बड़ी प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी….. हर कहीं हम तुम्हारा साथ देंगे लेकिन इस संस्थान के प्रति अगर तुम्हारे मन में मोह माया अत्यधिक रही तो फिर तुम
अपने जीवन के बड़े उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाओगी…….
यशस्विनी ने धर्मपिता
और धर्म माता की बात को शिरोधार्य किया और फिर यहीं शहर में ही रहकर अपना संघर्ष शुरू
किया। उसने महेश बाबा से श्री कृष्ण प्रेमालय नाम के प्रयोग की अनुमति ले ली और फिर
शहर में अपनी आजीविका के लिए पहले प्रयास के रूप में एक योग प्रशिक्षण संस्था की स्थापना
की। न्यूनतम फीस पर वह योग प्रशिक्षण दिया करती। उसने फीस इसलिए रखी क्योंकि एक तो
उसकी प्रारंभिक आजीविका की समस्या हल हो जाए और दूसरे अगर वह प्रशिक्षण निःशुल्क कर
देगी तो "लोग मुफ्त की चीजों को गंभीरता से नहीं लेते" की तरह उसके प्रशिक्षण
को भी उतनी गंभीरता से नहीं लेंगे। वह बच्चों और यहां तक कि बड़ों की भी काउंसलिंग
और परामर्श की सेवाएं भी देने लगी।थोड़े ही दिनों में उसने किराए के घर में पेइंग गेस्ट
बनकर रहने के बदले स्वयं का एक फ्लैट ले लिया।योग जैसे उसका पैशन था।अपनी संस्था के
साथ-साथ श्री कृष्ण प्रेमालय में योग सत्र का संचालन वह खुशी-खुशी करती थी। अत्यधिक
व्यस्तता के बाद भी उसने श्री कृष्ण प्रेमालय के स्कूल में योग शिक्षक के रूप में अपनी
सेवाएं देने का प्रस्ताव दिया, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया था। आज सूर्य नमस्कार
दिवस है और यशस्विनी मंच पर आसीन है। सबसे पहले उसने सूर्यनमस्कार के इतिहास और सिद्धांतों
की विद्यार्थियों को विस्तार पूर्वक जानकारी दी।
सबसे पहले महेश बाबा
ने विद्यार्थियों को यशस्विनी की एक बड़ी उपलब्धि की जानकारी दी। संयुक्त राष्ट्र संघ
ने अश्विनी को विभिन्न देशों में आयोजित होने वाले योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य
प्रशिक्षक घोषित किया था। स्वयं प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर तेजस्विनी को इस चयन के लिए
बधाई दी थी।
(क्रमशः)