कल शाम
सीता का पति राम
गंदी गलियों से गुज़रता
चला आया रावण के पास
और बोला--
हे रावण !
सीता का हाथ थाम
और कर मेरे
कुछ खाने का इंतज़ाम ........
हे रावण !
ऋषि-मुनि भी
हमें अब सताते हैं
मांग कर जो लाता हूँ
छीन कर ले जाते हैं. ...
मेरी पंचवटी
जला दी है दंगाईयों ने
धनुष-बाण बेच कर
पी ली शराब
लक्षमण के संग
छोटे भाइयों ने. .....
जिन जंगलों से
लाता था कंदमूल फल
वहां खड़े हैं आज
अट्टालिकाएं
बड़े बड़े महल. .....
मैं , शक्ति-हीन राम
चाहता हूँ कुछ अन्न
कुछ विश्राम. ........
चौदह वर्षों का वनवास
लगातार रहा
अपने निकट,
अपने आस पास .......
इन्हीं वर्षों में
हो जाएगा
मेरा काम तमाम
मरने से पहले
कुछ तो कर लूँ विश्राम. .....
अब देर न कर रावण !
सीता का हाथ थाम
और
कुछ कर मेरे
खाने का इंतज़ाम !!!!
..........मेरी पुस्तक " अपने आस-पास" की एक कविता