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18: देह से परे

8 अक्टूबर 2023

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                   18: देह से परे

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             श्री कृष्ण प्रेमालय के स्वयंसेवकों ने कोरोना योद्धाओं के रूप में पूरे समर्पण भाव से अपनी सेवाएं दीं। इस छोटे से शहर के अस्पतालों से होकर सरकार द्वारा बनाए गए आइसोलेशन के सेंटरों तक।कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने पर सरकार ने विद्यार्थियों के खाली छात्रावासों को स्थाई कोविड-19 सेंटर्स में तब्दील कर दिया।विभिन्न समाजों के सामुदायिक भवनों को भी समाज के लोगों ने खुशी-खुशी सरकार को सौंप दिया और स्वयं अपनी ओर से भी वहां के अस्थाई चिकित्सा बेडों में भर्ती मरीजों की सहायता हेतु स्वयंसेवक उपलब्ध कराने लगे।जो कोरोना मरीज सक्षम थे और घर में उनके लिए पृथक कक्ष की व्यवस्था थी,वहां उन्हें किसी डॉक्टर की देखरेख और एक सहायक होने की स्थिति में घर में ही रहकर इलाज कराने की सुविधा दी गई।अनेक मरीज 14 दिनों के भीतर सरकार द्वारा दी जाने वाली निर्धारित दवाईयों की सहायता से स्वस्थ भी होते गए।

    रोहित व यशस्विनी भी फील्ड में कोविड मरीजों वाले वार्ड व अस्पतालों के लगातार संपर्क में रहे,क्योंकि सहायता पहुंचाने के लिए वहां तक जाना आवश्यक होता था। सामुदायिक भवनों के अस्थाई चिकित्सा केंद्रों में भर्ती मरीजों की देखरेख के लिए दोनों को कई बार कई-कई घंटों तक मरीज के साथ रुकना पड़ता था,भले ही डबल मास्क,नियमित सैनिटाइजर के प्रयोग और अन्य सावधानियां बरतते हुए।

     अपनी 15 जुलाई 2020 की डायरी में यशस्विनी ने लिखा," देश में कोविड संक्रमण के मामले बढ़कर 936000 के पार हो गए हैं।भारत में 24000 से ज्यादा लोगों की अब तक मौत हो चुकी है तो 592000 लोग ठीक भी हो चुके हैं….. अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित तीसरा देश है। देश में आज लगातार तीसरे दिन 28 हजार से अधिक नए संक्रमण के मामले दर्ज किए गए….. हे बांके बिहारी जी,कल एक कोविड केंद्र में जाकर मुझे गहरे आत्मिक संतोष की प्राप्ति हुई।हुआ यूं कि अचानक एक मरीज के साथ गांव से आए परिजन ने सहायक के रूप में उसके साथ रुकने से इनकार कर दिय।इस पर मैंने तत्काल सहायक के रूप में अपनी सेवा देने का प्रस्ताव रखा,जिसे चिकित्सा टीम ने स्वीकार कर लिया।….. मेरी कल की रात वहीं गुजरी….. वाकई संक्रमण के गंभीर हो जाने पर मरीज श्वांस लेने में तकलीफ, बेचैनी,हाथ पैर और सिर में तेज दर्द और चेतना शून्यता की स्थिति का अनुभव करते हैं यह सब देखना बहुत त्रासद है….. उनके लिए पर्याप्त ऑक्सीजन सिलेंडरों की व्यवस्था करने में भी प्रशासन और स्वयंसेवकों को बहुत तकलीफ हो रही है……. आज स्वयंसेवकों की हमारी दूसरी टीम के एक सदस्य ने मुझे रिप्लेस किया और मैं घर आ गई हूँ…. प्रधानमंत्री जी ने घोषणा की हुई है कि हमारे वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन तैयार करने पर तेजी से काम कर रहे हैं और इस बारे में 15 अगस्त आते-आते महत्वपूर्ण घोषणा की जा सकेगी….। मैं अनेक फोरम पर कोरोना की दूसरी लहर के बारे में सुनती हूँ।हे ईश्वर…. यह दूसरी लहर हमारे देश में कभी न आए क्योंकि अमेरिका और इटली जैसे देशों में कोरोना की दूसरी लहर में पहली लहर से कहीं अधिक तबाही मचने की आशंका है…..."

