पानी:-
नमी ज़िंदगी में नहीं अब रही है,
बहुत खुश्क, बेदम, हवा बह रही है,
“अगर प्यार करता है बच्चों से अपने
बचा ले तू पानी”, फिजा कह रही है..
नहीं काम आयेगा रुपया या पैसा,
गला कर इन्हें तू न पी पायेगा,
बदन में हुयी गर कमी पानी की तो
ऐ मरदूद ! जीवन न जी पायेगा..
न बर्बाद कर पानी की बूंद कोई,
न नदियों को बदहाल कर, कूड़ा भर के
अगर सूख जायेंगी नदियाँ, समझ ले!
न पायेगा पानी तू चाहे भी मर के..
तलैय्यों को तालों को भर कर बना ले
गगनचुम्बियाँ तू जितना भी चाहे,
मगर आसमाँ पर न पायेगा पानी
तू कितना भी बादल, गले से लगाए...
धधकती ज़मी सूखती जा रही है,
फसल जब न होगी तो क्या खायेगा तू ?
मवेशी भी सूखे और मायें भी सूखी
क्या ज़हर बचपने को पिलाएगा तू !
अभी वक़्त है, बात इतनी ही सुनले,
कि कर खेती अब पानी की भी ज़मीं पर,
नहीं तो समझ ले कि आगे की नस्लें
लड़ कर मरेगी पानी ही की कमी पर...
--प्राणेन्द्र नाथ मिश्र