सुबह की ग़ज़ल --शाम के नाम
आज़ाद होने के बाद से भारत के शहीदों की शहादत सबसे अधिक कश्मीर से जुड़े इलाकों में हुयी है.
उन शहीदों की रूहें आज तक घूम घूम कर पूरे भारत के लोगों से गुहार कर रही हैं कि तिरंगे का केसरिया रंग कश्मीर के केसर से मिलाओ.
शहीदों की यादें सब को छू कर गुज़रती हैं...
बड़ी सुनसान राहें हैं, बड़ी खामोश नगरी है,
किसी की याद है शायद, सभी को छू के गुज़री है..
किनारे भी नदी के, आके उसका ढूँढ़ते हैं दर
न जाने आह थी किसकी, लहर पर जा के ठहरी है..
दरख्तों ने हवा को नम, बना कर रात भर रोया,
कई तो गिर गए सडकों पे, लगता चोट गहरी है..
हमें भी दर्द उभरा है, नहीं मालूम जाने क्यों?
खड़े हैं जिसके दर पर, यही क्या उसकी डेहरी है?
शहादत की कई रूहें, अभी भी घाटियों में हैं,
उन्हें आज़ाद कर डाला, सियासत अब न बहरी है?
मुबारक हो ! ये सावन का, बड़ा ही पाक सोमवार है,
तिरंगे की हवा बेख़ौफ़, पहल्गामों में लहरी है..
'शफ़क़' रोओ खुशी से तुम, उडाओ आज मंसूबे,
केसरिया रंग जो था बेबस, खिली फिर से दुपहरी है..
--प्राणेन्द्र नाथ मिश्र