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             आखिर कोरोना के काले साए ने यशस्विनी को भी अपनी चपेट में ले लिया। पिछले लगभग डेढ़ महीने से यशस्विनी लगातार कोविड वार्डों और क्षेत्रों के दौरे पर रहती थी और कई बार जाने-अनजाने संक्रमित लोगों के नजदीक से भी गुजरती। इसके अलावा दिनभर की भागदौड़ और थकान के कारण उसके शरीर पर भी विपरीत असर पड़ा होगा।आज दोपहर जब एंटीजन टेस्ट किया गया तो उसका परिणाम पॉजिटिव निकला।उसे स्वादहीनता और गंधहीनता जैसे लक्षण भी नहीं थे।हल्की खांसी, जुकाम और बुखार जैसे अन्य लक्षण भी दूर-दूर तक नहीं थे।शाम को उसके मोबाइल पर एंटीजन टेस्ट के पॉजिटिव होने का संदेश आया और वह थोड़ी देर के लिए अवाक रह गई। उसे भी कोरोना है और चीन के वुहान शहर से सात महीने पहले शुरू हुआ यह संकट अब घर-घर तक पहुंच गया है।वह एसिम्पटोमेटिक है अर्थात बिना लक्षण वाली मरीज...।

          देर शाम को स्वास्थ्य विभाग की कोविड टीम एंबुलेंस लेकर घर पहुंच गई और यह भी संयोग था कि उसी समय रोहित अचानक यशस्विनी के घर पहुंच गया।यशस्विनी घर में अकेली थी और मेडिकल टीम उसे अस्पताल में भर्ती होने चलने के लिए कहने ही वाली थी कि वहां रोहित आ गया। मेडिकल टीम को वहां देख कर रोहित सारा माजरा समझ गया। यशस्विनी अस्पतालों की भीड़भाड़ जानती थी….क्षमता से अधिक रोगियों के कारण सबकी समुचित देखरेख हो पाना संभव नहीं है इसलिए वह घर में ही आइसोलेशन में रहना चाहती है लेकिन यहां भी तो वह अकेली ही है…

उसने टीम से कहा, "मैं होम आइसोलेशन में रहना चाहती हूं….।"

    मेडिकल टीम के सदस्य ने कहा,"वह तो ठीक है लेकिन आपके साथ यहां कौन रहेगा?" 

   इस पर रोहित ने तपाक से कहा,"अगर यशस्विनी निजी अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहती हैं तो वह होम आइसोलेशन में रहेंगी और अटेंडेंट का काम मैं कर लूंगा क्योंकि मैं हूं उनका रिलेटिव…."

      मेडिकल टीम के एक सदस्य ने यशस्विनी और रोहित को कई अवसरों पर रोगियों की सेवा करते हुए देखा था अतः उन्होंने इस बारे में आगे और पूछताछ नहीं की। उन्होंने इतना ही कहा कि हम कल आकर तुम्हारी भी जांच करेंगे और टीम के सदस्यों ने होम आइसोलेशन का फॉर्म व कोविडरोधी दवाइयों की किट सुरक्षित दूरी पर रख दी। रोहित ने कहा कि वे होम केयर वाले डॉक्टर से यह फार्म भरवाकर और अन्य विवरण वाली प्रविष्टि कर कोविड-19 टीम को व्हाट्सएप करेंगे….. मेडिकल टीम ने जाते-जाते दरवाजे पर लाल रंग का कोविड चेतावनी पोस्टर भी लगा दिया।

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      मेडिकल टीम के जाते ही यशस्विनी रोहित पर नाराज हो गई कि आपने यहां रहने का प्रस्ताव क्यों दिया? मेरे साथ आप स्वयं को रिस्क में क्यों डाल रहे हो? लेकिन यशस्विनी ने उनकी एक नहीं सुनी और जरूरी सामान लेकर तुरंत अंदर वाले कमरे में शिफ्ट हो गई।जब कक्ष को व्यवस्थित करने और बिस्तर लगाने के लिए रोहित ने अंदर आने की कोशिश की तो यशस्विनी ने उसे भीतर से चिल्लाकर रोक दिया और कहा, "रोहित, आप दरवाजे के बाहर से ही मेरी सेवा करें।" यह कहती हुई वह मुस्कुरा उठी।

    रोहित ने यशस्विनी से कहा,"अगर तुम्हें थोड़ा भी असामान्य लग रहा हो यशस्विनी तो हम लोग तुरंत अस्पताल चलेंगे,मुझसे कुछ भी छुपाना नहीं।"

 "अरे बाबा,नहीं छिपाऊँगी क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?"

