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1: दुः स्वप्न

28 मई 2023

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     उपन्यास:यशस्विनी:देह से आत्मा तक                                    भाग 1: दु:स्वप्न
                               (1)

  यशस्विनी 21वीं सदी में महिलाओं की बदलती भूमिका विषय पर एक आलेख लेखन में व्यस्त है। अपने लैपटॉप पर हेडफोन से वॉइस टाइपिंग करने के समय वह कई बार भावनाओं में डूबती- उतरती रही। उसने यह महसूस किया 21वीं सदी में महिलाएं अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने को तैयार हैं और जीवन का ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जहां उन्होंने अपनी पहचान स्थापित नहीं की है, अपनी योग्यता सिद्ध नहीं की है,वहीं महिलाओं के विरुद्ध देश में ज्यादती की बढ़ती घटनाओं पर वह बार-बार व्यथित भी होती रही।

  वह शहर के कृष्ण प्रेमालय सामाजिक संस्थान की योग प्रशिक्षक है। अखबारों में भारतीय संस्कृति, योग से लेकर समसामयिक विषयों पर फ्रीलांसर जर्नलिस्ट का भी काम करती है।सार्वजनिक जीवन,घर-परिवार आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका का बारीक विश्लेषण करते हुए वह इस रिपोर्ट को अंतिम रूप देने ही जा रही थी कि न्यूज़ पेग  का एक मटेरियल उसके हाथ लग गया।इसे पढ़कर उसका मन वितृष्णा से भर उठा। खबर थी, चलती ट्रेन में एक युवा महिला से उसके पति के सामने ही सामूहिक….. 

  यशस्विनी घृणा और क्षोभ से भर उठी।वाह रे महिला सशक्तिकरण। नवरात्रि पर कन्याओं और नारियों को पूजने वाले देश में शर्मसार करने वाली एक और घटना और वह भी देश के सबसे बड़े सार्वजनिक परिवहन के साधन में। जब महिलाएं यहां सुरक्षित नहीं हैं तो और कहां होंगी? वॉइस टाइपिंग करते-करते जैसे कुछ समय के लिए वह चेतना शून्य हो गई।…….बस मेरे इस आर्टिकल के साथ बॉक्स में लगाए गए इस न्यूज़ पेग को पढ़कर लोग कुछ देर के लिए ही संवेदना प्रकट करेंगे और दूसरे ही दिन सब कुछ भूल जाएंगे। न्यूज़ पढ़ते-पढ़ते कुछ लोग इसके लिए भी उस महिला को ही दोष देंगे जो एक बड़ी नारकीय यंत्रणा से गुजरी है और जैसे उस वाकये ने उसकी अंतरात्मा को ही रौंद कर रख दिया होगा…..

  यशस्विनी को कुछ नेताओं के अटपटे बयान भी याद आने लगे कि ….इस तरह रात को नहीं निकलना चाहिए …..कि सेफ साइड लेकर ही यात्रा करनी चाहिए ….. कि इस तरह छोटे कपड़े नहीं पहने चाहिए…...कि महिलाओं को पश्चिम की नकल पर जींस नहीं पहननी चाहिए…. . आदि-आदि….. उसने सोचा ये सेफ साइड क्या होता है? क्या महिलाएं घर में कैद होकर रह जाएं... यही सेफ़साइड है…. क्या रात को इतने समय के बाद घर से बाहर न निकलें यह सेफ़ साइड है….. और इस सेफ़साइड का कितनी महिलाएं पालन कर पाएंगी….. आज भी हजारों लाखों महिलाएं मजदूरी करने घर से निकलती हैं...... वनोपज एकत्र करने के लिए अकेले ही वनों में जाती है क्योंकि ये उनकी मजबूरी है….. हजारों- लाखों महिलाएं गांव की सुरक्षित आबादी से दूर खेतों में जाकर कृषि कार्य और कृषि मजदूर के रूप में कार्य करने के लिए विवश हैं….ये उनकी मजबूरी है…. नगर निगम की स्वच्छता कर्मचारियों से लेकर ...मजदूरी….पेट्रोल पंप कर्मियों, अस्पतालों, बैंकों, रेलवे की रात्रिकालीन सेवाओं आदि अनेक जगहों पर महिलाएं रातदिन कार्य कर रही हैं….वे कहाँ-कहाँ सेफ़ साइड लेकर चलें….



