हिंदी दिवस के अवसर पर :-
"ह" से "ह्रदय" ह्रदय से "हिंदी", हिंदी दिल में रखता हूँ,
"नुक्ता"लेता हूँ "उर्दू" से, हिन्दी उर्दू कहता हूँ..
शब्द हो अंग्रेज़ी या अरबी, या कि फारसी, तुर्की हो,
वाक्य बना कर हिन्दी में, हिन्दी धारा में बहता हूँ..
हिंदी-ह्रदय विशाल बहुत है, हर भाषा के शब्द समेटे,
शुरू कहीं से करूं मगर, हिंदी में ख़तम मैं करता हूँ..
केशव का हो कठिन काव्य, या मधुर छंद रसखान के हों,
मैं कबीर का समझ के दर्शन, सूर के रस में रमता हूँ..
तुलसी सदृश दास हिन्दी का, बन कर स्वयं समर्पित हो
मातृ रूपिणी हिन्दी तुमको, नमन कोटिशः करता हूँ...
---प्राणेन्द्र नाथ मिश्र