आज मैं चाय की दुकान पर बैठ कर अख़बार पढ़ रहा था. दरअसल मैं अख़बार नहीं मंगाता. यहीं चाय की दुकान पर ही पढ़ लेता हूं. पैसे भी बच जाते हैं. बस एक दिक्कत होती है यहां, कभी भी पूरा का पूरा अख़बार एक साथ पढ़ने को नहीं मिलता है. एक पेज मेरे हाथ लगता है तो दूसरा पेज कोई और पढ़ रहा होता है. जब तक अगला पढ़ के ख़तम ना कर दे तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ता है. कई बार ऐसा भी होता है की अगला अपने हिस्से के अख़बार का सौदा किसी और से कर लेता है. फिर आपका और भी ज्यादा थोड़ा और बढ़ जाता है. खैर, मैं अपने हिस्से में आए फिल्मी खबर वाले अख़बार को चाट रहा था की तभी किसी ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा. ये मेरा दोस्त मकालू था. मनहूस हर जगह पहुंच जाता है मेरे पीछे-पीछे मुझे दुःखी करने. बोला- गुरु तुम यहां पांच साल से हर रोज रंगीन अख़बारों में हीरोइन की टांगे निहारते रह गए और वहां नेताओ ने पांच साल में अपनी संपत्ति को 300 गुना कर लिया.
मैंने कहा- नेता है भाई, मायावी होते हैं, कुछ भी कर सकते हैं. वो गलत भी करे तो कौन रोक सकता है उन्हें.
मकालू ने मेरा अख़बार पकड़ के नीचे रख दिया. बोला- गुरु कैसी बात कर रहे हो, अगर नेता भी गरीब रहे तो फिर वो कैसा नेता? जिस नेता का स्विस बैंक में दो चार अकाउंट ना हो वो भी कोई नेता है? बल्कि मैं तो कहता हूं कि नेता होने की पहली शर्त होनी चाहिए कि इतना पैसा पीट दे कि लोगो की आंखे खुली रह जाएं. अरे गुरु जो नेता हेलीकाप्टर से ना उतरे और जिस नेता के काफिले के आगे दस और पीछे बीस गाड़ियों का काफिला ना चलता हो, वो भी भला कोई नेता है.
मकालू तुम्हारी ऐसी ही बेहूदा बातों की वजह से मैं तुमसे दूर ही रहता हूं. भाई नेता पैसा कमाने क लिए नहीं बना जाता है. बल्कि वो समाज सेवा का माध्यम है. लोगों की तकलीफों से द्रवित होकर लोग राजनीति में घुसते हैं ताकि वो लोगों के दुखों को दूर कर सकें- कहते हुए मैंने अख़बार उठा लिया.
मकालू ने इस बार मेरा अख़बार छीन लिया और बोला – तुम गुरु घंटाल हो, कुछ नहीं जानते. नेता बनते हैं क्योंकि किसी भी दूसरे व्यवसाय में इससे ज्यादा कमाई नहीं है. नेता इसीलिए बना जाता है कि तुम्हारी समाज में हनक हो, पावर हो, लोगों को तुम्हारे खिलाफ बोलने से पहले ही हवा निकल जाये और एक बात बताओ अगर नेता पैसा नहीं कमाएगा तो लोगो के सुख दुख में बांटेगा कहां से?
तो क्या जनता के पैसे लूट लेना सही है??
लूटता कौन है? सरकार नेताओं की जेब में पैसा डालती है ताकि वो समाज सेवा कर सके. नेता उसमें से पैसा निकालते हैं लेकिन हाथ में सारा ही पैसा तो आ नहीं जाता. थोड़ा बहुत जेब में चिपका रह जाता है, जेब में ही छूट जाता है. कभी तुम्हारे साथ भी ऐसा हुआ होगा, कुछ पैसा पॉकेट में रह गया होगा और कपड़े के साथ धुल गया होगा?
हुआ है – मैंने कहा.
मकालू बोला – बस इतनी सी बात है. नेताओं के जेब में भी ऐसे ही थोड़ा थोड़ा कर के पैसा इकट्ठा हो जाता है. अब मेरे दूसरे सवाल का जवाब दो – नेताओं से पहले कौन राज करता था?
मैंने कहा- राजा.
हां ….तो कभी गरीब राजा के बारे में सुना है?
नहीं !
तो अब नेता ही राजा है, वो क्यूं गरीब रहे भला? भगवान राम भी तो अमीर थे. तो बस समझ लो कि आज के नेता भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह बनना चाहते हैं. अमीर. दरअसल नेता राम राज्य की परिकल्पना को साकार कर रहे हैं – मकालू ने अजीब सा तर्क दिया.
मैंने आज तक के अपने जीवन में इससे ज्यादा वाहियात बात नहीं सुनी थी. तुम्हारे जैसे लोगो की वजह से ही नेता आज देश को लूट रहे हैं. लेकिन देर है अंधेर नहीं है. जो गलत करेगा वो जेल भी जायेगा – कहते हुए मैं उठा और चाय की दुकान से बाहर निकल आया.
गुरु जेल जाना कोई बुरी बात नही है, जेल में तो बड़े-बड़े महापुरुष भी आते जाते रहे हैं. तुम अपनी सोच बदलो फिर देखो पांच साल बाद तुम्हारी भी संपत्ति कई गुना ना हो गयी तो कहना – पीछे से मकालू अब भी अपना घटिया लॉजिक दिए जा रहा था.