" ऐसी बात नहीं है,यशस्विनी,यह बीमारी है ही इतनी खतरनाक कि अब तुम्हें हर पल ऑब्जरवेशन में रहना होगा … 14 दिनों तक और हर घंटे अपने बुखार,ऑक्सीजन लेवल और पल्स की जांच करती रहनी होगी…. मैं अभी मार्केट गया और यह सब सामान व फल वगैरह लेकर आया….।"

      रात को रोहित ने बड़े मनोयोग से यशस्विनी के लिए रोटियां बनाईं लेकिन यशस्विनी को अब थोड़ा असामान्य लगने लगा था। रात को 9:30 बज रहे थे। थर्मामीटर ने 100 क्रॉस किया लेकिन ऑक्सीमीटर की जांच में ऑक्सीजन लेवल 98 पर था जो बहुत बढ़िया था और पल्स भी अभी तक नॉर्मल थी।उसने जब रोटी खाने में अनिच्छा जाहिर की तो रोहित तुरंत दलिया बनाकर ले आया ।एक छोटी कटोरी में यशस्विनी ने थोड़ा सा ही दलिया पिया।रोहित भोजन कराने और दवाइयां निकाल कर देने के लिए यशस्विनी के रोकने के बाद भी कुछ सेकंड के लिए तेजी से कक्ष में आया और सब व्यवस्था कर तुरंत लौट गया। इस वजह से यशस्विनी नाराज हो गई।

      रोहित ने कमरे के बाहर से ही अपने हाथ और शरीर के अन्य अंगों को पूरी तरह से सैनिटाइज कर बताया और कहा, देखो मैं डबल मास्क पहने हुए हूँ…...। यशस्विनी ने रोहित से यह शपथ ली कि वह 14 दिनों तक कक्ष के भीतर प्रवेश नहीं करेगा और उसने पानी गरम करने के लिए इंडक्शन चूल्हे,कुछ बर्तनों और भाप मशीन को कमरे के भीतर ही मँगवा लिया।

     रोहित कक्ष के बाहर ही एक आराम कुर्सी पर पसर गया और वह वहीं से बीच-बीच में यशस्विनी से बातें करने लगा।यशस्विनी ने उसे बार-बार कहा कि दूसरे कमरे में जाकर सो जाओ लेकिन वह नहीं माना।रोहित महेश बाबा को यशस्विनी के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देना चाहता था लेकिन यशस्विनी ने मना कर दिया कि आज नहीं, कल सुबह मैं उन्हें फोन करूंगी और उन्हें इसकी जानकारी दूंगी।

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       रात्रि 12:00 बजे के बाद रोहित और यशस्विनी दोनों को झपकी आने लगी,लेकिन रोहित हर दो घंटे में एक बार फीवर,ऑक्सीजन लेवल और पल्स की जांच करना चाहता था….. अर्ध निद्रा की अवस्था में रोहित का ध्यान कुंडलिनी जागरण की ओर चला गया ….एक स्त्री और पुरुष …..नहीं…. रोहित ने सोचा स्त्री-पुरुष क्यों?.... केवल विवाह के बाद पति और पत्नी ही आध्यात्मिक जागरण के लिए और जनकल्याण के लिए कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने की कोशिश करें…... ध्यान अवस्था में थोड़ी दूरी पर बैठकर दोनों एक दूसरे के मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करें…. ऐसे में पति और पत्नी दोनों की धनात्मक ऋणात्मक शक्तियां सर्पाकार जुड़ जाती हैं... जिस प्रकार पिंगला और इड़ा नाड़ियों का सुषुम्ना से मेल होता है और यह एक से दूसरे चक्र में होती हुई सहस्रार तक पहुंचती है, जहां चेतना है आनंद है, स्वास्थ्य है ,प्रेम ही प्रेम है,प्रेम का साम्राज्य है…...

