अमावस्या की रात
भली लगती है. ..
कलुषित कला,
काली करतूतें ,
कुलटा कमनीय,
कोकिला क्रंदन,
कठोर कपूत,
कॉकटेल, कुंदन
केशवानंद का
कामदेव पूजन. ....
शायद इसी से
मर्यादा बनती है. ..
अमावस्या की रात
भली लगती है. ....
आधारित जनसंख्या
निराधार रोग,
मोक्ष पाने का
शायद यही संयोग. ..
चक्षु निष्क्रिय ,
अंधों का समाज,
कुछ दिखा नहीं
तो क्या पुण्य. ..क्या पाप. .?
चाँद का दुखड़ा
कहें किससे हम ?
किरण कहीं फूटी तो
जग हंसाई लगती है. ..
अमावस्या की रात
भली लगती है. ...
......"अपने आस-पास" , मेरी पुस्तक की एक कविता