अकड़ के बोली गोल जलेबी, मुझसा कौन रसीला ?
मुझको चाहे सारी दुनिया, गाँव, शहर, क़बीला ....
रबड़ी बोली , चुप कर झूठी! मुझको क्या बतलाती ,
मुझको पाकर सारी दुनिया, बर्तन चट कर जाती ....
काला जाम हंसा हो हो कर, नहीं मिसाल हमारी,
जिसका काला रंग हो उसपर, मरती दुनिया सारी. .....
सावन के बादल हैं काले, काले कृष्ण हैं, काले राम,
जितना काला उतना मीठा, सबसे बढ़िया काला जाम. ...
रसगुल्ले ने देखा सबको, हलकी सी मुस्कान भरी,
मुझे चाहते राजा, रानी , बच्चे, बूढ़े और परी ..... .
दूध बीच में आकर बोला, मत अब करो बड़ाई,
मेरे ही कारण तुम सबने , अपनी शान बधाई. ...
मेरे घी में तली जलेबी, मुझसे बनती रबड़ी,
कला जाम बने खोये से, क्यों डींग हांकता तगड़ी. ..
मुझसे ही छेना बनता है, छेने से रसगुल्ला,
क्यों बघारते हो तुम शेखी, यूं ही खुल्लमखुल्ला. ..
मैं हूँ पिता तुम्हारा तुम सब मुझको करो प्रणाम,
मिलकर रहना भाई, बहनों, जाओ करो आराम. ....