उधर यशस्विनी अपनी चेतना धीरे-धीरे खोने लगी …..यह जागरण है या स्वप्न?..... उसे लगा जैसे उसकी सांसें उखड़ रही हैं…..उसे तेज ज्वर का अनुभव हुआ …..उसे सीने में जकड़न का एहसास हुआ। लगा जैसे पूरा कमरा घूम रहा है और कमरे से बाहर बैठे रोहित की आकृति भी अब धुंधली होने लगी। वह समझ नहीं पा रही है कि क्या हो रहा है उसने रोहित को आवाज देना चाहा लेकिन मुंह से आवाज भी नहीं निकल पाई ।यशस्विनी ने ध्यान में डूबने की कोशिश की लेकिन वह ध्यान लगाना ही जैसे भूल गई हो। मूलाधार…………..स्वाधिष्ठान आज्ञा चक्र नहीं….नहीं पहले मूलाधार……. वह मूर्छित होने लगी।सपने में बचपन की अनेक बातें याद आने लगी। पांच साल की उम्र की यशस्विनी महेश बाबा का हाथ पकड़े भगवान बांके बिहारी जी और राधा जी की मूर्ति के सामने खड़ी है। वह पूछ रही है-ये जगत माता पिता हैं लेकिन क्या ये मेरे भी माता-पिता हैं?

……हां यशस्विनी…

 तो ये मेरे पुकारने पर मेरे सामने क्यों नहीं आते ?

…….नहीं ऐसा नहीं है बेटी…वे कभी अदृश्य आकर सहायता करते हैं, कभी किसी और रूप में आ जाते हैं और कभी-कभी तो प्रत्यक्ष भी होते हैं ।बस हमें उन्हें देखने के लिए दृष्टि चाहिए।

…….. यशस्विनी की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। वह ध्यान में डूबने की कोशिश करने लगी। उसे थोड़ी ही देर बाद अद्भुत दृश्य दिखाई देने लगे। ध्यान मुद्रा में बैठे हुए त्रिशूल और डमरू धारी भगवान महादेव और मां पार्वती दिखाई पड़े। आदिदेव और आदिशक्ति कैलाश के उच्च शिखर पर विराजमान……… उन्हें वहां देखकर यशस्विनी दंडवत हो गई है।उठ कर जैसे ही उसने अपनी आंखें खोली……. उसे प्रेम और सौंदर्य के सबसे बड़े स्रोत भगवान बांके बिहारी जी और राधिका जी दिखाई पड़े………. बांसुरी बजाते हुए मोर पंखधारी बांके बिहारी जी और उनके साथ खड़ी हुई नीले वस्त्रों में राधिका जी ……..फिर एक बार आनंद का अद्भुत लोक।यशस्विनी के दोनों हाथ जुड़ गए।आंखों से आंसू बहने लगे। बहुत देर तक यशस्विनी जागरण और स्वप्न दोनों की अवस्था में ……इसी भाव लोक में रही ।रोहित भी कमरे से बाहर उसी अर्ध जागरण की अवस्था में उनींदे लेटा हुआ था ।जब वह कुछ क्षण को चैतन्य होता तो उसे लगता यशस्वी के सानिध्य में भी वह योग साधना और ध्यान में अधिक मेहनत नहीं कर पाया और अभी भी बहुत सी चीजें उसे सीखनी है और ध्यान में वह बहुत पीछे चल रहा है ……..अचानक अंदर से यशस्विनी के चीखने की आवाज आई….. रोहित अचानक घबरा कर उठा और तेजी से सभी कोरोना पाबंदियों को दरकिनार करते हुए भीतर की ओर भागा….यशस्विनी बिस्तर पर अचेत सी पड़ी थी….. उसकी आंखें बार-बार खुल और बंद हो रही थी….

 रोहित ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर  कहा,"चिंता मत करो यशस्विनी मैं आ गया हूं….."

 कराहते हुए यशस्विनी ने कहा,"तुम भीतर क्यों आए रोहित? तुम वापस जाओ?..."

रोहित ने संयत होते हुए रुंधे गले से कहा, "....इसलिए... इसलिए यशस्विनी कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं…."

जैसे यशस्विनी के ओंठ बुदबुदाए,

".... मैं भी रोहित…. तुम्हें….।"

       इतना कहकर यशस्विनी की आंखें बंद होने लगीं….. रोहित ने जाँचा….  बुखार 102 क्रॉस कर रहा था... ऑक्सीजन लेवल गिरकर 55 से नीचे और पल्स भी असामान्य…... यह देखकर रोहित घबरा गया।उसने यशस्विनी के सिर को हल्के से झिंझोड़ा…. यशस्विनी ने बड़ी मुश्किल से आंखें खोली और कहा,

  " मैं जा रही हूं रोहित... तुम अपना ध्यान रखना….. महेश बाबा का भी और आश्रम के बच्चों और अन्य लोगों का भी….."

