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16: एक अज्ञात भय  

24 सितम्बर 2023

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          16: एक अज्ञात भय

 

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            फरवरी 2020 के दूसरे सप्ताह में एक खबर पर यशस्विनी का ध्यान अटक गया। उसने ध्यान से पढ़ा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नोबेल कोरोनावायरस बीमारी को एक महामारी घोषित किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन कुछ रोगों को लेकर पहले के वर्षों में ऐसा कर चुका था और उसने इस मामले को बहुत गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन कुछ देर के लिए वह विचार में डूब गई ।कहीं स्वाइन फ्लू, इबोला वायरस जैसी एक और बड़ी बीमारी तो विश्व में दस्तक नहीं दे रही है? उसे याद आया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 वर्ष पहले एच 1,एन 1 बीमारी को लेकर पांचवी बार आपात स्थितियों की घोषणा की थी और अब यह छठी स्थिति है। यशस्विनी ने अखबार ध्यान से पढ़कर तारीख को देखा। यह 30 जनवरी 2020 अर्थात लगभग 12 से 13 दिन पहले की घोषणा है। उसने सोचा यह निमोनिया का ही एक प्रकार होगा और भारत में पिछली बीमारियों ने बहुत बड़े पैमाने पर दस्तक नहीं दी थी, इसलिए यशस्विनी ने इस खबर पर विशेष ध्यान नहीं दिया।

     बसंत पंचमी के बाद मौसम में परिवर्तन होने लगा था और कड़ाके की ठंड के बाद अब धीरे-धीरे वातावरण में थोड़ी उष्णता का अहसास होने लगा था। साधना के स्तर पर यशस्विनी और रोहित दोनों ही ऊपर उठ रहे थे।दोनों के हृदय में एक दूसरे के लिए प्रेम का अंकुरण हो चुका था लेकिन दोनों ही इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। प्रेम के साथ यही एक विशेष बात है कि यह जीवन में जितनी कल्पनाएं लेकर आता है,मनुष्य को सपनों की दुनिया में विचरण कराता है,यथार्थ पर उसे परिलक्षित होते हुए देखना उतना ही कठिन होता है।

  किशोरावस्था के प्रेम में केवल और केवल भावनाएं होती हैं,जैसे हृदय किसी की बस एक मुस्कुराहट देख लेने पर सारे जहां की खुशियां मिल जाने की कल्पना कर लेता है।किताब के पन्ने में दबे हुए गुलाब के फूल इस तरह सहेज कर रखे जाते हैं जैसे इश्क में ताजमहल जैसी कोई बेजोड़ चीज मिल गई हो। प्रेम पत्र लिखने की कोशिश में कुछ एक प्रेमियों के द्वारा न जाने 200 पेज की कॉपियों के कितने पन्ने फाड़कर फेंक दिए जाते हैं।इनमें बस किसी में एक शब्द तो किसी में दो या तीन शब्द ही लिखे होते हैं और कभी-कभी तो सारी रात बीतने पर भी एक लाइन पूरी नहीं हो पाती है। यशस्विनी को अपने स्कूल के दिनों की याद आई जब स्कूल में हिंदी के शिक्षक सुबोध सर ने एक लड़की को प्रेम पत्र के साथ पकड़ा था। यह प्रेम पत्र वह जिसे देना चाहती थी, उसे हस्तगत नहीं हो पाया था कि कॉपी जांचने समय सर की दृष्टि इस पर पड़ गई।बड़ी समझदारी के साथ उसका सार्वजनिक वाचन कर उस लड़की को शर्मिंदा करने के बदले उन्होंने बच्ची को अलग से बुलाकर बातचीत की। बाद में उस लड़की ने बताया कि सर ने उससे एक ही वाक्य कहा- बेटी, जब तुम किसी को इस तरह की बातें लिखो तो मन में बस एक ही बात का विचार कर लेना,अगर इसे एक पोस्टर बनाकर शहर की सार्वजनिक जगहों पर टांग दिया जाए तो इसे देखकर पढ़ने वालों की क्या प्रतिक्रिया होगी। अब तुम खुद सोचो जिस चीज को तुम सबके सामने कह नहीं सकती हो, तो क्या वह चीज तुम्हारे लिए वास्तव में हितकर होगी?

 

      इस घटना का विवरण प्राप्त होने के बाद यशस्विनी के मन में कभी-कभी इस तरह के खयालात उठते भी थे तो अब हमेशा के लिए गायब हो गए।…... इन बातों को याद कर यशस्विनी मुस्कुरा उठी।….एक बार स्कूल में एक नए लड़के के दाखिला होने पर साथ पढ़ने वाली लड़कियों ने उसे छेड़ा,"अब शायद यह लड़का तुम्हें पसंद आ जाए..  । " इस पर 11वीं कक्षा की यशस्विनी ने जवाब दिया, "क्यों भला? मैं इसे लेकर ऐसा क्यों सोचूँ? यह तो पूरा किताबी कीड़ा है।"

इस पर प्रिया ने यशस्विनी को छेड़ते हुए कहा, "अरे नहीं यशी,तुम नहीं जानती। जब तुम किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़ी होती हो तो यह पढ़ाकू महाराज एकटक तुम्हारी ओर देखते रहते हैं।"

"अरे, तो इसमें कौन सी नई बात है"

"नई बात इसलिए है यशस्विनी कि यह महाशय और लोगों के उत्तर देने के समय ऐसा नहीं करते।"

"धत, ऐसा कहती हुई यशस्विनी शरमा गई थी।"

    यशस्विनी के मन में भी उस लड़के के प्रति कोमल भावनाएं जगने लगी। वह सोचने लगी, कितनी जल्दी यह लड़का मैथ्स के प्रॉब्लम सॉल्व कर लेता है…..लेकिन इस प्रेम कहानी का अंत बहुत जल्द हो गया जब वैलेंटाइन डे के दिन उस लड़के ने रिसेस में जाकर रिनी मैडम को एक सुर्ख़ गुलाब का फूल भेंट कर दिया।लेकिन आकर्षक व युवा रिनी मैडम का रिएक्शन आशा के विपरीत था, जब उसने कहा- थैंक यू बेटा, गॉड ब्लेस यू।

