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योग शिविर का एक भाग 'आत्मरक्षा प्रशिक्षण' भी था।यशस्विनी ने इसके
लिए भारतीय मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू का चयन किया। इसका विचार भी यशस्विनी को एक योग
साधिका के साथ बातचीत में आया। कल शाम योग सत्र की समाप्ति के बाद एक साधिका मीरा ने
यशस्विनी से अकेले में बात करने की इच्छा प्रकट की।मीरा एक कस्बाई शहर में रहने वाली
कॉलेज की लड़की है।प्रायः जब वह कॉलेज की छुट्टी होने के बाद अपने घर लौटती है तो उसे
मनचलों के छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है। घर में माता-पिता दोनों बीमार रहते हैं।
इसी कारण उसे एक मेडिकल स्टोर में शाम की शिफ्ट में पार्ट टाइम जॉब करने को विवश होना
पड़ा है।
मेडिकल स्टोर से उसे
घर लौटते रात को 9:00-9:30 बज जाते हैं।चौराहे से जब वह ऑटो रिक्शा से उतरकर घर लौटती
है तो उसके मन में यह बराबर भय बना रहता है कि कोई छींटाकशी और छेड़छाड़ न कर दे। उसका
घर अंदर तीसरी गली में है और कभी कभी रात अधिक होने के कारण यह रास्ता सुनसान हो जाता
है।ऐसे में वहां किसी पान दुकान के नुक्कड़ वाली जगह पर बैठे लड़के उस पर फिकरे कसते
हैं।
" इतनी रात गए कहां से आ रही हो मैडम जी"
" यू सड़कों पर अकेली न घूमा करो…"
" बेबी आओ तुम्हें घर छोड़ दूं…."
ये लड़के अलग-अलग होते
हैं।कभी कोई तो कभी कोई और नए चेहरे दिखाई पड़ते हैं।यह सब इसी मोहल्ले के बदमाश लड़के
हैं या आसपास के मोहल्ले के बिगड़ैल घरों के किशोर।
मीरा उन्हें देखते
ही घबरा जाती है और तेज कदमों से लगभग दौड़ती हुई
गलियों को पार कर घर पहुंचती है। ऐसे ही एक दिन भागते समय जब सैंडल टूटने से
अचानक उसका पर्स नीचे गिरा तो एक मनचले ने पास आकर पर्स उठाने के बहाने उसका दुपट्टा
लगभग खींचते हुए शारीरिक छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मीरा ने उसे तेजी से झटका दिया।
उसने दुस्साहस करते हुए मीरा का हाथ पकड़ लिया। यह तो भला हो कि मुरारी काका गली के
मोड़ से आते दिखाई दिए और उस लड़के ने तुरंत हाथ छोड़ा और वह तथा उसके साथ वाले लड़के
तेजी से दूसरी गली में गायब हो गए।
मीरा अपने बीमार माता-पिता
से इस बात की चर्चा नहीं करना चाहती है। मोहल्ले की अन्य आंटियों और उसकी समवयस्क लड़कियों
को भी वह यह सब नहीं बताना चाहती है, नहीं तो बात का बतंगड़ हो जाएगा और येन केन प्रकारेण
सारा दोष उसी के ऊपर मढ़ा जाएगा कि उसे नौकरी करने का शौक चढ़ा हुआ है।दो दिनों पहले
उसके कॉलेज में पुलिस पब्लिक कार्यक्रम के अंतर्गत लड़कियों के लिए एक आत्मरक्षा प्रशिक्षण
सत्र का आयोजन किया गया था और जिले की डीएसपी प्रज्ञा मैडम ने अनेक आत्मरक्षा के तरीकों
और मानसिक दृढ़ता की विधियों को डिमांस्ट्रेट कर भी बताया था, फिर भी इस तरह की स्थिति
का मुकाबला करने के लिए मीरा आत्मविश्वास अर्जित नहीं कर पा रही थी। वह सीधे पुलिस
में शिकायत करने से भी बचना चाहती थी। एक आम भारतीय परिवार की लड़की होने की यह बहुत
बड़ी सजा थी। "बिना कारण झंझट क्यों मोल लें' "इससे तो बदनामी ही होगी"..."
