कांग्रेस में बढ़ते
इस्तीफे का चलन देखकर
मेरी पत्नी का शौक चर्राया..
और उसने
कुछ लिख कर
एक कागज़ का टुकड़ा
मेरी तरफ बढ़ाया ..
"चालीस साल तक
तुम्हारे साथ रहने के बाद
तुम्हारी जवानी खो जाने की
ज़िम्मेदारी ले रही हूँ,
और इसीलिए
"गृहणी " के पद से
इस्तीफा दे रही हूँ."
बेबस कांग्रेस की तरह
मैंने भी
चारो तरफ नज़र दौड़ाया
लेकिन
"गृहणी" के लायक
मोहल्ले में किसी को नहीं पाया.
कल दोपहर से
वह खाना नही बना रही है.
बार बार मुझे
कागज़ पढने को
उकसा रही है..
उसका त्याग पत्र
मैं लगातार पढ़े जा रहा हूँ..
कल दोपहर से
भूख के मारे
मरे जा रहा हूँ..
हे कांग्रेस!
तूने ये क्या रचना रचायी है?
निहत्थे पतियों पर
अजीब शामत आयी है..
यह छुआछूत
अगर
और पत्नियों में लग जायेगी
तो भारत के पतियों की
आधी आबादी
कुपोषण में मर जायेगी...
--प्राणेंन्द्र नाथ मिश्र …