 

    उस दिन दो दिल टूटे थे। यशस्विनी का उस लड़के की तथाकथित चीटिंग के प्रति और दूसरा उस लड़के का अपनी फेवरेट टीचर के प्रति। यशस्विनी वर्तमान काल में लौट आई।…... कल भी वैलेंटाइन डे है और श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में कल ही उसे प्रार्थना सभा में विशेष व्याख्यान देना है।

 

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     आज श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में योग के कार्यक्रम का आयोजन है।आज वैलेंटाइन डे भी है। यशस्विनी सोचने लगी पश्चिमी संस्कृति और विवरण के अनुसार यह संत वैलेंटाइन द्वारा प्रेम को बढ़ावा देने के लिए किए गए त्याग और बलिदान को लेकर मनाया जाता है। इस दिन युवा अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। इस दिन को अपनी तरह से मनाने वाले लोग भी अपनी जगह सही हैं।बस इस दिवस को लेकर कुछ लोगों द्वारा प्रेम का फूहड़ प्रदर्शन उसे खटकता है…. यह दिन क्या, किसी भी दिवस- दिन में कोई भौंडा प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से कभी नहीं होना चाहिए।…..अगर कुछ लोग ऐसा करते हैं तो वे वहां गलत हैं।मर्यादापूर्ण ढंग से रहने घूमने फिरने की सबको स्वतंत्रता है।

 

       वह सोचने लगी, हमारी संस्कृति में प्रेम की अवधारणा सांसारिक प्रेम से अलग विस्तृत है।यह एक व्यक्ति से शुरू होकर सृष्टि के कण-कण व ब्रह्मांड की परिधि तक जाता है।इसमें उदारता है, इसमें संकीर्णता नहीं है। इसमें सांसारिक और दैहिक प्रेम के बदले आत्मिक तत्व है। यहां प्रेम के लिए कोई एक दिन तय नहीं है बल्कि हर दिन…. हर पल प्रेममय है। स्वयं भगवान कृष्ण प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक हैं। यहां प्रेम अपने परिवार, समाज, राष्ट्र से लेकर बढ़ते-बढ़ते पूरी वसुधा और इसमें रहने वाले प्रत्येक चराचर प्राणी तक हो जाता है।

      उसे याद आया कॉलेज में उसकी सहेली सीमा ने वैलेंटाइन डे के दिन उसे छेड़ते हुए कहा था, "क्यों यशी, क्या तुम्हारे जीवन में किसी राज का आना नहीं हुआ है?"

यशस्विनी ने कहा, "नहीं सीमा, न मैं सिमरन हूं, न मेरे जीवन में ऐसा प्रसंग कभी आएगा कि कोई राज किसी चलती ट्रेन में दरवाजे पर खड़ा होकर अपना हाथ आगे बढ़ाएगा और मुझसे चढ़ने के लिए कहेगा और मैं दौड़कर पायदान से होते हुए बोगी में पहुंच जाऊंगी और इस राज के गले लग जाऊंगी…..।"

सीमा," यशस्विनी,तो क्या तुम्हारा क्रश उस विवेक पर नहीं है, जिसके साथ तुम लायब्रेरी में बैठकर नोट्स वगैरह बनाती रहती हो।"

" अरे नहीं बाबा क्रश जैसी कोई बात नहीं है।वह पढ़ाकू है और महत्वाकांक्षी भी। अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ना चाहता है इसलिए मैं भावनात्मक रूप से किसी के भी साथ इतना आगे नहीं बढ़ना चाहती हूं…. विवेक के साथ भी नहीं…. बस हम अच्छे दोस्त हैं।"

      यशस्विनी को विवेक अच्छा तो लगता था, जैसे उसका धीर गंभीर होना, शांत स्वभाव का होना, तार्किक होना, उसके द्वारा महिलाओं का सम्मान करना, बढ़कर किसी भी व्यक्ति की मदद करना ….लेकिन वह आत्मकेंद्रित युवक था... उसके जीवन में पहला और अंतिम प्यार उसका कैरियर ही है, ऐसा उसका अनुमान था, इसलिए उसे पसंद करने के बाद भी वह दूसरे एंगल से नहीं सोचना चाहती थी…….

    …. यशस्विनी का अनुमान एकदम सही निकला।ग्रेजुएशन पूरा होते-होते कैंपस सिलेक्शन में ही उसका चयन देश की शीर्ष अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी में वैज्ञानिक के पद पर हो गया और उसने जाने के समय भी उसी गंभीरता का परिचय दिया और फोन करना तो दूर एक बार भी उससे मिलना गंवारा नहीं समझा। इस स्थिति के लिए यशस्विनी पहले ही मानसिक रूप से तैयार थी। यशस्विनी को कुछ वर्ष पूर्व मार्च 2009 में मराठा चित्र मंदिर मुंबई में इस फिल्म के 700 सप्ताह पूरे होने पर एक विशेष शो में देखी गई इस फिल्म का एक-एक दृश्य उसे याद आने लगा….. तब यशस्विनी स्कूल के साथ मुंबई के शैक्षणिक भ्रमण पर थी।

        श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में यशस्विनी मंच पर है और आगे कतारबद्ध सैकड़ों बच्चे हैं।सदैव की भांति प्रार्थना सभा की शुरुआत "हे शारदे मां... हे शारदे मां, अज्ञानता से हमें तारदे मां...

