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8: इसके सिवा जाना कहां

9 जुलाई 2023

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8: इसके सिवा जाना कहां

 

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    आज 12 जनवरी है। स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को पूरे देश के लोग युवा दिवस के रुप में मनाते हैं और इस अवसर पर सूर्य नमस्कार का सामूहिक अभ्यास भी आयोजित होता है। श्री कृष्ण प्रेमालय द्वारा संचालित स्कूल में यशस्विनी को विशेष रूप से योग का प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया गया है।श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल से यशस्विनी को विशेष लगाव है, क्योंकि स्वयं उसकी सारी शिक्षा दीक्षा यही संपन्न हुई है।थोड़ा बड़ा होने पर महेश बाबा ने व्यक्तिगत रूप से उसे गोद लेने की इच्छा प्रकट की थी। वास्तव में महेश बाबा ने जिस उद्देश्य को लेकर इस संस्थान की स्थापना की थी उसमें वह अपने प्रेम को व्यक्तिगत रूप से खंडित नहीं करना चाहते थे; इसलिए उन्होंने स्वयं किसी बच्चे को गोद नहीं लिया था।महेश बाबा शुरू से आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। अव्वल तो वे सब कुछ छोड़कर हिमालय जाकर तपस्या करना चाहते थे, लेकिन उनके गुरु ने समझाया था- संसार छोड़कर कहां जाना चाहते हो वत्स?

गुरु और शिष्य में कुछ देर तक संवाद भी हुआ था।

"गुरुदेव मैं आत्मिक उन्नति के लिए साधना करना चाहता हूं।यह साधना संसार में होते हुए असंभव है।"

" यह तुमने कैसे मान लिया वत्स,कि साधना के लिए घर द्वार छोड़ना होगा और किसी गुफा कंदरा में बैठकर ध्यान में लीन होना होगा?"

" इसलिए गुरुदेव कि संसार एक बंधन है।यहां मोह माया है।यहां रिश्ते की चिंता है।लोग आजीविका के लिए अनेक कर्म करते हैं और कभी-कभी सही गलत रास्ता भी अपनाते हैं।"

" तो सब लोग तुम्हारी तरह संसार के बंधनों को छोड़ देना चाहेंगे तो यह संसार चलेगा कैसे? योगियों तपस्वियों को भी तो अन्न की आवश्यकता होती है और यह उगाते हैं किसान जो अधिकतर गृहस्थ हैं।"

" समझ गया गुरुदेव।" यह उत्तर देते हुए युवा महेश ने तपस्या के लिए गुरु के मार्गदर्शन में हिमालय जाने का इरादा बदल दिया।

      इसके बाद महेश ने श्री कृष्ण प्रेमालय नामक सामाजिक संस्था की स्थापना की और इसे मुख्य रूप से अनाथ बच्चों के पालन पोषण और संरक्षण पर केंद्रित किया। अकेले महेश से अनाथालय के बच्चों की देखरेख संभव नहीं थी इसलिए उसने विवाह का निश्चय किया लेकिन अपनी भावी पत्नी माया के सामने यह शर्त रखी कि हमारे बच्चे नहीं होंगे और अनाथालय के बच्चे ही हमारे संतान होंगे। महेश की यह शर्त सुनकर माया के माता-पिता पहले तो थोड़ा झिझके लेकिन व्यापक दृष्टि से सोचने पर महेश के कार्य को ईश्वर की ही सेवा मानने और माया के भी आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण उन्होंने सहमति दे दी और इस तरह दोनों का विवाह हो गया।

          यशस्विनी को लेकर दोनों के मन में अत्यंत कोमल भावनाएं थीं।एक गहरा वात्सल्य भाव था और इसी के चलते उन्होंने यशस्विनी के छठवीं कक्षा में पहुंचने पर उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि हम दोनों तुम्हें गोद लेना चाहते हैं। दोनों की आंखों में स्नेह और वात्सल्य को यशस्विनी ने अनुभव किया था। अपनी 10-11 वर्ष की अवस्था होने तक उसने हर पल न सिर्फ अपने प्रति बल्कि अनाथालय के हर बच्चे के प्रति महेश और गुरु माता माया के लाड़-प्यार और दुलार को देखा था।

          अपनी शिक्षा पूरी होने और कैरियर निर्माण के लिए नौकरी के अनेक अच्छे प्रस्ताव आने के बाद भी जब यशस्विनी ने कृष्ण प्रेमालयम में ही रहने का निश्चय किया तो महेश बाबा ने मना किया और कहा- बेटी यहां तुम सीमित हो जाओगी। यहां से दूर रहकर तुम यहां के बच्चों की कहीं अधिक  मदद कर पाओगी।तुममें आसमान की बुलंदियों को छूने की संभावना है। तुम जो करना चाहती हो वह करो। नौकरी, व्यापार से लेकर बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी….. हर कहीं हम तुम्हारा साथ देंगे लेकिन इस संस्थान के प्रति अगर  तुम्हारे मन में मोह माया अत्यधिक रही तो फिर तुम अपने जीवन के बड़े उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाओगी…….

        यशस्विनी ने धर्मपिता और धर्म माता की बात को शिरोधार्य किया और फिर यहीं शहर में ही रहकर अपना संघर्ष शुरू किया। उसने महेश बाबा से श्री कृष्ण प्रेमालय नाम के प्रयोग की अनुमति ले ली और फिर शहर में अपनी आजीविका के लिए पहले प्रयास के रूप में एक योग प्रशिक्षण संस्था की स्थापना की। न्यूनतम फीस पर वह योग प्रशिक्षण दिया करती। उसने फीस इसलिए रखी क्योंकि एक तो उसकी प्रारंभिक आजीविका की समस्या हल हो जाए और दूसरे अगर वह प्रशिक्षण निःशुल्क कर देगी तो "लोग मुफ्त की चीजों को गंभीरता से नहीं लेते" की तरह उसके प्रशिक्षण को भी उतनी गंभीरता से नहीं लेंगे। वह बच्चों और यहां तक कि बड़ों की भी काउंसलिंग और परामर्श की सेवाएं भी देने लगी।थोड़े ही दिनों में उसने किराए के घर में पेइंग गेस्ट बनकर रहने के बदले स्वयं का एक फ्लैट ले लिया।योग जैसे उसका पैशन था।अपनी संस्था के साथ-साथ श्री कृष्ण प्रेमालय में योग सत्र का संचालन वह खुशी-खुशी करती थी। अत्यधिक व्यस्तता के बाद भी उसने श्री कृष्ण प्रेमालय के स्कूल में योग शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं देने का प्रस्ताव दिया, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया था। आज सूर्य नमस्कार दिवस है और यशस्विनी मंच पर आसीन है। सबसे पहले उसने सूर्यनमस्कार के इतिहास और सिद्धांतों की विद्यार्थियों को विस्तार पूर्वक जानकारी दी।

       सबसे पहले महेश बाबा ने विद्यार्थियों को यशस्विनी की एक बड़ी उपलब्धि की जानकारी दी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अश्विनी को विभिन्न देशों में आयोजित होने वाले योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य प्रशिक्षक घोषित किया था। स्वयं प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर तेजस्विनी को इस चयन के लिए बधाई दी थी।

(क्रमशः)

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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