कविता .....
कविता ! तू मेरे मन की कसक
तू है उमंग अरमानों की,
शब्दों में तरल तरंगित हो
बहती दिल में, दीवानों की....
कभी टीस ह्रदय की बन करके
उद्वेलित करती मन, विचार,
कभी करुणा, दया, स्नेह लेकर
बिखराती स्नेहिल, मृदुल प्यार...
कभी रौद्र रूप, कभी घ्रणित भेष,
कभी वीर शब्द के चमत्कार,
कभी शांत कभी, श्रृंगार कभी
कभी विरह बनी, कभी मिलनहार...
कविता, व्यक्तित्व मेरे मन का
जो कह न सका, वे शब्द-हार,
कविता, संवेदन का परिचय
बिन कविता, मानव शुष्क-हार.....