(15)
पिछले कई दिनों से
अपने निज कक्ष में ध्यान के समय यशस्विनी को विचित्र तरह की अनुभूतियां होती हैं।जब
उसे लगता है कि आज मैं समाज के लिए कुछ उपयोगी कार्य कर पाऊंगी तो वह ध्यान के अंतिम
चरण में बांके बिहारी जी का आह्वान करती है कि वह उसे आसपास के किसी जरूरतमंद व्यक्ति
के बारे में बताएं ताकि अगर वह सक्षम हो तो उस व्यक्ति तक सहायता पहुंचा सके।
थोड़ी देर के ध्यान के
बाद यशस्विनी को दोपहर तक कोई खास प्रेरणा नहीं मिली।वह अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त
हो गई। दोपहर में उसे शहर के जिला अस्पताल जाने का संकेत बार-बार मिलने लगा और एक घंटे
बाद वह जिला अस्पताल के लिए निकल पड़ी।वहां दिनभर और देर रात तक व्यस्त रहने के बाद
जब वह सोने के लिए बिस्तर में गई तो आज के दिन भर की घटना को खास मानकर उसने कलमबद्ध करना चाहा तो उसकी डायरी ने एक अलग तरह के अनुभव
का रूप ले लिया। थोड़ी मेहनत के बाद यशस्विनी ने इसे एक कहानी का रूप दे दिया:-
"आज दीवाली का दिन है। गणेश बहुत खुश है।आज काम पर निकलने के
समय उसने अपनी मां से कहा था-"आज जब तू घर आएगी ना तो मेरे लिए ढेर सारे पटाखे
लेकर आना।"
मां ने कहा- ठीक है गणेश और तू घर में ही रहना-मोहल्ले में भी जाएगा
तो बहुत देर तक इधर-उधर मत खेलना।किसी से झगड़ा मत करना और मैंने दाल भात बना दिया
है। दोपहर होते ही उसे खा लेना। जब मैं शाम को आऊंगी तो तेरे लिए पटाखे और मिठाई दोनों
लेकर आऊंगी।
खुश होते हुए गणेश ने कहा- "ठीक है मां।"
मां काम पर चली
गई।वह एक निर्माणाधीन इमारत में मजदूरी का काम करती है। उम्र लगभग 29 वर्ष। पति को
गुजरे 5 वर्ष हो गए।घर में वह और उसका इकलौता बेटा गणेश है। गणेश घर के पास के प्राथमिक
स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता है। अब तो मां को गणेश के खाने-पीने की चिंता नहीं
होती है क्योंकि सरकारी स्कूल में सरकार के मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत दोपहर भोजन
मिल जाता है।काम पर जाने के समय सावित्री उसके लिए टिफिन के डिब्बे में दो-तीन रोटियां
और अचार का एक टुकड़ा रख देती है।जब सावित्री साप्ताहिक पेमेंट लेकर आती है, उस दिन
गणेश की मनपसंद सब्जी भी बनती है। अगले दो-तीन दिनों तक खाने में स्पेशल बनता है।जब
गणेश घर से बाहर निकलता है,तो छोटी सी उम्र में ही उसे दुनिया का फर्क नजर आ आता है।
मोहल्ले के एक कोने
में एक कमरे के छोटे से अपने झोपड़ीनुमा घर में रहकर गणेश प्रसन्न है, लेकिन जब वह
मोहल्ले के दूसरे हिस्सों में बने विशाल घरों को देखता है तो वह सोचता है कि ऐसा कैसे
हो गया कि हमारे पास रहने के लिए इतना छोटा घर है।वहीं यहां कितने बड़े-बड़े घर हैं,जाने
इसमें कुछ अलग तरह के लोग रहते होंगे। कभी किसी विशाल लौह अलंकृत दरवाजे वाले गेट से
किसी चमचमाती कार को बाहर जाते देखकर भी गणेश विस्मित हो उठता है। स्कूल जाने पर भी
गणेश को अपनी हैसियत का फर्क और समझ में आता है, जब वह अपने दोस्तों को नई- नई चीजों
के साथ देखता है।
गणेश शाम को मां के घर लौटने पर पूछता है- "मां ऐसा क्यों है?
हमारे पास गाड़ी क्यों नहीं है? हमारे पास इतना बड़ा घर क्यों नहीं है?"