रिपोर्ट करने पर अपराधी कहीं बाद में हमसे बदला न लें".... यही सोचकर कई तरह के
अन्याय को एक साधारण भारतीय सहन कर लेता है और इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होते
जाते हैं।
पिछले दो हफ्ते से
मीरा ने मेडिकल स्टोर के रात्रि कालीन ड्यूटी के चौकीदार भैया से प्रार्थना की, कि
वह उसे अपनी गाड़ी से घर तक छोड़ दे। इससे उसे सुविधा तो होने लगी है लेकिन खतरा कम
नहीं हुआ है। कल तो उसने यही नोटिस किया कि अब लड़के चौकीदार भैया को भी नुकसान पहुंचाने
की नीयत रखने लगे हैं। जब गार्ड भैया की मोटरसाइकिल उन लफंगों के पास से गुजरी तो वे
लफंगे चिल्लाकर कहने लगे- कहां कहां से गुल खिला कर आ रही हो मैडम जी?... और अब तो
एक सिक्योरिटी गार्ड भी रख लिया है….. यह तो अच्छा था कि गार्ड भैया ने हेलमेट पहना
हुआ था इसलिए वे उनकी आवाज नहीं सुन पाए अन्यथा उस दिन कोई बवाल हो जाता।
जब कॉलेज में मीरा
को नोटिस बोर्ड में यशस्विनी के योग शिविर का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने अपने मन में
निश्चय किया कि वो किसी भी तरह 15 दिनों के इस प्रशिक्षण सत्र में सम्मिलित होगी।इतने
दिनों के लिए माता और पिता को छोड़कर यूं इस शिविर में आना उसके लिए कठिन फैसला था
लेकिन उसने सोचा कि यशस्विनी जी का योग, अध्यात्म, नारी सशक्तिकरण आदि क्षेत्रों में
बहुत बड़ा नाम है।वे जरूर मेरी सहायता करेंगी।
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योग शिविर शुरू होने
के 2 दिन पहले मीरा ने यशस्विनी से मुलाकात की और अपने घर की सारी स्थिति के बारे में
जानकारी दी। कॉलेज और जॉब से घर लौटने के समय हो रही घटनाओं के बारे में तो उसने नहीं
बताया और केवल पिता के स्वास्थ्य की देखरेख का प्रश्न उठाया।यशस्विनी ने श्रीकृष्ण
प्रेमालय से एक महिला सहायिका को मीरा के घर में नियुक्त करवा दिया और मीरा को अनिवार्य
रूप से योग शिविर में सम्मिलित होने के लिए कहा।
बदमाशों द्वारा की जा
रही छेड़छाड़ का समाचार जानकर यशस्विनी का मन व्यथित हो उठा। उसने विशेष रूप से
मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू के एक योग्य शिक्षक माधवन को त्रिवेंद्रम
से बुलवाया। योग शिविर के आठवें दिन से प्रत्येक शाम को कलरीपायट्टू का प्रशिक्षण शुरू
हुआ और इसके समापन के बाद योग शिविर का प्रश्नोत्तर सत्र शुरू होता था। मीरा ने आत्मरक्षा
के प्रत्येक गुर को बड़ी बारीकी से सीखा। (31)
माधवन कलरीपायट्टु
मार्शल आर्ट के एक योग्य प्रशिक्षक हैं।उन्होंने बिना अस्त्र-शस्त्र के आत्मरक्षा की
इस सर्वाधिक प्राचीन भारतीय तकनीक के बारे में साधकों को जानकारी दी। सभी साधक उस समय
आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से भर उठे जब माधवन ने बताया कि वास्तव में कुंगफ़ु जैसे
चीनी मार्शल आर्ट भी इसी कलरीपायट्टू की उपज हैं।
यह सम्पूर्ण केरल और
तमिलनाडु कर्नाटक के अनेक भागों में अत्यंत प्रचलित मार्शल आर्ट है।'कलारी' प्रशिक्षण
हॉल होता है और पायट्टु का अर्थ युद्ध अथवा व्यायाम होता है। माधवन ने प्रशिक्षण शुरू
होने के पूर्व कलारी के अधिष्ठाता देवता की स्थापना कर विधिवत पूजा-अर्चना भी की।
सबसे पहले पैरों की गति
और फूर्ति के लिए उन्होंने कालकल अर्थात पैर के एदुप्पू अभ्यास को कराया। पैरों की
अनेक प्रकार की गति और प्रहार करने की मुद्राओं और ढंग को देखकर साधक चकित हो रहे थे।कैकुथ्थिप्पयाट्टू
अभ्यास के क्रम में माधवन ने हाथ के प्रहारों को भी पैरों के संचालन के साथ साथ शामिल
