तुम्हारी आँखें-- (यदि दान करो तो !)
किसी ने देखा माधुर्य
तुम्हारी आँखों में,
कोई बोला झरनों का स्रोत
तुम्हारी आँखों में..
कोई अपलक निहारता रहा
अनंत आकाश
तुम्हारी आँखों में,
कोई खोजता रहा
सम्पूर्ण प्रकाश
तुम्हारी आँखों में...
कोई बिसरा गया
तुम्हारी आँखों में
कोई भरमा गया
तुम्हारी आँखों में...
किसी के लिए कन्या का
स्पर्श हैं--तुम्हारी आँखें,
किसी को वसंत का
स्पंदन हैं--तुम्हारी आँखें..
बंद पलकों में
अथाह सागर हैं--तुम्हारी आँखें,
सुहाग रात में
दुल्हन का सिगार हैं-- तुम्हारी आँखें..
धान की बालियों का
कोर हैं--तुम्हारी आँखें,
खेतों का अनंत
छोर हैं--तुम्हारी आँखें..
घायल सैनिकों का
विश्राम हैं-- तुम्हारी आँखें,
नेत्र -हीनों को
अमर दान हैं--तुम्हारी आँखें..
हों अमर
दान देकर सृष्टि समा लें,
तुम्हारी आँखें,
तुम जन्म लो
और तुम्हे ही देखें
तुम्हारी आँखें...
--प्राणेन्द्र नाथ मिश्र