  रोहित ने मेडिकल इमरजेंसी के लिए फोन लगाना चाहा तो यशस्विनी ने इशारे से मना कर दिया और कहा, "मेरे पास समय कम है…."

" ऐसा मत कहो यशस्विनी…. मैं अभी भगवान बांके बिहारी का ध्यान करता हूं योग चक्र में तो मैं अधिक ऊपर नहीं उठ पाया लेकिन उनकी कृपा से उनके ध्यान से एक क्षण में ही वे मुझे सारे चक्र पार कराकर अपने पास सहस्त्रार में पहुंचा देंगे और मैं अगले ही पल वहां उनसे तुम्हारा तुरंत स्वस्थ होना मांग लूंगा …..बस अभी कुछ ही सेकंड में……. तुम बस अपनी चेतना बनाए रखना……….. भगवान बांके बिहारी  कृपा अवश्य करेंगे…और... तब तक एंबुलेंस भी आ जाएगी…. हमारे मेडिकल साइंस और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी सभी चीजों का हल है….. बस तुम धैर्य बनाए रखो…. भगवान बांके बिहारी इतना बड़ा अन्याय नहीं होने देंगे…. बस तुम स्वयं को कुछ देर के लिए ही जाग्रत रखो... उनकी कृपा अवश्य होगी।"

कोरोना ने कहीं पर तो कोई नुकसान नहीं किया ,केवल स्पर्श कर ही निकल गया तो कहीं प्रभावित लोगों को इलाज करवा कर स्वस्थ होने का मौका भी दे दिया और कहीं-कहीं तो कुछ ही घंटों में स्थिति पूरी तरह से बिगड़ गई …….जैसा एकदम स्वस्थ अश्विनी के साथ अचानक हो रहा है। यही इस महामारी  की एकदम अनिश्चित प्रकृति है। कोविड-19 से संघर्ष को अभी 5 से 6 महीने ही हुए हैं। जुलाई 2020 और ना जाने कोई दूसरी लहर जिसकी वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं, आएगी तो आगे क्या-क्या दिन देखने पड़ेंगे ।शायद इस कोविड-19 पर फिलहाल किसी का बस नहीं है। बस हम सब बचे हैं तो बचे हुए हैं।मास्क,सैनिटाइजर, सुरक्षित दूरी तब तक जरूरी है,जब तक वैक्सीन नहीं आती है ।अभी तो इसके लिए अनुसंधान अपने प्रारंभिक दौर में है और शायद वैक्सीन आने के बाद भी आगे कई वर्षों तक मानवता को सतर्कता और सावधानियों के साथ ही जीना होगा।    

कमरे में वातावरण अत्यंत भावुक है और पढ़े-लिखे रोहित को सूझ नहीं रहा है कि वह क्या करे।शायद उसके लिए यह अपने प्राणों से भी प्रिय यशस्विनी के चिर विछोह की बेला है। शायद कुछ ही सेकंड में सब कुछ बदल जाने वाला है। बड़ी कठिनाई से रोहित का हाथ अपने हाथों में लेते हुए  यशस्विनी ने कहा, "मुझे प्रॉमिस करो कि मैं रहूं या ना रहूं ,तुम सामान्य जीवन जीओगे… विवाह…. जनसेवा…. आदि सभी जीवन के संस्कार और लक्ष्य पूरे करोगे…... हमेशा सकारात्मक रहोगे…. कभी टूटोगे नहीं…. योग और सादगी के भारतीय परंपरागत संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करोगे ।भारत को सफल सक्षम समर्थ बनाते  रहोगे…..।"   

       यशस्विनी के आखिरी के कुछ वाक्यों और अस्पष्ट वाणी को रोहित ने केवल  उसके होठों की गति के आधार पर समझा…डबडबाई आंखों से रोहित ने कहा हां-हां यशस्विनी. इसके बाद  रोहित के शब्दों से वाक्य पूरा होते-होते यशस्विनी की आत्मा भगवान बांके बिहारी जी के दिव्य लोक के लिए प्रस्थान करने लगी। उसकी पुण्य आत्मा ऊपर बहुत ऊपर उठी। ऊपर आकाश में बांके बिहारी जी की विशालकाय छवि उभरी और यशस्विनी की आत्मा का चमकीला प्रकाश देखते ही देखते इसमें समा गया……… यशस्विनी इस दुनिया और सांसारिक संबंधों से ऊपर….. बहुत ऊपर उठ चुकी थी…….।