"की सुमधुर प्रार्थना से हुई। इसके बाद एक छात्र ने आज का सुविचार प्रस्तुत किया।दो विद्यार्थियों ने आज के समाचारों के अंतर्गत देश,दुनिया और खेल की सुर्खियां पढ़ीं ।इसके बाद विशेष कार्यक्रम में एक बच्ची ने चीन के वुहान शहर से फैलने वाले एक विशेष तरह की महामारी कोरोनावायरस की जानकारी दी। इसे सुनकर यशस्विनी को देश में कठिन दिनों की आहट सुनाई देने लगी।

वह विशेष प्रस्तुति एक आलेख का वाचन ही थी जिसमें उस छात्रा ने कुछ ही दिन पहले 30 जनवरी 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस विशेष तरह के फ्लू को महामारी घोषित करने की जानकारी दी गई थी।साथ ही यह भी बताया गया था कि चीन के अनेक शहरों में लॉकडाउन लगाया गया है और लोग क्वारन्टीन हैं।ये शब्द यशस्विनी के लिए पहली बार सुने जाने वाले थे। बच्चों ने तो इसे केवल एक सामान्य प्रस्तुति के रूप में लिया क्योंकि वे इसके संभावित परिणामों से अवगत नहीं थे। स्वयं यशस्विनी ने सोचा कि देश में विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा घोषित किए गए पहले के आपातकालों का भी कोई बहुत अधिक विपरीत असर नहीं पड़ा था और अब 2009 के एच वन एन वन इमरजेंसी के बाद विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा घोषित की गई यह छठी इमरजेंसी है तो भारत पर इस बार भी इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए… वैसे भी कोरोनावायरस और इसके हल्के प्रभाव के बारे में उसने पिछले आठ-दस वर्षों में कई बार सुन रखा है….. शायद यह कोरोना का कोई नया वर्जन हो…. बस अन्य देशों में इसके तेजी से फैलने और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक और शहरों को लॉक करने के समाचार से उसे थोड़ी घबराहट हुई।

       आज के योग सत्र में यशस्विनी ने प्रशिक्षण देने के साथ-साथ विद्यार्थियों को इस तरह के वायरसजन्य रोगों से बचाव के बारे में सामान्य जानकारी भी दी और उन्हें प्रेरित किया कि आप लोगों को किसी भी संक्रमण की स्थिति में बचने के लिए सतर्कता बरतने की आवश्यकता है….. वैसे स्वच्छता के नियमों का पालन तो हम सभी लोग प्रतिदिन करते ही हैं……

 

 

                

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           घर लौटकर यशस्विनी ने एक बार फिर से कोरोनावायरस के बारे में समाचार पत्र और पत्रिकाओं की सभी खबरों का अध्ययन किया। चिंता वाली कोई बात नहीं थी लेकिन यह वायरस  बड़ी तेजी के साथ अनेक देशों में फैल रहा था और भारत में भी सभी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर थर्मल स्कैनिंग की व्यवस्था की गई थी।आखिर यह एक तरह का खतरनाक बुखार ही है।यशस्विनी को यह जानकार आश्चर्य हुआ कि भारत में भी 30 जनवरी को ही कोरोना का पहला मामला वुहान से लौटी एक छात्रा के माध्यम से सामने आया था। 11 फरवरी को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस रोग को कोविड-19 का नाम दिया था।

       आने वाले हर दिन के बीतने के साथ ही इस महामारी को लेकर चिंता बढ़ती ही गई हालांकि भारत में घबराहट वाली कोई स्थिति नहीं थी क्योंकि जो व्यक्ति इस रोग के पहले मरीज थे वे स्वस्थ हो चुके थे लेकिन मरीजों की संख्या अभी भले ही दहाई के आंकड़े में थी लेकिन धीरे-धीरे बढ़ रही थी। ईरान में लगातार होती मौतें और चीन में अनेक शहरों के ऊपर सेटेलाइट पिक्चर में उठते धुएं के चित्रों ने यशस्विनी को सोचने को मजबूर कर दिया कि कहीं न कहीं यह एक बड़ी महामारी का रूप ले रही है। फरवरी महीने के आखिरी में भारतीय विमानों ने चीन के एजुकेशन हब वुहान शहर से सैकड़ों भारतीयों को रेस्क्यू किया।

    समाचार पत्रों में चीन के बारे में खबरें कम आती थीं लेकिन वहां से लौटने वाले एक-दो भारतीय लोगों के लॉकडाउन के संस्मरण बड़े ही विचलित करने वाले थे क्योंकि खाने-पीने से लेकर पानी तक की कमी हो रही थी। यशस्विनी समझ गई थी कि वुहान शहर में इसने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की रोक के बाद भी कहीं न कहीं यह महामारी अमेरिका, यूरोप और अरब, दक्षिण एशिया के अनेक देशों में फैल चुकी है।

     पहले तो विदेश से भारत आने वाली फ्लाइट में केवल संदिग्ध पैसेंजर ही स्क्रीन किए जाते थे, लेकिन 6 मार्च से इसे सभी यात्रियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया। यशस्विनी ने उस दिन की अपनी डायरी में लिखा,

" अनेक देशों में तांडव मचाते इस महामारी के हमारे देश में भी आहट... सभी मुस्तैद व सजग हैं लेकिन बिना लक्षणों वाले इस बीमारी के बाद में अपना असली रंग दिखाने पर क्या होगा है ?ईश्वर सबकी मदद करें।….."

       8 मार्च की डायरी में यशस्विनी ने लिखा …..आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और भारत में इस कोरोनावायरस से संक्रमितों की संख्या 100 पहुंच गई है...। विश्व स्वास्थ संगठन के अध्यक्ष ने ट्वीट किया,.... यह महामारी 100 देशों में फैल चुकी है…...

          यशस्विनी श्रीकृष्ण प्रेमालय स्कूल प्रबंध समिति की सदस्यता भी थी। स्कूल के प्राचार्य ने समिति की बैठक में वार्षिक उत्सव के आयोजन का प्रस्ताव रखा।प्रति वर्ष यह अप्रैल महीने में होता था क्योंकि तब मार्च महीने में बोर्ड परीक्षाएं समाप्त हो जाती थीं और अप्रैल से नया सत्र प्रारंभ होने पर विद्यार्थियों पर पढ़ाई का बोझ कम रहता था….।

