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3.मेरे अपने

10 जून 2023

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भाग 3.मेरे अपने

 

                  (5)


यशस्विनी पढ़ने लिखने में तेज थी। अनाथालय में रहने के दौरान वह अनाथालय की व्यवस्था के कार्य में अपनी ओर से पूरा सहयोग देती थी। रसोई में काम करना उसे पसंद था अनाथालय के बच्चों के लिए भोजन बनाने के काम में वह आटा गूंधने से लेकर सब्जियां काटने के काम में स्वेच्छा से मदद किया करती थी। शाम को स्पेशल क्लास लगती थी जिसमें वहां रहने वाले बच्चे यशस्विनी से अपने होमवर्क में आने वाली कठिनाइयों को पूछ कर दूर किया करते थे लेकिन इसके पहले वे डटकर एक घंटा खेलते भी थे।

 

           यशस्विनी बैडमिंटन की अच्छी खिलाड़ी थी और स्कूल की ओर से उसने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भी भाग लिया था।स्कूल की भाषण,वादविवाद आदि प्रतियोगिताओं और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में उसकी सक्रियता देखते ही बनती थी।

 

         इस अनाथालय को अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं से मदद मिलती थी और प्रत्येक रविवार को अनेक समाजसेवी संस्थाओं के लोग बच्चों से मिलने के लिए आते और साथ में उनके लिए विशेष भेंट और उपहार लेकर भी आते। यशस्विनी को सच्ची मदद करने वालों से मिलकर प्रसन्नता होती लेकिन इनमें कुछ ऐसे लोग भी थे जो महज स्वयं के सामाजिक कार्यकर्ता होने का ढोंग करने के लिए श्री कृष्ण प्रेमालय में आया करते थे।ऐसे लोग जितनी मदद करते थे, उससे कहीं अधिक पब्लिसिटी बटोर लेना चाहते थे।ये लोग फोटोग्राफरों,वीडियोग्राफरों और अन्य मीडियाकर्मियों को लेकर आया करते थे। ऐसे लोगों को देखकर यशस्विनी खीझ उठती थी।यशस्विनी यह साबित करना चाहती थी कि वह और यहां के बाकी बच्चे किसी की दया का पात्र नहीं हैं। ईश्वर ने भले ही उन्हें इस परिस्थिति में ला खड़ा किया है लेकिन उनमें भी प्रतिभा और योग्यता है।मेहनत करके वे सही जगह पहुंचेंगी और समाज के लिए भी अपना सार्थक योगदान देंगी।

 

  आखिर यशस्विनी के जीवन में एक महत्वपूर्ण दिन भी आया जब बोर्ड परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ।यशस्विनी ने राष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन करते हुए प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।महेश बाबा ने उस दिन उत्सव मनाते हुए पूरे कृष्ण प्रेमालय के लिए एक विशेष भोज का आयोजन किया था। अगले दिन के अखबार की सुर्खी थी:-

 

 "कृष्ण प्रेमालय की यशस्विनी नेबोर्ड में किया पूरे देश में टॉप"

 

स्कूली पढ़ाई नेशनल टॉपर के रूप में पूरी करने के बाद यशस्विनी ने अपना पसंदीदा विषय दर्शनशास्त्र लिया। बचपन से ही उसकी रूचि आध्यात्मिक प्रश्नों में थी और अब तक की उम्र में वह ऐसे अनेक प्रश्नों का समाधान ढूंढने की कोशिश करती रहती थी, जिसमें ईश्वर ,उनकी सत्ता के बारे में जिज्ञासा हो।दसवीं बोर्ड में भी उसके सभी विषयों में बहुत बढ़िया अंक आए थे। वह चाहती तो विज्ञान ले सकती थी लेकिन उसकी रूचि आर्ट फैकल्टी में थी ।महेश बाबा भी उसे कहा करते थे कि बिटिया जो मन को रुचे,वही सब्जेक्ट लेकर पढ़ना।

 

       स्नातक उपाधि के बाद उसने  दर्शनशास्त्र से स्नातकोत्तर डिग्री की पढ़ाई की। उसके मन में धर्म,जीव आत्मा ,परमात्मा को लेकर उमड़ने-घुमड़ने वाले अनेक प्रश्न अब  झंझावात में तब्दील हो चुके थे और कई बार वह देश और दुनिया की घटनाओं को देख सुनकर विक्षुब्ध हो उठती थी।वह आस्थावान थी। अज्ञात कुल जन्मा होने के बाद भी और जीवन में अनेक कठिनाइयां झेलने के बाद भी उसके मन में व्यवस्था और समाज को लेकर कोई असंतोष नहीं था। कई बार उसके मन में यह प्रश्न आते थे कि क्या ईश्वर का अस्तित्व है और अगर है तो वह हमें दिखाई क्यों नहीं देता है? दुनिया में इतनी गरीबी, भूख, नफरत,हिंसा, बेकारी वैमनस्य है तो भगवान इन सबको दूर क्यों नहीं करते?वह अनेक बार महेश बाबा से इन प्रश्नों के उत्तर जानने की कोशिश करती थी और महेश बाबा इन सबका जो उत्तर देते थे,वह उसे पसंद नहीं आता था।

