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एनार्की

18 फरवरी 2022

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 (१) 

"अरे, अरे, दिन-दहाड़े ही जुल्म ढाता है ! 

रेलवे का स्लीपर उठाये कहाँ जाता है?” 

  

“बड़ा बेवकूफ है, अजब तेरा हाल है ; 

तुझे क्या पड़ी है? य' तो सरकारी माल है।” 

  

“नेता या प्रणेता ! तेरा ठीक तो ईमान है? 

पर, दिया जाता अब देश में न कान है। 

बने जाते कल-कारखाने आलीशान भी, 

साथ-साथ तेरे कुछ अपने मकान भी।” 

  

“भाई बकने दो उन्हें, तुम तो सुजान हो, 

कविता बनाते हो, हमारे अभिमान हो । 

मान लो, कभी जो चूर-धुन थोड़ा पाते हैं, 

भारत से बाहर तो फेंक नहीं आते हैं। 

जो भी बनवाये, अपना ही व’ भवन है, 

देश में ही रहता है, देश का जो धन है। ” 

  

“और, अरे यार! तू तो बड़ा शेर-दिल है, 

बीच राह में ही लगा रखी महफ़िल है ! 

देख, लग जायँ नहीं मोटर के झटके, 

नाचना जो हो तो नाच सड़क से हटके।” 

  

“सड़क से हट तू ही क्यों न चला जाता है? 

मोटर में बैठ बड़ी शान दिखलाता है ! 

झाड़ देंगे, तुझमें जो तड़क-भड़क है, 

टोकने चला है, तेरे बाप की सड़क है?” 

  

“सिर तोड़ देंगे, नहीं राह से टलेंगे हम, 

हाँ, हाँ, जैसे चाहेंगे, वैसे नाच के चलेंगे हम। 

बीस साल पहले की शेखी तुझे याद है। 

भूल ही गया है, अब भारत आजाद है।” 

  

(२) 

सुनिये क्रोपाटकिन – गोरकी ! 

भारत में फैली है आज़ादी बड़े जोर की। 

सुनता न कोई फ़रियाद है। 

देखिये जिसे ही, वही ज़ोर से आज़ाद है। 

  

लोग हैं आज़ाद चिल्लाने को। 

नेता हैं आज़ाद जहाँ चाहे, वहाँ जाने को। 

अफ़सर परम स्वतंत्र हैं। 

मन्त्रीजी हज़ार पढ़ें, लगते न मन्त्र हैं। 

साहब तो खुद परीशान हैं। 

चपरासी देते उन्हें पानी न तो पान हैं। 

  

अजब हमारा यह तन्त्र है। 

नक़ली दवाइयों का व्यापारी स्वतंत्र है। 

पुलिस करे जो कुछ, पाप है। 

चोर का जो चाचा है, पुलिस का भी बाप है। 

अखबार मुक्त हैं चुपाने को, 

विज्ञापनदाताओं का मरम छुपाने को। 

  

और छात्र बड़े पुरजोर हैं, 

कालिजों में सीखने को आये तोड़-फोड़ हैं। 

कहते हैं, पाप है समाज में, 

धिक् हम पे ! जो कभी पढ़ें इस राज में। 

अभी पढ़ने का क्या सवाल है? 

अभी तो हमारा धर्म एक हड़ताल है। 

  

कोई नहीं है कैद कपाट में, 

हाट में जो आया नहीं, होगा अभी बाट में। 

हाथ में हो केक या कि रोटी हो, 

सूट में हो लैस या कि पहने लँगोटी हो, 

कवि हो कि नेता हो कि छात्र हो, 

या कि ठेला हाँकता हो, करुणा का पात्र हो ; 

एक बात में सभी समान हैं ; 

दूसरों की बात पे न देते कभी कान हैं। 

  

हलचल बड़ी है बाज़ार में, 

कोई पाँव-पैदल, चढ़ा है कोई कार में। 

लेकिन, सभी की यह टेक है, 

अब किसी में भी नहीं बुद्धि या विवेक है। 

सरकार से यदि न ऊबेगा, 

डूबेगा, अवश्य, यह सारा देश डूबेगा।  

(३) 

सोच-सोच आनन मलीन है, 

एक ओर पाकिस्तान, एक ओर चीन है। 

समझ न पड़ता चरित्र है, 

रूस-अमरीका में से कौन बड़ा मित्र है। 

  

दोस्त ही है, देख के डरो नहीं। 

कम्यूनिस्ट कहते हैं, चीन से लड़ों नहीं। 

चिन्तन में सोशलिस्ट गर्क है, 

कम्यूनिस्ट और काँगरेसी में क्या फ़र्क है? 

