बह गए बाढ़ में जो. .
कुछ दिन तो ठहरो प्रियतम!
मत आना मेरे सपनों में,
मैं ढूँढ़ रहा हूँ तुमको ही,
'दरभंगा' के डूबे अपनों में.. '
' कोसी' में डूबे कुछ अपने,
कुछ 'ब्रह्मपुत्र' की भंवरों में,
कुछ 'बागमती' से दरकिनार,
कुछ 'घाघरा' की लहरों में..
मैं यह कह कर के आया था,
लौटूंगा, सुनो! दशहरे में,
मुस्का कर विदा किया सबने,
आशा थी सबके चेहरे में..
पर आज प्रलय के इस पल ने,
मुझको पहले ही बुला लिया,
मेरी आँखों के आगे ही,
"प्रलयंकर" ने उनको मिटा दिया..
कुछ दिन श्रृंगार रहित कर दो,
कुछ दिन तो मनाओ शोक पिए!
तेरह दिन तो हो जाने दो,
इस बाढ़ की याद न आये हिये..
—प्राणेन्द्र नाथ मिश्र