      बैठक में यशस्विनी ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।उसने कहा परीक्षाएं पूर्व घोषणा के अनुसार पहले शुरू हो गई हैं लेकिन हमें जल्द से जल्द परीक्षा समाप्त होने के बाद विद्यार्थियों को राहत देते हुए अगले सत्र में स्कूल बुलाने से बचना चाहिए थोड़े दिनों के लिए…. इसलिए हमें अप्रैल में वार्षिक उत्सव कराने से बचना चाहिए क्योंकि संभावित वायरस संक्रमण से बचाव के लिए लोगों का दूर- दूर रहना अति आवश्यक है। ऐसा मेरा अनुमान है….. यशस्विनी के प्रस्ताव का सभी ने समर्थन किया और इस बात पर भी सहमति बनी कि परीक्षाओं के दौरान विद्यार्थी अगर स्कूल आते हैं तो एक तो प्रार्थना सभा ही न हो और होने की स्थिति में उन्हें बहुत दूर दूर खड़ा किया जाए……..।

 

         

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         12 मार्च को इस देश में कोरोना से पहली मौत हुई।इस महामारी के देश में बढ़ते आंकड़ों को लेकर चिंता वाली बात तो थी ही। मार्च महीने में संक्रमित होने वाले लोगों में से अधिकांश अमेरिका,ईरान,इटली के लोम्बारडी समेत अन्य शहरों से आए थे, 99% लोग किसी संक्रमित के संपर्क में आए थे।

    12 मार्च को यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कल कोरोना के कोविड-19 संस्करण को पैंडेमिक घोषित किया जिसके लिए मानव शरीर में पर्याप्त इम्यूनिटी नहीं है। यशस्विनी ने आगे लिखा…. अब हमें अपने कृष्ण प्रेमालय स्कूल में चल रही सभी कक्षाओं की परीक्षाओं को स्थगित कर देना चाहिए और हम बोर्ड परीक्षा के बचे प्रश्न पत्र के भी स्थगित होने की उम्मीद करें... मानव जीवन कितना कीमती है…. इससे बढ़कर कुछ नहीं है। 13 मार्च को सरकार ने घोषित किया कि इस बीमारी पर नियंत्रण के प्रयास किए जा रहे हैं और किसी को पैनिक होने की जरूरत नहीं है….. लेकिन स्थिति तेजी से बिगड़ती गई और अंततः….. केंद्रीय परीक्षा बोर्ड ने 20 मार्च और आगे की बोर्ड परीक्षाएं भी स्थगित कर दीं….इसके दो दिन पहले ही यशस्विनी के स्कूल ने अपनी लोकल परीक्षाओं को स्थगित कर दिया था और इस तरह एक बड़े खतरे की आहट अब द्वार पर दिखाई देने लगी…..

प्रधानमंत्री जी के राष्ट्र के नाम संबोधन व जनता कर्फ्यू के आह्वान के बाद यशस्विनी ने रोहित को फोन कर कहा... रोहित जी अब आप एक जगह सुरक्षित रहिए और कहीं मूव न करिए... स्थिति बड़ी खतरनाक है…

"यशस्विनी जी तो क्या मुझे योग शिविर की तैयारी के लिए 23 को दिल्ली के लिए नहीं निकलना चाहिए?"

" नहीं, मेरे हिसाब से अभी कुछ दिन वेट एंड वॉच के होने चाहिए आप यहीं इसी शहर में रुके रहें… दिल्ली सरकार ने स्वयं पहले ही पार्क रेस्त्रां आदि बंद करने का आदेश दिया है अतः कुछ तो बात है….."

" ठीक है यशस्विनी जी पर एक बात बताइए…. क्या कल के जनता कर्फ्यू के लिए पूरी तैयारी है?"

" मेरे फ्लैट में कल के लिए सब्जी राशन सब है और कृष्ण प्रेमालय में भी महेश बाबा ने पूरी व्यवस्था कर ली है और फिर एक दिन की ही तो बात है…."

"मार्च 22 को प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर देश में वायरस संक्रमण रोकने की पूर्व तैयारी के रूप में जनता कर्फ्यू लगाया गया… .. 14 घंटों के लिए जैसे उस दिन देश में जनजीवन ठहर गया था….. भगवान करे वायरस का चक्र इससे टूट गया हो",यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा।

 

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जनता कर्फ्यू के बाद के दो दिन भी बेचैनी वाले थे और लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि कुछ बड़ा होने वाला है।इसके बाद 25 मार्च को अपने राष्ट्रव्यापी प्रसारण में प्रधानमंत्री जी ने 21 दिनों के कड़े लॉकडाउन की घोषणा की। मध्य रात्रि से अर्थात 26 मार्च की सुबह से ही यह प्रभावशील हो गया और इस तरह जनता कोरोना से एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार हो गई। इस घोषणा से महामारी की भयंकरता का अनुमान हुआ।जहां भारत में 20000 टेस्ट भी नहीं हुए थे,लेकिन 10 मौतों ने और संक्रमण के 600 मामलों ने आगे अत्यंत सावधानी और सतर्कता के दिनों के लिए पूरे देश को एक कठिन संयम और व्रत में रहने को विवश कर दिया।इस महा पूर्णबंदी के अपने सामाजिक आर्थिक पहलु भी थे।

   मनकी ने फोन कर यशस्विनी से कहा, "दीदी प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन की घोषणा की है, 21 दिनों तक। बताइए अब मैं क्या करूं? ऐसे में मुझे अपने घर में ही रहना होगा और मैं आपके घर आऊं कि नहीं,मेरी समझ में नहीं आ रहा है।

 "नहीं मनकी, तुम्हें आने की आवश्यकता नहीं है। तुम घर में ही रहो। हां बताओ तुम्हारे घर में कितना राशन व पैसे हैं? तुम्हें किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं है?"

मनकी ने कहा," दीदी, पैसे तो थोड़े बहुत हैं लेकिन राशन तीन से चार दिनों का है। इसके बाद बिना राशन के क्या स्थिति होगी दीदी?"

" तुम घबराओ मत मनकी। सरकार ने इतनी बड़ी घोषणा की है तो व्यवस्था की ही होगी। मैं अभी सुबह का समाचार देख रही हूं कि इस लॉकडाउन में आवश्यक चीजों के लेने-देने के लिए सीमित स्तर पर लोगों को बाजार आदि जाने की भी छूट होगी, लेकिन कड़े प्रतिबंधों के अंतर्गत। वह भी कुछ घंटों के लिए ही।"

"तो क्या हम लोग बाजार जा सकते हैं?" "हाँ, पर तभी जब आवश्यकता हो और बाजार भी जाओगी तो चेहरे पर मास्क लगा लेना।"

" यह मास्क क्या होता है दीदी?"