जनसंघी भारतीय शुद्ध है। 

इसीलिए, आज महावीर बड़े क्रुद्ध हैं। 

  

और काँगरेसी भी तबाह है। 

ठीक-ठीक जान ही न पाता, कौन राह है। 

दायाँ या कि बायाँ? कौन ठीक है? 

पूछता है, यार, गाँधीजी की कौन लीक है? 

  

एक कहता है, “चलो रूस को।” 

दूसरा है चीखता कि “मारो मनहूस को। 

वाणी की स्वतंत्रता प्रमुख है। 

चुप रहने से बड़ा और कौन दुःख है?” 

  

“तो फिर अमरीका की बात हो?” 

“लोभी, मेरे मस्तर पै भारी वज्रपात हो। 

गाँधीजी की बात नहीं याद है? 

आदमी को यन्त्र कर देता बरबाद है।” 

  

“तो फिर चलायें, चलो, तकली।” 

“हम गाँधीजी के भक्त होंगे नहीं नकली। 

दबा नहीं अपने को पायेंगे ; 

गाँधीजी के पास हरगिज नहीं जायेंगे।” 

  

“तब तुम्हीं बोलो, हम क्या करें?” 

“चाय पियें और जी में आये जो, बका करें। 

बकना ही असली स्वराज है। 

बाक़ी तो जहाँ भी देखो, डाकुओं का राज है।” 

  

भोर में पुकारो सरदार को, 

जीत में जो बदल देते थे कभी हार को। 

तब कहो, ढोल की य’ पोल है, 

नेहरू के कारण ही सारा गण्डगोल है। 

  

फिर जरा राजाजी का नाम लो। 

याद करो जे.पी. को, विनोबा को प्रणाम दो। 

तब कहो, लोहिया महान है। 

एक ही तो वीर यहाँ सीना रहा तान है। 

  

ऊपर बढ़े जो और गरमी, 

एक बारगी दो छोड़ बची-खुची नरमी। 

कहो, राम ! तिमिर में राह दो, 

डिमोक्रेसी दूर करो, हमें तानाशाह दो। 

  

और फिर माला ले के हाथ में 

देवता से माँगो वरदान आधी रात में। 

दूर रखो हमको गुनाह से 

देश को बचाये रखो राम ! तानाशाह से। 

  

क्षमा करो, क्षमा करो, मन्द गति है ; 

नेहरू को छोड़ हमें और नहीं गति है। 

और जब पुनः प्रकाश हो ; 

बोलो, कांगरेसियों ! तुम्हारा सर्वनाश हो। 

  

(४) 

जहाँ भी सुनो, वही आवाज़ है, 

भारत में आज, बस, जीभ का स्वराज है। 

और मन्त्री भी न अप्रमुख हैं। 

एक कैबिनट के अनेक यहाँ मुख हैं। 

  

एक कहता है, हाहाकार है, 

दाम पै लगान कसो, देश की पुकार है। 

दूसरे की मति अति शुद्ध है, 

कहता है, नीति यह धर्म के विरुद्ध है। 

  

गाँधीजी की याद नहीं टेक है? 

पूँजीपति और जनता का भाग्य एक है। 

आज़ादी की धार गहराने दो, 

जो भी चाहता हो, उसे छूट के कमाने दो। 

  

(५) 

चिन्तकों में अजब उमंग है। 

जनता चकित और सारा विश्व दंग है। 

एक कहता है, किस बात में 

हम है स्वतंत्र, यदि लाठी नहीं हाथ में? 

  

घूम रहा देश किस ध्यान में, 

बकरी का दूध पीके शेरों के जहान में? 

वही है स्वतंत्र, जो समर्थ है, 

परमाणु-बम जो नहीं तो सब व्यर्थ है। 

  

दूसरा है रोता, विधि वाम है। 

सेनाओं का गाँधीजी के देश में क्या काम है? 

अहिंसा का तत्त्व यदि जानते, 

हाय नेहरू जो गाँधीजी को पहचानते, 

सीमा पर शत्रु कोई आता क्यों? 

आँखे दिखला के हमें कोई धमकाता क्यों? 