 

                      (6)

 

कई बार वह बिहारी जी और किशोरी जी की मूर्ति के आगे घंटों ध्यान में डूब जाती थी। मन में बार-बार यही प्रार्थना करती थी कि हे बांके बिहारी जी,बस एक बार मुझे जीवन में दर्शन दे दो।

आज बिस्तर में यशस्विनी से नींद कोसों दूर थी।महेश बाबा कहां करते हैं कि मनुष्य इस धरती पर किसी न किसी विशिष्ट कार्य के लिए जन्मा है और उसे अपने जीवन में उस कार्य को पूरा करना है।कुछ लोग हैं कि उस कार्य के संकेत को समझ जाते हैं और अपना पूरा जीवन उसके लिए समर्पित कर देते हैं। हर व्यक्ति हर क्षेत्र में विशेषज्ञ नहीं हो सकता है और यशस्विनी भी जानती थी कि वह सब कुछ प्राप्त करने के फेर में जो कुछ उसके पास है,उसे भी गंवा बैठेगी,इसलिए किसी भी क्षेत्र में शीर्ष उपलब्धि हासिल करना उसका ध्येय नहीं रहा।

 

                        (7)

                               

              आज अपने मन की उद्विग्नता और जीवन के उस विशिष्ट लक्ष्य की खोज के लिए अनेक तर्क-वितर्क के बाद भी वह किसी समाधान पर नहीं पहुंच पा रही थी। सहायिका मनकी यशस्विनी के साथ ही रहती है और उसके देर तक जागने की स्थिति में कभी गर्म दूध तो कभी कड़क चाय बनाकर कमरे के भीतर दाखिल हुआ करती है। ना जाने कैसे,मनकी यशस्विनी के मन की बात को जान लेती है और उसके दूध या चाय लेकर आने का लाभ यह होता है कि उसकी चिंतन प्रक्रिया थोड़ी देर के लिए टूट जाती है और वह जब कल्पनाओं और विचारों की लंबी श्रृंखला में उलझ कर रह जाती है तो मनकी की एक आवाज से ही वह सीधे यथार्थ के धरातल पर आ जाया करती है।

   " दीदी,यह लीजिए,आपके लिए गरमागरम दूध लेकर आई हूँ।"

" अरे  मनकी, अभी तक तुम सोई नहीं हो? आओ आकर बैठो।"

" जी दीदी मैं तो नहीं सोई हूं लेकिन आप भी हैं कि अब तक जाग रही हैं।"

" हां सच कहा मनकी,कभी-कभी उसी एक ही ढर्रे वाले दिनचर्या से जीवन में ऊब होने लगती है। पता नहीं क्यों आज नींद नहीं पड़ रही है।"

              यशस्विनी अपना हर कार्य खुद करना चाहती है, लेकिन जब तक मनकी उसके निज कक्ष में उसके पास रहती है, वह थोड़ा आलस्य जानबूझकर दिखाने लगती है।

              यशस्विनी ने मनकी की ओर देखा नहीं कि वह समझ जाती है कि मुझे क्या करना है। वह दौड़ कर कमरे की चीजों को व्यवस्थित करने लगती है और दीदी की टेबल पर बिखरी हुई किताबें और अन्य चीजें सही तरह से रखने लगती है।

आज भी उसने कहा-दीदी,यह यह काम कर दूं... वह काम कर दूं....

