तुम दबे रहे पन्नों के पीछे
जाने कब तक मेरे साथी,
तुम साथ चले मेरे चिंतन में
हो साथ नहीं फिर भी साथी. ..
मैं व्यक्ति मगर, मैं व्यक्त नहीं
गूँगा हूँ खुद को कहने में,
कल-कल कर बहता ही रहता
बिछड़ा जल जैसे बहने में. ...
जाने कितने सुरभित पल, क्षण
मुस्कान मार कर चले गए,
हर पल यूं लगा कि कुछ कह दूँ
हर पल, हर क्षण हम छले गए. ...
सूरज निकले पूरब में पर
पश्चिम में देता है प्रकाश ,
मैं यही सोच कर बैठा हूँ
कब हो मुझको अलोकाभास ......