भीति युद्ध-बीज सदा बोती है। 

शस्त्र जहाँ रहते हैं, हिंसा वहीं होती है। 

  

(६) 

राम जानें, भीतर क्या बल है ! 

तब भी बखूबी यह देश रहा चल है। 

गण, जन, किसी का न तन्त्र है। 

साफ़ बात यह है कि भारत स्वतन्त्र है। 

भिन्नता सँभाले तार-तार की, 

राज करती है यहाँ चैन से ‘एनारकी’। 

(११-१० ६२ ई०)  

  

  

   

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रचनाएँ
परशुराम की प्रतीक्षा
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परशुराम की प्रतीक्षा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित खंडकाव्य की पुस्तक है। इस खंडकाव्य की रचना का काल 1962-63 के आसपास का है, जब चीनी आक्रमण के फलस्वरूप भारत को जिस पराजय का सामना करना पड़ा, उससे राष्ट्रकवि दिनकर अत्यंत व्यथित हुये और इस खंडकाव्य की रचना की।
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परशुराम की प्रतीक्षा

18 फरवरी 2022
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खण्ड-1 गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ? शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ? उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था, तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था; सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे, निर्वीर्य कल

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परशुराम की प्रतीक्षा

18 फरवरी 2022
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खण्ड-2  हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?  हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?     यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?  दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।  पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है, 

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परशुराम की प्रतीक्षा

18 फरवरी 2022
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 खण्ड-3  किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ?  किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ?     दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम;  यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।  वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,  हम

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परशुराम की प्रतीक्षा

18 फरवरी 2022
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 खण्ड-4  कुछ पता नहीं, हम कौन बीज बोते हैं,  है कौन स्वप्न, हम जिसे यहाँ ढोते हैं।     पर, हाँ, वसुधा दानी है, नहीं कृपण है,  देता मनुष्य जब भी उसको जल-कण है।  यह दान वृथा वह कभी नहीं लेती है, 

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परशुराम की प्रतीक्षा

18 फरवरी 2022
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 खण्ड-5  (१)  सिखलायेगा वह, ऋत एक ही अनल है  जिन्दगी नहीं वह जहाँ नहीं हलचल है ।  जिनमें दाहकता नहीं, न तो गर्जन है,  सुख की तरंग का जहाँ अन्ध वर्जन है,  जो सत्य राख में सने, रुक्ष, रूठे हैं, 

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जवानियाँ

18 फरवरी 2022
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 नये सुरों में शिंजिनी बजा रहीं जवानियाँ  लहू में तैर-तैर के नहा रहीं जवानियाँ।     (1)  प्रभात-श्रृंग से घड़े सुवर्ण के उँड़ेलती;  रँगी हुई घटा में भानु को उछाल खेलती;  तुषार-जाल में सहस्र हेम-

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हिम्मत की रौशनी

18 फरवरी 2022
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 उसे भी देख, जो भीतर भरा अङ्गार है साथी।     (१)  सियाही देखता है, देखता है तू अन्धेरे को,  किरण को घेर कर छाये हुए विकराल घेरे को।  उसे भी देख, जो इस बाहरी तम को बहा सकती,  दबी तेरे लहू में रौश

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लोहे के मर्द

18 फरवरी 2022
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पुरुष वीर बलवान,  देश की शान,  हमारे नौजवान  घायल होकर आये हैं।     कहते हैं, ये पुष्प, दीप,  अक्षत क्यों लाये हो?     हमें कामना नहीं सुयश-विस्तार की,  फूलों के हारों की, जय-जयकार की।    

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जनता जगी हुई है

18 फरवरी 2022
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 जनता जगी हुई है।  क्रुद्ध सिंहिनी कुछ इस चिन्ता से भी ठगी हुई है।  कहाँ गये वे, जो पानी मे आग लगाते थे?  बजा-बजा दुन्दुभी रात-दिन हमें जगाते थे?  धरती पर है कौन ? कौन है सपनों के डेरों में ?  कौ

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आज कसौटी पर गाँधी की आग है

18 फरवरी 2022
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(१) अब भी पशु मत बनो, कहा है वीर जवाहरलाल ने। अन्धकार की दबी रौशनी की धीमी ललकार, कठिन घड़ी में भी भारत के मन की धीर पुकार। सुनती हो नागिनी ! समझती हो इस स्वर को ? देखा है क्या कहीं और भू पर उस

