एक ग़ज़ल: बेवफाई
मैंने भी इक गुनाह, यहाँ आज कर लिया,
बाहों में भर के उनको, तुम्हे याद कर लिया..
फिर से हुयी है दस्तक, कहीं पर ख़याल की,
जाकर के दिल ने दूर से, फिर दर्द भर लिया..
माजी की खाहिशें हैं, ये भूलती नहीं,
गुज़रा हुआ था वक़्त, गले फिर से मिल लिया...
शायद खड़े थे तुम वहां, मेरी तलाश में,
हम क्या करें जो ग़ैर ने, अपना समझ लिया..
कैसा नसीब है कि बदलता ही रह गया,
कुछ तुमने भूल कर दिया, कुछ हमने कर लिया..
कहते हैं लोग ठीक ही, राहों में ऐ 'शफ़क'!
छूटा कोई तो और कोई साथ चल लिया...
-- प्राणेन्द्र नाथ मिश्र