"एक दिन हमारे
पास भी बहुत बड़ा घर होगा बेटा और बहुत बड़ी कार होगी। जिसमें तुम रहोगे, तुम्हारी
बहू रहेगी और तुम लोगों के साथ मैं भी रहूंगी।"
बहू का नाम सुनते ही
नन्हा गणेश शरमा जाता और खिलखिला कर हंसता हुआ कहता-यह तुम क्या कहती हो मां?
" पर माँ? यह सब
आएगा कैसे?"
" गणेश जब तुम खूब पढ़ लिख लोगे और तुम्हें बहुत बड़ी नौकरी
मिलेगी तो ढेर सारा पैसा आएगा।उससे यह सब खरीद लेना।"
" अच्छा?" आश्चर्यचकित होकर गणेश कहता।
" और बेटा तुम मुझे अपने साथ रखोगे ना?"
नाराज होकर गणेश कहता है-" यह तुम कैसी बातें करती हो मां।
पर तुम्हारे मन में ऐसा आया ही क्यों?"
"ऐसा इसलिए बेटा, क्योंकि पैसा ज्यादा मिलने पर दिमाग चल जाता
है। आदमी स्वयं को बाकी आदमियों से अलग समझने लगता है और रिश्ते-नाते सब पीछे छूट जाते
हैं।"
" ओह, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा माँ। तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी।
रहोगी न?" मां का हाथ पकड़कर झूलते हुए गणेश कहता।
" हमेशा कैसे गणेश? जैसे तुम्हारे बाबू एक दिन आसमान का चमकता सितारा बन गए थे ना।वैसे
ही एक दिन उस चंदा सूरज के लोक में मुझे भी जाना होगा। तुम देखते हो ना? इतने सारे
सितारे वहां हैं ना,कि हम गिनती भी नहीं कर सकते हैं।"
यह सब सुनकर गणेश भावुक
हो जाता। मां उसे सांत्वना देने के लिए कहती- हट पगले,तू भावुक हो गया। तेरी बहुरिया
तेरे साथ होगी ना, तू अकेले कैसे होगा?
(16)
आज मां अभी तक काम
से नहीं लौटी है। आज लक्ष्मी पूजन का दिन है। गणेश पूरे मोहल्ले का चक्कर लगा आया है।सफेद,
नीले, हरे अलग-अलग रंगों से घर पुते हुए हैं। चारों तरफ स्वच्छता है। कहीं चूने का
प्रयोग तो कहीं डिस्टेंपर और पेंट का। सभी लोगों ने अपनी अपनी हैसियत के अनुसार दीपावली
पर अपने घरों को चमकाया है।मां के साथ घर की सफाई में गणेश ने भी हाथ बंटाया है। परसों
मां ने गणेश को पाक्षिक जेब खर्च के लिए बीस रुपए दिए थे।उससे उसने पास की दुकान से
रंगोली खरीदी है।गणेश आज मां के घर आने से पहले आड़ी तिरछी रंगोली बनाकर उन्हें प्रसन्न
और चमत्कृत कर देना चाहता है।
रंगोली बन गई है।
शाम को 6:00 बज गए हैं।दीया बत्ती का समय हो गया है, लेकिन मां अभी तक नहीं पहुंची
है। आज माँ काम पर जाना नहीं चाहती थी, लेकिन ठेकेदार चाचा ने सुबह- सुबह आकर कहा-दोगुनी
मजदूरी मिलेगी सावित्री, बहुत जरूरी काम है।एक साहब के यहां दीपावली में गृह प्रवेश के काम में थोड़ी
सी फिनिशिंग बची हुई है इसलिए आज तो आ ही जाओ। थोड़ा अधिक पैसे मिलने पर घर के काम
आएंगे यह सोचकर सावित्री ने गणेश को समझाया और काम पर चली गई,अन्यथा लक्ष्मी पूजन के
दिन काम बंद ही रहता है।
गणेश के पड़ोस में रहने
वाले उसके दोस्त गोपी ने आकर पूछा-क्यों यार?तू पटाखा चलाने नहीं चल रहा है?