 "मास्क नाक और मुंह को ढकने के लिए बनाया जाने वाला कपड़े या अन्य पदार्थों से बना एक सुरक्षा कवच है, जिसे तुम्हें धारण करना होगा।"

".... लेकिन दीदी, मेरे पास तो मास्क है ही नहीं।"

 " तो भी कोई बात नहीं मनकी….अगर तुम बहुत जरूरी काम से बाहर निकलोगी तो रुमाल या गमछे से अपने मुंह और नाक को ढंक कर ही बाहर निकलना होगा।"

"दीदी, इससे फायदा क्या होगा"

" इससे फायदा यह होगा कि संक्रमण के खतरे से बचा जा सकता है क्योंकि कोरोना का संक्रमण,इसके वायरस के छींक या छोटे-छोटे नमी के कणों के रूप में मुंह से बाहर निकलने से सामने वाले व्यक्ति तक पहुंचते हैं और उसके मुंह या नाक के रास्ते से शरीर में प्रवेश करते हैं।"

       स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए। दफ्तर भी अत्यावश्यक सेवाओं के लिए ही खुले रहे।शेष सभी शासकीय और निजी कार्यालय बंद कर दिए गए। व्यवसायिक प्रतिष्ठान, उद्योग छोटे-बड़े व्यवसाय सब कुछ बंद और पूरी तरह से पूर्णबंदी।

      श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में भी सत्रांत परीक्षा के दो प्रश्न पत्र नहीं हो पाए थे। स्कूल की प्रबंध समिति में होने के कारण यशस्विनी को अकादमिक प्लानिंग के लिए भी स्कूल में याद किया जाता था। इस बार भी यशस्विनी से सलाह मशविरा किया गया और फिर फार्मूला यही निकाला गया कि बच्चों को साल भर में हुई अन्य परीक्षाओं का भार अंक देकर सत्रांत परीक्षा के अंक दिए जाएं और इसके आधार पर परिणाम घोषित किए जाएं। केंद्रीय बोर्ड की परीक्षाएं स्थगित होने की घोषणा के अगले दिन ही श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में प्राचार्य की बुलाई गई आकस्मिक बैठक में सभी कक्षा शिक्षकों को परिणाम तैयार करने के लिए सभी अंक सूचियां अपने साथ घर ले जाने के निर्देश दिए गए थे क्योंकि सभी को यह संभावना दिखाई दे रही थी कि स्कूल कॉलेज अचानक बंद किए जा सकते हैं। इसलिए जब जनता कर्फ्यू के बाद अचानक लॉकडाउन लगा तो लोग घरों से ही अपना रिजल्ट संबंधी बाकी कार्य करने के लिए सुविधाजनक स्थिति में थे।विद्यालयों में बोर्ड के साथ-साथ बाकी परीक्षाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं। पहले की तरह आजकल सारे रिजल्ट एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से बनाए जाते हैं।

       श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल के लिए यह सॉफ्टवेयर रोहित ने ही तैयार किया था।जब यशस्विनी स्कूल में पढ़ती थी तो सारा कार्य मैनुअल होता था और उनके शिक्षक हाथ से रिजल्ट रजिस्टर और प्रगति पत्र में बच्चों के अंक लिखा करते थे और कहीं गलत प्रविष्टि हो जाने पर व्हाइटनर का उपयोग किया जाता था। अब चीजें बदल गई हैं। तकनीक के इस बदलते युग में कोराना जैसी चुनौतियों का सामना करने में लोगों की दृढ़ इच्छा शक्ति संकल्प धैर्य के साथ-साथ चिकित्सकीय ज्ञान और जीवन के अनेक क्षेत्रों में तकनीकी सहायता की बहुत आवश्यकता होती है।

      यशस्विनी ने तो क्या, बड़े बुजुर्गों ने भी कोरोना की इस महामारी जैसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था।सड़कें वीरान और सुनसान।लोग घरों में दुबके हुए और कर्फ्यू का सा नजारा। लॉकडाउन तोड़ने वालों और बेवजह घूमने वालों पर पुलिस की सख़्ती…..। टेलीविजन चैनलों पर इन सब घटनाओं का लाइव प्रसारण…….।

    

 

      

 

 

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       एक अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुआ। ऐसा पहली बार हुआ जब बच्चे घरों में थे और उनकी कक्षाएं स्थगित कर दी गई थीं।उनकी कक्षाएं फिर कब से शुरू होंगी,यह भी पता नहीं था। देशव्यापी आंकड़ा जो भी था लेकिन अप्रैल महीने के पहले हफ्ते में शहर में कोरोना का पहला मामला मिला।पूरे शहर में हड़कंप मच गया। जिले को रेड जोन घोषित कर दिया गया। शहर के जिस मोहल्ले में वह मरीज था उसे कंटेनमेंट एरिया घोषित कर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कर दिया गया और इसके लिए एक विशेष एंबुलेंस आई।

    शहर के लोगों ने पहली बार पी पी ई सूट पहने हुए स्वास्थ्य कर्मियों को गाड़ी से नीचे उतरते देखा।यशस्विनी ने देखा कि अंतरिक्ष यात्रियों की तरह कपड़े पहने हुए लोग एक मरीज का इंतजार कर रहे हैं और वह मरीज है कि लगभग चलता हुआ था एम्बुलेंस की ओर बढ़ रहा है। आसपास की छत पर भीड़ इकट्ठा थी।अब उस व्यक्ति पर क्या गुजर रही है, सहृदय होने के कारण यशस्विनी इसका अनुमान लगा पा रही थी। वह व्यक्ति गंभीर संकट में था और लोग थे कि इसे भी तमाशा बनाकर आनंद ले रहे थे। कुछ लोगों ने तो अपनी छत से ही एंबुलेंस और उस पर सवार होते मरीज के साथ दूर से ही सेल्फी लेने की कोशिश की।उस मरीज में कोरोना होने पर कोई गंभीर लक्षण नहीं दिखाई दे रहा है लेकिन शुरुआती दौर में सतर्कता इतनी थी कि प्रत्येक रोगी को अस्पताल भेजा जा रहा था।