              यशस्विनी ने उसे झिड़की देते हुए चुपचाप बैठे रहने का इशारा किया और मनकी पलंग के निकट कुर्सी पर आकर बैठ गई।

              मनकी के जाने के बाद अनायास उसे रोहित का स्मरण हो आया। कितना शर्माते हैं रोहित जी,जैसे उन्होंने कभी कोई लड़की देखी नहीं।इतने विनम्र हैं रोहन जी की 'जी' के बिना उनके मुंह से कोई शब्द नहीं निकलता। पिछले दिनों योग के एक सत्र की तैयारी के संबंध में एक फाइल देते समय जब रोहन का हाथ अनायास यशस्विनी के हाथों से हल्के से टकराया तो रोहन इस तरह झटक कर दूर हट गए जैसे उन्हें कोई हजार वाट का करंट लगा हो।दो मिनट तक उनके मुंह से क्षमा....सॉरी सॉरी....क्षमा..…सॉरी निकलता रहा।इस घटना का स्मरण कर यशस्विनी मुस्कुरा उठी।वह सोचने लगी कि रोहित जी आवश्यकता से अधिक संवेदनशील हैं। वैसे यह उनका स्वभाव ही है और ऐसे लोग बड़े ही साफ दिलवाले होते हैं।अपने हृदय के एक कोने में उसने रोहित के प्रति एक अलग तरह की  भावना का अनुभव किया….. पर वह ठीक-ठीक निश्चय नहीं कर सकी कि यह क्या है…….

              रात अधिक हो चुकी थी।यशस्विनी ने बिजली का स्विच ऑफ किया और 'श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी....' भजन का मन ही मन जाप करने लगी। थोड़ी ही देर में उसकी नींद लग गई।

 

(काल्पनिक रचना, किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान ,जाति ,भाषा ,धर्म समूह आदि से अगर कोई समानता हो तो वह केवल संयोग मात्र है।)

 

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रचनाएँ
यशस्विनी:देह से आत्मा तक
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लेखक की कलम से….✍️      हमारे समाज में प्रेम को लेकर अनेक वर्जनाएं हैं। कुछ मनुष्य शारीरिक आकर्षण और दैहिक प्रेम को ही प्रेम मानते हैं,तो कुछ हृदय और आत्मा में इसकी अनुभूति और इससे प्राप्त होने वाली दिव्यता को प्रेम मानते हैं।कुछ लोग देह से यात्रा शुरू कर आत्मा तक पहुंचते हैं।      प्रेम मनुष्य के जीवन का एक ऐसा अनूठा एहसास है,जिससे अंतस् में एक साथ हजारों पुष्प खिल उठते हैं।यह लघु उपन्यास "यशस्विनी:देह से आत्मा तक" अपने जीवन में समाज के लिए कुछ कर गुजरने की अभिलाषा से अनुप्राणित यशस्विनी नामक युवती की गाथा है।उसमें सौंदर्य और बुद्धि का मणिकांचन मेल है। वह प्रगतिशील है।उसमें प्रतिभा है,भावना है,संवेदना है,प्रेम है।उसे हर कदम पर अपने धर्मपिता और उनके साथ-साथ एक युवक रोहित का पूरा सहयोग मिलता है।दोनों के रिश्तों में एक अजीब खिंचाव है, आकर्षण है और मर्यादा है….और कभी इस मर्यादा की अग्नि परीक्षा भी होती है।क्या आत्मा तक का यह सफर केवल देह से गुजरता है या फिर प्रेम, संवेदनाएं और दूसरों के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाली भावना का ही इसमें महत्व है….इस 21वीं सदी में भी स्त्रियों की स्थिति घर से बाहर अत्यंत सतर्कता, सुरक्षा और सावधानी बरतने वाली ही बनी हुई है।यह व्यक्तिगत प्रेम और अपने कर्तव्य के बीच संतुलन रखते हुए जीवन पथ पर आने वाले संघर्षों के सामने हथियार नहीं डालने और आगे बढ़ते रहने की भी कहानी है।          समाज की विभिन्न समस्याओं और मानवता के सामने आने वाले बड़े संकटों के समाधान में अपनी प्रभावी भूमिका निभाने का प्रयत्न करने वाले इन युवाओं के अपने सपने हैं,अपनी उम्मीदें हैं।इन युवाओं के पास संवेदनाओं से रहित पाषाण भूमि में भी प्रेम के पुष्पों को खिलाने और सारी दुनिया में उस एहसास को बिखेरने के लिए अपनी भावभूमि है।प्रेम की इस गाथा में मीठी नोकझोंक है,तो कभी आंसुओं के बीच जीवन की मुस्कुराहट है। कभी देह और सच्चे प्रेम के बीच का अंतर्द्वंद है,तो आइए आप भी सहयात्री बनिए, यशस्विनी और रोहित के इस अनूठे सफर में..... और आगे क्या - क्या होता है,और कौन-कौन से नए पात्र हैं..... यह जानने के लिए इस लघु उपन्यास "यशस्विनी: देह से आत्मा तक" के प्रकाशित होने वाले भागों को कृपया अवश्य पढ़ते रहिए …. ✍️🙏 (आवरण चित्र freepik .com से साभार) डॉ. योगेंद्र पांडेय
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