                        (2)

      अचानक केबिन में आहट हुई और मनकी ने ट्रे में चाय का कप लेकर भीतर प्रवेश किया। यशस्विनी प्रायः दोपहर बाद किसी समय मनकी के चाय लेकर आने पर उसे देखते ही तरोताजा महसूस करती है और उससे एक दो बातें कर लिया करती है लेकिन अभी वह इस चिंतन प्रक्रिया में ही तल्लीन थी कि बस उसने मनकी को चाय का कप रखकर वापस जाते हुए देखा। उसने चाय का कप उठा लिया।

  यशस्विनी आर्टिकल में प्रयुक्त किए गए डाटा को ध्यान से देखने लगी। जिन लोगों से उसने साक्षात्कार लिए हैं, उसकी सही जगह, वाक्यों की लंबाई आदि पर उसका ध्यान बार-बार जाता रहा।
विषय गंभीर था। कुछ देर के लिए टाइपिंग रोक कर चाय के घूँट नीचे उतारते हुए वह फिर सोचने लगी….
  यह तो हुई अपने घर से बाहर वाली स्थिति…. घर के भीतर भी क्या महिलाओं को समझौते नहीं करने पड़ते? अगर महिला कामकाजी है तो दोनों जगह अर्थात ड्यूटी में और घर में उसे समान दक्षता से कार्य करना होता है... अगर केवल घरेलू महिला है तो कुछ घरों में उसे बार-बार यह ताने भी सुनने को मिलते हैं कि लोग घर और बाहर दोनों जगह काम कर रही हैं और एक तुम हो कि तुमसे केवल घर का काम नहीं सम्हलता…...।

यशस्विनी को कुछ वर्ष पूर्व देश की राजधानी में हुई ऐसी ही एक जघन्य घटना की फिर से याद हो आई….. काम तो बालिग अपराधियों वाला... लेकिन छूट जाना केवल नाबालिग होने के आधार पर...वाह रे इंसाफ़……..........

यशस्विनी अभी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने ही वाली थी कि संस्थान के कंप्यूटर एक्सपर्ट रोहित ने कमरे में आने की अनुमति चाही।
-अरे रोहित जी! आप बाहर क्यों खड़े हैं?इधर आइए।आप मुझसे बिना पूछे भी भीतर आ सकते हैं।
- जी राधे-राधे महोदया।
- राधे-राधे। आप किसी खास कार्य में व्यस्त तो नहीं हैं?
- नहीं कोई खास काम तो नहीं है।संपादक जी का फोन आने पर रूटीन में अगले रविवारीय परिशिष्ट के लिए अपने लेख को अंतिम रूप दे रही थी पर अभी उसमें समय है। बताइए कैसे आना हुआ?
 रोहित एक योग सत्र की तैयारी के संबंध में आए थे।अपनी बात रख कर और योजना पर चर्चा कर वे चले गए।यशस्विनी सोचने लगी कि रोहित के सामने तो  महिला सशक्तिकरण की सारी दलीलें ध्वस्त हो जाती हैं…. कितने अलग हैं रोहित... कभी उन्होंने बेवजह मुझसे कोई बात नहीं की और उनकी नजरें भी कितना सम्मान लिए हुए होती हैं, केवल मेरे प्रति ही नहीं,सभी महिलाओं के प्रति…. न जाने यह बंदा किस मिट्टी का बना है? अगर सारी पुरुष उनके जैसी सोच वाले हो जाएं तो फिर समस्या ही कहां रहेगी?
यह सब सोचती हुई यशस्विनी ने अपने आलेख की अंतिम पंक्ति लिखी और अखबार में प्रेषित करने के लिए अपने ईमेल में लॉग इन किया।

  (क्रमशः)

डॉ. योगेंद्र

( पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद,संस्था, स्थान, नीति, सिद्धांत,समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी)


    

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने पढ़ें मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां 🙏

30 अक्टूबर 2023

deena

deena

आपने एक बहुत बढ़िया प्रश्न उठाया है।अनेक लोगों की दृष्टि में नारी आज भी केवल भोग की वस्तु है। लघु उपन्यास की बहुत बढ़िया शुरुआत।सशक्त कथानक, प्रभावपूर्ण भाषा शैली। पहले भाग के रूप में उत्कृष्ट प्रस्तुति आपकी🙏🙏

30 मई 2023

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

30 अक्टूबर 2023

बहन मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां भी पढ़ें 😊🙏🙏

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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