झुर्रियां
झुर्रियां चेहरे पे मेरी शान हैं
ये तजुर्बे की मेरी पहचान हैं..
वक़्त ने कितने थपेड़े जड़ दिए,
हर शिकन गुजरे हुए पैगाम हैं...
खिलखिलाती धूप दिखती है मगर,
पर्त के नीचे अंधेरी शाम हैं....
आँख मूंदी तो लकीरें दिख गयीं,
नेकनामी हैं, कहीं बदनाम हैं...
शख्शियत मेरी लिपट कर बिछ गयी,
हरकतें भी हैं, कहीं कुछ काम हैं....
राह दिखती है मुझे अब मायके की,
बाप के ही फैसले, अंजाम
हैं....