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            15 दिनों के बाद श्री कृष्ण प्रेमालयम में गेरुए वस्त्र पहने रोहित को महेश बाबा ने अपने चरणों से उठाया और कहा,

"ठीक है रोहित….. तुम साधना के लिए हिमालय क्षेत्र के मठों में जाना चाहते हो तो जाओ…. लेकिन मैं तुम्हें केवल 6 महीने दूंगा। ठीक 6 महीने बाद तुम्हें वापस मेरे पास यहां आकर अपनी उपस्थिति देनी होगी।"

रोहित ने हाथ जोड़कर प्रणामकर और पुनः झुकते हुए कहा,"जो आज्ञा गुरुवर।"

     10 दिनों के बाद रोहित हिमालय क्षेत्र में दुर्गम ऊंचाई पर स्थित एक मठ की ओर पैदल चढ़ाई कर रहे हैं। बाएं हाथ में लाठी है और उसने दाहिने हाथ से पीठ में टंगे अपने थैले को पकड़ रखा है ।अगस्त 2020 का महीना है। मानसूनी हवाओं और बारिश के प्रभाव से अब तक अछूते रहने वाले इस हिमालई क्षेत्र में हमेशा ठंडक बनी रहती है। ऊंचे हिमालय की एक झील के पास रोहित को ब्रह्म कमल खिले हुए मिले, जिनका दिखता दुर्लभ होता है। रोहित ने चढ़ाई में काम आने वाली अपनी लाठी एक पत्थर पर टिकाई ।पोटली को किनारे रख झील के किनारे बैठकर इन कमलों को निहारते हुए रोहित का मन थोड़ी देर के लिए प्रकृति से गहरे तादात्म्य की अनुभूति में डूब गया।झील के पास में धवल पर्वतों की ऊंचाई में उसे ऐसा लगा,जैसे यशस्विनी मुस्कुरा रही हो। मानो कह रही हो…. मैं तुम्हारे ही आसपास हूं रोहित …..और मेरी संवेदनाएं सदैव तुम्हारे साथ हैं….. और तुम पर कभी कोई विपत्ति आएगी ना रोहित,तो भगवान बांके बिहारी की अनुमति लेकर उनके चरणों से उठकर दौड़कर सीधे तुम्हारे पास पहुंच जाया करूंगी। अचानक रोहित को एक अद्भुत अनुभूति हुई।रोहित ने यशस्विनी को अपनी धमनी और शिराओं में और नस नस में अनुभव किया। यशस्विनी की पवित्र आत्मा का एक अंश मानो सदा सदा के लिए रोहित की आत्मा से एकाकार हो उठा हो। रोहित ने यशस्विनी को स्वयं में अनुभव किया।वह एक नई ऊर्जा और आंतरिक शक्ति से भर उठा।यशस्विनी के आभास वाली दिशा की ओर रोहित का दाहिना हाथ आसमान में अनायास गया….. जैसे रोहित  यशस्विनी का अभिवादन कर रहा हो…….।

 

 

           

 

 

                             (समाप्त)

 

योगेंद्र©

 

(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)

( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों, मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास न करें। वर्णित योग ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यास मार्शल आर्ट आदि की सटीकता का दावा नहीं है लेखक ने अपने अध्ययन सामान्य ज्ञान तथा सामान्य अनुभवों के आधार पर उनकी साहित्यिक प्रस्तुति की है)

(लेखक कोविड-19 समेत समस्त रोगों के उपचार में एलोपैथी,आयुर्वेद और होम्योपैथी समेत सभी मान्य चिकित्सा पद्धतियों के उपचार का समर्थन करता है और भारत की केंद्रीय सरकार तथा विभिन्न प्रदेश की सरकारों के समस्त कोविडरोधी प्रोटोकॉल का पालन करता है।इस काल्पनिक उपन्यास के किसी भी अंश के विवरण का रोगों के इलाज आदि में मानक रूप में अनुसरण न किया जाए। सदैव डॉक्टरों की सलाह का पालन किया जाए।)

            

              

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

     

 

 

 

 

 

           

 

 

   

 

 

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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17 सितम्बर 2023
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24 सितम्बर 2023
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8 अक्टूबर 2023
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