यशस्विनी ने अपनी डायरी में लिखा, "जिस संकट को उसने चीन के वुहान शहर तक सीमित है,ऐसा सोच रखा था वह एक ही महीने में पांव पसारते-पसारते हमारे देश,हमारे राज्य और फिर हमारे नगर और हमारे मोहल्ले तक आ पहुंचा है। विदेश से लौटने वाले हर व्यक्ति को संदिग्ध मानकर उनका सैंपल लिया जा रहा है। जिले में बाहर से आने वाले हर व्यक्ति को मुख्य जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के कार्यालय में एक फार्म भरना होता है और उनके लिए कोरोना का एंटीजन या पीसीआर टेस्ट कराना अनिवार्य कर दिया गया है।"

           कोरोना का कहर गरीब लोगों पर मुसीबत बनकर टूटा।दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई।सरकार की ओर से राहत सहायता पहुंचाने की कोशिश शुरू हुई।स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग सड़कों पर उतरे। शहर के ओवर ब्रिजों के नीचे रात गुजारने वाले और गरीब लोगों के लिए नगर निगम द्वारा बनाए गए रैन बसेरा में अपने दिन और रातें किसी तरह से बिताने वाले गरीब लोगों तक खाने के पैकेट पहुंचाने की कोशिश की गई। सभी  राजनीतिक दलों के युवा कार्यकर्ताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोगों तक सहायता पहुंचाने की कोशिश की।

 

      महेश बाबा के मार्गदर्शन में यशस्विनी, रोहित और संस्था के स्वयंसेवियों की टीम ने पूरे शहर में राहत पहुंचाने की कोशिश में प्रशासन को मदद की पेशकश की।सुरक्षा उपायों का ध्यान रखने के बाद और स्वयंसेवक के रूप में उनका पंजीकरण करने के बाद उन्हें इसकी अनुमति दे दी गई।डबल मास्क पहनने,ग्लव्स लगाने और सैनिटाइजर का बार बार प्रयोग करने के बाद भी यशस्विनी रोहित और अन्य स्वयंसेवक संक्रमण के सर्वाधिक खतरों के बीच काम कर रहे थे।

            पहली बार कोरोना योद्धा की संकल्पना सामने आई। टेलीविजन पर कोरोना वार्ड व आईसीसीयू में भर्ती मरीजों की देखरेख कर रहे अनेक डॉक्टर इस बीमारी से संक्रमित हुए और उन्हें अपने प्राण गंवाने पड़े। लॉक डाउन का पालन कर रहे राज्य पुलिस और जिला प्रशासन के तहसीलदार मजिस्ट्रेट और अन्य लोग कई जगहों पर नियुक्त थे और उन्हें संदिग्ध लोगों से भी एकदम नजदीक से बातचीत करना पड़ता था। उनकी जांच करनी पड़ती थी। अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अनेक पुलिसकर्मी नगर निगम के सफाई कर्मी, राहत कार्यकर्ता आदि संक्रमित हुए और जीवन-मृत्यु से संघर्ष करने के बाद उन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया।

         अमेरिका, ईरान, इटली आदि देशों में कोहराम मचा हुआ था। टेलीविजन के दृश्य के अनुसार शवों को दफनाने की जगह भी नहीं मिल रही थी और अस्पतालों के बाहर लोगों के शव पड़े हुए दिखाई देते थे। ब्रिटेन समेत अनेक देशों के शासनाध्यक्ष इस घातक बीमारी की चपेट में आ गए और इस बीमारी ने व्यापारियों, सेलिब्रिटीज से लेकर गरीब लोगों तक किसी को भी नहीं बख्शा। इस बीमारी के स्रोत को लेकर विभिन्न देशों में आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हो गए। एक विशेष अभियान चलाकर हवाई जहाज से विभिन्न देशों  में फंसे हुए भारतीयों को वापस लाया गया और उन्हें 14 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन पर रखा गया।

     इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार हुआ था जब कोरोना ने धर्मस्थलों के भी द्वार बंद करवा दिए।यशस्विनी विचार करने लगी कि कहीं न कहीं इस बीमारी के उद्भव और प्रसार में मानव की लापरवाही की बहुत बड़ी भूमिका है। देश की सवा अरब के लगभग आबादी घरों में कैद है।

 यशस्विनी ने रात में रोहित को फोन लगाया और कहा, "कैसे हो रोहित?"

" मैं ठीक हूं यशस्विनी, तुम कैसी हो?"

" मैं भी ठीक हूं रोहित। यह कठिन समय है। हमें कोरोनावायरस के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करना होगा। किस तरह यह गले तक पहुंच कर और देर तक वहां रहकर अपना प्रभाव डालता है और फिर फेफड़े में उतर कर धीरे-धीरे उसको कमजोर कर श्वसन तंत्र को नष्ट कर देता है।ठीक न होने पर इसका बुखार जानलेवा साबित हो रहा है।"

" आप ठीक कह रही हैं यशस्विनी, हमें सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही चिकित्सा सुविधाओं और दवाओं के साथ-साथ अपने स्तर पर योग और अन्य देसी पद्धतियों के बारे में भी लोगों को जागरूक करना चाहिए …"

    ऐसा कहते-कहते फोन पर रोहित की हल्की खांसी की आवाज सुनाई दी।यह सुनकर यशस्विनी चिल्ला उठी,"क्या हुआ रोहित,आप ठीक तो हैं?"

हंसते हुए रोहित ने कहा, "क्यों चिंता कर रही हो यशी, अब मैं तुमसे कोई बात छुपाउंगा?"

अचानक रोहित को लगा कि उसने यशस्विनी का इस तरह 'यशी' नाम लेकर अपनी हद पार कर दी है। उसने कहा- 'सॉरी।'

यशस्विनी ने खिलखिलाते हुए कहा, "इसकी कोई जरूरत नहीं है योगी महाराज….."