किया। किस तरह घूम कर और उछलकर शत्रु पर प्रहार किया जाता है,इसकी अनेक विशिष्ट विधियां
थीं।चुमत्तादी प्रशिक्षण में शत्रुओं के हमले को रोकना और उसकी काट निकाल कर उन्हें
परास्त करने और जवाबी हमले पर ध्यान देना सिखाया गया।ओत्तोथारम के अंतर्गत आक्रमण की
स्थिति में सफल बचाव की तकनीकें बताई गईं।कलरीपायट्टु गति, चपलता ,आक्रमण और बचाव का
एक अद्भुत मार्शल आर्ट है। निहत्था व्यक्ति किस तरह अनेक सशस्त्र लोगों का सामना कर
सकता है और अपनी जीवन रक्षा भी कर सकता है,इसके बारे में माधवन ने विस्तार से जानकारी
दी।
इसके बाद उन्होंने योग
साधकों को इसका व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने साधकों को समझाया कि कलरीपायट्टु
के प्रशिक्षुओं को शत्रुओं के शरीर के दबाव बिंदुओं के बारे में भी पर्याप्त जानकारी
रखना चाहिए, क्योंकि अगर शत्रु अधिक हों और उन्हें निश्चित रूप से धराशाई करना हो तो
शरीर के ऐसे 64 दबाव बिंदु हैं जिन पर विधिपूर्वक हल्की चोट,स्पर्श या प्रहार से भी
उन्हें गंभीर क्षति पहुंचाई जा सकती है। शरीर के सभी 107 मर्म बिंदु अत्यंत महत्वपूर्ण
होते हैं। अब इनका चिकित्सा के लिए भी उचित उपयोग हो सकता है और शत्रुओं को परास्त
कर बुरी तरह घायल करने में भी इनका उपयोग हो सकता है। अगर शत्रु प्राण लेने पर आमादा
हो तो प्रतिकार में इन कुछ विशिष्ट बिंदुओं पर प्रहार करके उनका काम भी तमाम किया जा
सकता है।
माधवन बार-बार योग्य
गुरु के मार्गदर्शन में इस योग शिविर के बाद भी आगे सतत अभ्यास पर जोर देते रहे और
यह भी कहते रहे कि अनावश्यक केवल अपना वर्चस्व दिखाने के लिए और किसी को परेशान करने
के लिए इस कला का उपयोग न किया जाए। इसे केवल आत्मरक्षा के लिए ही प्रयोग में लाना
चाहिए।
प्रदर्शन सत्र के दौरान
मीरा इस बात पर हैरान होती रही कि कैसे मस्तक के एक खास बिंदु पर, गले और कनपटी के
पास, जबड़े में, पेट और हृदय के संधि स्थल,कुहनी आदि के मर्म बिंदुओं पर सटीक हल्का
प्रहार भी किया जाए तो हमला करने वाला अधमरा हो सकता है। उसके अवचेतन मन में कॉलेज
और मेडिकल स्टोर की जॉब के बाद घर लौटते समय उसे सताने वाले लड़कों का स्मरण हो आया।
अब उसका आत्मविश्वास बढ़ने लगा कि इस तरह की परिस्थिति बनने पर वह उन लोगों का साहस
के साथ सामना कर सकती है और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकती है।
उसने पूछा," गुरु जी क्या यह सच है कि इस विद्या का प्रयोग
कर प्राचीन यात्री जंगलों से होकर अपनी यात्रा के दौरान हमला करने वाले डाकुओं का मुकाबला
कर लेते थे"
माधवन ने कहा-"हां,यह बिल्कुल सच है मीरा,और वह भी निहत्थे
ही।"
" क्या एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करने वाले साधु व
बौद्ध भिक्षु भी इस कला का उपयोग करते थे?"
"हाँ, महान बौद्ध भिक्षु बोधिधर्मन ने, जिन्होंने चीन, कोरिया,
जापान आदि में बौद्ध धर्म का प्रचार किया, कहा जाता है कि वे यह युद्ध कला अपने साथ
ही ले गए थे। इसी का परिवर्तित रूप कुंगफ़ु के रूप में वहाँ मशहूर हुआ। वे लगभग 520
से 526 ईस्वीं में चीन गए।वहाँ च्यान या झेन
नामक ध्यान संप्रदाय की उन्होंने स्थापना भी की थी। वे अपनी लंबी यात्राओं के दौरान
निहत्थे ही डाकुओं और अन्य लुटेरों का आत्मरक्षा के लिए मुकाबला कर लेते थे।"
मार्शल आर्ट सत्र की
एक अन्य विधि मल्लयुद्ध की बारीकियों का ज्ञान कराने की भी थी।माधवन ने ही इस प्रशिक्षण
को भी पूर्ण कराया।
(क्रमशः)
योगेंद्र