" यार गोपी, अभी कौन पटाखे चलाता है। अभी तो शाम ही हुई है।
जब रात होगी ना, तो पटाखे चलाने में मजा आएगा।"
" मेरे पास बहुत बड़ा दनाका बम है।" गोपी ने कहा।
" मेरी मां भी राकेट लेकर आ रही है। देखना ऊपर बहुत दूर तक
जाएगा वह रॉकेट।सीधे चंदा मामा को छूकर आएगा।" यह उत्तर सुनकर गोपी खिलखिला कर
हंस पड़ा और दोनों मित्र दूसरी बातें करने लगे थे।
गणेश को भूख भी लग
रही थी। मां अभी तक नहीं पहुंची थी। वह मां के निर्देश के अनुसार घर में ही था और अब
मां की प्रतीक्षा करते दरवाजे पर आकर बैठ गया था। गणेश ने थोड़ी और देर होते देख कर
रंगोली के साथ ही खरीदी गई लक्ष्मी जी, गणेश जी व सरस्वती जी की फोटो को कमरे के पूजा
वाले स्थान पर चिपका दिया था।
(17)
रात लगभग 7:30 बजे
के आसपास घर के दरवाजे पर एक कार उतरी। मुस्कुराते हुए एक युवती कार के बाहर आई। उसने कहा- "हेलो गणेश,में यशस्विनी हूं।तुम्हारी
मम्मी की सहेली।"
गणेश आश्चर्य से
भर उठा। हाथ जोड़कर उसने नमस्ते किया। पहले तो वह आंटी के साथ कार में बैठना नहीं चाहता
था, क्योंकि मां ने समझाया था कि किसी भी अनजान व्यक्ति के साथ कहीं मत जाना।इस पर
यशस्विनी ने मां से फोन पर बात कराई- बेटा,आंटी के साथ चले आओ। हम दिवाली यहीं मनाएंगे
तो थोड़े भय और आश्चर्य के मिले जुले भाव के साथ गणेश कार में बैठ गया।
गाड़ी शहर के जिला
अस्पताल में रुकी।गणेश रुआंसा हो गया। उसने आंटी से पूछा- मेरी मां कहां है ?मुझे अस्पताल
आप क्यों लाई हैं?
कोई उत्तर न देते हुए
यशस्विनी गणेश का हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए उसे भीतर ली गई। एक कमरे में सावित्री
बेड पर लेटी हुई थी। उसके पैर में प्लास्टर लगा था।मां को इस हालत में देखकर गणेश फूट-फूट
कर रोने लगा और दौड़कर उससे लिपट गया।आज काम के समय सावित्री ऊंचाई से नीचे गिर गई थी
और दाहिने पैर की हड्डी टूट जाने के कारण प्लास्टर लगा हुआ था।
मां ने अपने सिरहाने
पर रखा हुआ एक पैकेट गणेश के हाथ में दिया। गणेश के सिर पर मुस्कुराते हुए उसने हाथ
फेरा और कहा- देखो गणेश? क्या है इसमें?
गणेश का मन भारी था
लेकिन माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए उसने पैकेट खोल कर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट
आ गई।उसमें ढेर सारे पटाखे थे और सबसे ऊपर था, उसका पसंदीदा रॉकेट।
यशस्विनी ने कहा-
"गणेश आज हम तीनों दिवाली यहीं मनाएंगे। फिर आप दो दिनों बाद अपनी मां के साथ
घर चले जाओगे ….आओ आप और हम मिलकर रॉकेट चलाते हैं।"
बच्चे अपनी पसंदीदा
चीज पाकर बड़ी से बड़ी पीड़ा भूल जाते हैं। यशस्विनी गणेश का हाथ पकड़कर अस्पताल के
मुख्य द्वार से उसे बाहर ले गई।वहां एक खुली जगह थी, जहां दोनों ने मिलकर रॉकेट चलाने
की तैयारी की और जब रॉकेट आसमान की ऊंचाई पर गया तो गणेश ने मुड़कर अस्पताल के कमरे
की ओर देखकर खुशी से हाथ हिलाया। सावित्री खिड़की के पास आकर हाथ हिला नहीं सकती थी।
उसने दूर से ही बेटे की धुंधली आकृति को देख कर मन में गहरे संतोष का अनुभव किया और
बेड के पास लगे लाइट की स्विच को तीन चार बार चालू व बंद कर गणेश को यह सूचना दे दी
कि मैं तुम्हें पटाखे चलाते हुए देख रही हूँ।घर से बाहर की दुनिया में सावित्री ने
अंग्रेजी के कुछ शब्द सीख लिए थे।उसके होंठ बुदबुदाए- ….हैप्पी दिवाली गणेश।"
आज की घटनाओं को याद
कर यशस्विनी की आंखों में आंसू आ गए और उसने अपनी अंतरात्मा तक में एक गहरे संतोष भाव
का अनुभव किया।
योगेंद्र ©