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जौहर

18 फरवरी 2022
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 जगता जब जहान,  उसे जब विपद जगाती है।     हँसी भूल बच्चे चिन्तन करने लगते हैं।  बहनें जाती डूब किसी गम्भीर ध्यान में।  कुसुम खोजने लगते अपनी आग,  ऊँघती नदी तेज होकर हहराती है।     पेड़ खड़े कर

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आपद्धर्म

18 फरवरी 2022
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 अरे उर्वशीकार !  कविता की गरदन पर धर कर पाँव खड़ा हो।  हमें चाहिए गर्म गीत, उन्माद प्रलय का,  अपनी ऊँचाई से तू कुछ और बड़ा हो।     कच्चा पानी ठीक नहीं,  ज्वर-ग्रसित देश है।  उबला हुआ समुष्ण सल

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पाद-टिप्पणी

18 फरवरी 2022
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 (युद्ध काव्य की)  मेरी कविताएँ सुनकर खुश होने वाले !  तुझे ज्ञात है, इन खुशियों का रहस्य क्या है?     मेरे सुख का राज? सभ्यता के भीतर से  उठती है जो हूक, बुद्धि को विकलाती है।  कोई उत्तर नहीं।

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शान्तिवादी

18 फरवरी 2022
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पुत्र मृत्यु के लिए, पिता रोने को,  माँ धुनने को सीस, वत्स आंसू पीने को,  लुटने को सिन्दूर,  उत्तराएँ विधवा होने को है        सरहद के उस पार हो कि इस पार हो,  युध्द सोचता नहीं, कौन किसका द्रोहा

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अहिंसावादी का युद्ध-गीत

18 फरवरी 2022
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 (1)  हाय, मैं लिखूँ युद्ध के गीत !  बन्धु ! हो गयी बड़ी अनरीत !  कण्ठ उस अन्तर के विपरीत ;  देशवासी ! जागो ! जागो !  गाँधी की रक्षा करने को गाँधी से भागो !     (2)  रुधिर में रखे शीत या ताप? 

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इतिहास का न्याय

18 फरवरी 2022
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दूर भविष्यत् के पट पर जो वाक्य लिखे हैं,  पढ़ लेना, भवितव्य अगर आगे जीवित रहने दे।     गाँधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य स्वप्नों के।  भारत स्वयं मनुष्य-जाति की बहुत बड़ी कविता है।     कह ले

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एनार्की

18 फरवरी 2022
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 (१)  "अरे, अरे, दिन-दहाड़े ही जुल्म ढाता है !  रेलवे का स्लीपर उठाये कहाँ जाता है?”     “बड़ा बेवकूफ है, अजब तेरा हाल है ;  तुझे क्या पड़ी है? य' तो सरकारी माल है।”     “नेता या प्रणेता ! तेरा

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एक बार फिर स्वर दो-1

18 फरवरी 2022
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 एक बार फिर स्वर दो।  अब भी वाणीहीन जनों की दुनिया बहुत बड़ी है।  आशा की बेटियाँ आज भी नीड़ों में सोती हैं  सुख से नहीं ; विवश उड़ने के पंख नहीं होने से,  और मूक इसलिए कि उनके कण्ठ नहीं खुलते हैं।

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एक बार फिर स्वर दो-2

18 फरवरी 2022
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एक बार फिर स्वर दो।  जिस गंगा के लिए भगीरथ सारी आयु तपे थे,  और हुई जो विवश छोड़ अम्बर भू पर बहने को  लाखों के आँसुओं, करोड़ों के हाहाकारों से ;  लिये जा रहा इन्द्र कैद करने को उसे महल में।  सींच

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तब भी आता हूँ मैं

18 फरवरी 2022
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 टूट गये युग के दरवाजे?  बन्द हो गयी क्या भविष्य की राह?  तब भी आता हूँ मैं     बल रहते ऐसी निर्बलता,  स्वर रहते स्वरवालों के शब्दों का अर्थाभाव !  दोपहरी में ऐसा तिमिर नहीं देखा था।     खिसक

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समर शेष है

18 फरवरी 2022
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ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,  किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?  किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,  भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?     कुंकुम?

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जवानी का झण्डा

18 फरवरी 2022
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घटा फाड़ कर जगमगाता हुआ  आ गया देख, ज्वाला का बान;  खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,  ओ मेरे देश के नौजवान!     (1)  सहम करके चुप हो गये थे समुंदर  अभी सुन के तेरी दहाड़,  जमीं हिल रही थी, जहाँ हि

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