 

            (49)

                      कोरोना ने पूरी जिंदगी को बदल कर रख दिया।संक्रमण से फैलने वाली महामारी इस कदर भयानक हो सकती है,यह किसी ने नहीं सोचा था। लोगों के चेहरों पर मास्क दिखने लगे। लोग घरों में कैद होकर रह गए। जो लोग सड़कों और कार्यस्थल पर थे,वे कोरोना योद्धा थे,जो अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। जैसे प्रशासन के अधिकारी,पत्रकार, जमीनी स्तर के कर्मचारी,अस्पताल के चिकित्सक, नर्स, और पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षा बल के जवान, पुलिस फोर्स और लॉकडाउन में आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई करने वाले….. अस्पताल में मरीजों की बढ़ती भीड़….. लोगों के चेहरों पर लगे हुए मास्क….. 2 गज अर्थात 6 फीट की सुरक्षित दूरी…. सेनीटाइजर का बार-बार प्रयोग और सामाजिक दूरी जैसी अवधारणाएं पहली बार अस्तित्व में आईं। यशस्विनी को याद आया कि उसके पास भी अधिक दिनों का राशन नहीं है इसलिए लॉकडाउन की घोषणा के तीसरे ही दिन वह मार्केट गई। सब कुछ बदला बदला सा। चौराहे पर सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी... दुकानदारों को ताकीद करते पुलिस के जवान और गाड़ी से किए जाने वाले अनाउंसमेंट …... आप निश्चिंत रहें आप लोगों को दोपहर 12:00 बजे तक खाने-पीने राशन दूध फल आदि वस्तुएं उपलब्ध हो जाएंगी….

        यशस्विनी ने अपने घर के पास वाले चौराहे पर एक छोटी सी दुकान के पास रुककर वहां से मास्क खरीदने की सोची।

 वहां एक आठ-नौ साल के लड़के को मास्क बेचते देखकर उसे हैरानी हुई। उत्सुकता वश उसने अपनी स्कूटी रोकी और पूछा, "यह मास्क कितने रुपए का है?"

" दीदी' यह 15 रुपए का है।"

जैसे लड़के को लगा कि 15 रुपये उसने बहुत ज्यादा बोल दिए हैं, इसलिए उसने तुरंत सुधार करते हुए कहा-" दीदी आपको ज्यादा लग रहा है और मैं इसे आपको 10 रुपये में दे दूंगा।"

" ऐसा क्यों"

"वैसे सच बताऊं दीदी यह बड़ी मेहनत से तैयार हुआ है। मेरी मां ने खुद इसे अपने हाथ से बनाया है।"

" अच्छा हाथ से बनाया है। कैसे?" "उन्होंने मुझसे पास की दुकान से कपड़ा मंगवाया। इसके बाद अपने हाथों से छोटे-छोटे मास्क से थोड़ी बड़ी साइज के टुकड़े उन्होंने काटे और फिर सुई धागे से बड़ी मेहनत से उन्होंने इसे सिला है।"

यशस्विनी ने कहा, "यह तो बहुत अच्छी बात है और तुम्हारे मास्क की क्वालिटी भी तो बहुत ही अच्छी है। इसलिए मैं तुम्हें 15 रुपये दूंगी... और….  तुम इसे 10 रुपये में बेचने की बात क्यों कह रहे हो?

छोटे उस्ताद ने उत्तर दिया,"बात यह है दीदी कि आज  अब तक 1-2 लोगों ने ही मास्क खरीदा है। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरे मास्क न बिके तो परेशानी खड़ी हो जाएगी।"

" तुम्हें क्या परेशानी है?"

" परेशानी की बात यह है दीदी कि घर में मेरी मां है जो बीमार है।वे कई घरों में काम पर जाती हैं।कल सुबह अनेक घरों के लोगों ने उन्हें फोन कर घर आने के लिए मना किया। अब महीना पूरा होने में चार-पांच दिन ही बचे हैं तो मेरी मां को उनकी इस महीने की तनख्वाह 1 तारीख को ही मिलती, तो बस महीने के आखिरी दिनों में घर में पैसों की कमी हो गई है……"

 

यशस्विनी ने पूरी बात सुनकर आहें भरते हुए कहा"ओह, तो छोटे उस्ताद यह बात है। और तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?" "अभी यहां मैं और मेरी मां रहते हैं। पिता काम करने के लिए विजयपुर गए हुए हैं। वे महीने में एक बार आते हैं लेकिन अभी कल ही उन्होंने फोन किया कि वे लॉकडाउन में फंस गए हैं अभी घर नहीं आ पाएंगे।"

     यशस्विनी सोच में पड़ गई। उसने कहा," ...तो मास्क बेचने के लिए तुम्हारी मां भी तो आ सकती थी न? नहीं, मां की तबीयत खराब है।"

        "छोटे उस्ताद क्या हुआ है तुम्हारी मां को?

" दीदी उस दिन एक घर में साफ सफाई के दौरान वे स्टूल पर चढ़ी थीं वहां से नीचे गिर गई और उनकी दाईं एड़ी में फ्रैक्चर आ गया है।.. उसी दिन रात से लॉक डाउन लग गया…  फिर भी मेरी मां किसी तरह काम करने के लिए घरों में जाने को तैयार थी…. एड़ी में आधा प्लास्टर चढ़ा होने के बाद भी…. दीदी इस पर मैंने ही उन्हें रोका कि आप काम पर मत जाओ…. मैं पैसा कमा कर लाऊंगा…."

 छोटे उस्ताद की कहानी सुनकर यशस्विनी का ध्यान गणेश की कहानी की ओर चला गया। ऐसी ही परिस्थितियों में गणेश दीवाली के दिन पटाखों का इंतजार कर रहा था और फिर मजदूरी के दौरान ऊंचाई से गिर पड़ी मां से गणेश की भेंट अस्पताल के बेड पर हुई थी। यशस्विनी को उसकी कहानी बड़ी मार्मिक लगी। उसने पूछा,"छोटे उस्ताद, तुम्हारा नाम जान सकती हूं?"

" हां दीदी,मैं पिंटू। स्कूल में मेरा नाम प्रवीण है।"

 "बहुत बढ़िया,तुम सचमुच अपने काम में ही नहीं अपनी बातों में भी प्रवीण हो पिंटू।

        यशस्विनी को पिंटू से सहानुभूति होने लगी। उसने एक के बदले 2 मास्क खरीदे और 20 के बदले जब उसने 30 रुपए देने चाहे तो पिंटू ने मना कर दिया। "नहीं दीदी... मैं 20 ही लूंगा क्योंकि आपसे मैंने इसी रेट के बारे में बातचीत की है। जबरदस्ती 10 रुपये अतिरिक्त देकर यशस्विनी पिंटू के ऊपर कोई अहसान लादना नहीं चाहती थी क्योंकि ऐसा करने पर उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती। इसलिए यशस्विनी ने उसे केवल 20 रुपये दिए। यशस्विनी ने इतना ही पूछा, "क्या मुझे और मास्क मिल सकते हैं?मैं एक सामाजिक संस्था में काम करती हूं…."यशस्विनी: भाग 27

 

पिंटू ने पूछा ,"दीदी आपको कितने मास्क चाहिए"

" मुझे सौ मास्क चाहिए….. ये लो पिंटू एडवांस पांच सौ रुपये…. इससे हो जाएगा….."

" हां दीदी बिल्कुल।"

 "आपको मास्क चाहिए कब दीदी?"

" आज शाम तक पर कल सुबह भी चलेगा"

" मिल जाएंगे दीदी, मुझे एक दिन का समय चाहिए जो आपने दे दिया है ।"

"हां पिंटू तुम समय ले लो …..एक दिन से अधिक लगेंगे तब भी चलेगा…."

" नहीं दीदी, आपको कल इसी समय मिल जाएगा।"

 "तो तुम इतने मास्क बनाओगे कैसे? दुकान पर तो केवल 8-10 दिख रहे हैं।" "आज दिन भर और देर रात तक मैं और माँ दोनों मिलकर मास्क सिल लेंगे। बड़े गर्व के साथ छोटे उस्ताद ने बताया।"

 "अरे वाह यह तो बहुत बढ़िया बात है।"

अचानक पुलिस की सायरन बजने पर पिंटू का ध्यान दूसरी ओर गया।

" दीदी अभी कितने बजे हैं?"

" 11:30"

 "ओह, तो लॉकडाउन में छूट की अवधि खत्म होने में केवल आधा घंटा है…. तो दीदी अब मुझे जाना होगा….।"

"वैसे तुम जाओगे कहां"

" दीदी, कपड़े खरीदने।मुझे 12:00 बजे से पहले खरीदना होगा।"

"तो यह कपड़ा तुम्हें मिलेगा कहां।"

"रमेश अंकल की दुकान पर… "

" दुकान तो बंद हो गई होगी।लॉकडाउन में तो केवल आवश्यक वस्तुओं को ही खोलने की अनुमति है...।"

" मैं जानता हूं दीदी लेकिन रमेश अंकल से मेरा परिचय है। मैं सीधे उनके घर में जाकर उनसे मांगूंगा।"

"ओह, तो यह बात है। तब तो ठीक है। अरे भाई, मैं भी तो जा रही हूं... तो कल कहां पर होगी अपने छोटे उस्ताद से भेंट…..।"

"यहीं पर दीदी…... मैं सुबह 9:00 बजे आपको यही मिलूंगा….",ऐसा कहते हुए पिंटू लकड़ी के फ्रेम पर लगाई गई अपनी दुकान समेटने लगा। ठीक वैसे ही जैसे चश्मा बेचने वाले एक फ्रेम पर चश्मों को लटकाए रहते हैं।

      उम्र और हालात ने पिंटू को समय से कहीं जल्दी और बहुत पहले ही बड़ा कर दिया था। अपनी इस चलती-फिरती दुकान को लेकर दौड़ते-भागते एक कोने की ओर जाते पिंटू को देखकर यशस्विनी का मन भर आया।

(पूर्णतः काल्पनिक रचना। किसी भी व्यक्ति, वस्तु, पद, स्थान, साधना पद्धति या अन्य रीति रिवाज, नीति, समूह, निर्णय, कालावधि, घटना, धर्म, जाति आदि से अगर कोई भी समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र ही होगी।)

(क्रमशः)

( कृपया वर्णित योग,ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यासों, मार्शल आर्ट आदि का बिना योग्य गुरु की उपस्थिति और मार्गदर्शन के अनुसरण व अभ्यास न करें। वर्णित योग ध्यान चक्रों के विवरण व अन्य प्रशिक्षण अभ्यास मार्शल आर्ट आदि की सटीकता का दावा नहीं है लेखक ने अपने अध्ययन सामान्य ज्ञान तथा सामान्य अनुभवों के आधार पर उनकी साहित्यिक प्रस्तुति की है)

(लेखक कोविड-19 समेत समस्त रोगों के उपचार में एलोपैथी,आयुर्वेद और होम्योपैथी समेत सभी मान्य चिकित्सा पद्धतियों के उपचार का समर्थन करता है और भारत की केंद्रीय सरकार तथा विभिन्न प्रदेश की सरकारों के समस्त कोविडरोधी प्रोटोकॉल का पालन करता है।इस काल्पनिक उपन्यास के किसी भी अंश के विवरण का रोगों के इलाज आदि में मानक रूप में अनुसरण न किया जाए। सदैव डॉक्टरों की सलाह का पालन किया जाए।)

 

योगेंद्र ©

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सजीव चित्रण किया है सर आपने 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

24 सितम्बर 2023

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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3.मेरे अपने

10 जून 2023
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11 जून 2023
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भाग 5 देह से आत्मा तक (10) &nbs

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भाग 6:विचलन(देह से आत्मा तक) (12) &nbs

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9 सितम्बर 2023
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14: जिऊंगी अपनी ज़िंदगी (32) यह योग ध्यान और मार्शल आर्ट का 15 दिवसीय

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17 सितम्बर 2023
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15: डर के जीना क्यूं नियति (38) यशस्विनी ने मीरा को आगे समझते ह

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