एक उपभोगता, क्रेता अथवा खरीदार, जब किसी व्यक्ति, समूह, वेंडर्स, फुटकर फल-सब्जी विक्रेता , किराना दुकानदार आदि से रोजमर्रा की आवश्यकताओं
के लिए लेन-देन करता है तो वह विक्रेताओं, वेंडरों की बेसिक जानकारी अपने पास रखता है। मसलन ! वेंडर्स का व्यवहार कैसा है ? तोल कैसी है ? सामान,फल-सब्जी की गुणवत्ता कैसी है ? ईमानदारी कैसी है ? आदि-आदि ।
इन्ही गुण-दोषों के आधार पर एक उपभोगता/क्रेता, वेंडरों/ विक्रेताओं से रोजमर्रा का लेन-देन करता है। धोखेबाज, हेरा-फेरी मास्टर, गुस्सैल या संग्दिध से एक खरीदार व्यक्ति लेन-देन न कर कन्नी काटता है।
अतः निष्कर्ष निकाल सकते है कि वेंडरों, फुटकर विकर्ताओं की अपनी एक व्यकितगत
गुडविल (ख्याति) होती है, जिसके आधार पर बिक्री निर्भर करती है।
कोरोना वैश्विक माहमारी से विश्व भर में इस समय तक लगभग 2.50 लाख लोग काल के गाल में समा चुके हैं , इनमें भारत में आरोग्य सेतु के
अनुसार 1223
कोरोना से हुई
मौते भी शामिल है।
कोरोना जैसी छुवाछूत बीमारी, जिसके लक्षण बहुत देर से प्रकट होते
है , क्रेताओं, उपभोक्ताओं को अंदर तक भयभीत कर दिया है। इसी लिए वह इन दिनों अनजान वेंडरों/ विक्रेताओं से लेन-देन करने से हिचकते है ।
ऊपर से कोढ़ में खाज का काम किया , सोशल, प्रिंट व् इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में वायरल हुए अनेकों वीडियों ने ! जिसमें कुछ दूषित , आपराधिक, समाज-देशद्रोही मानसिकता वाले वेंडर्स कोरोना व् डर फैलाने के उद्देश्य से नोटों, फलों -सब्जी को दूषित करते हुए दिखाई देते है ।
इन्ही विकृत मानसिकता वाले वेंडरों की जानलेवा हरकतों के कारण क्रेताओँ में अनजान वेंडर्स के प्रति अविश्वास का वातावरण भर गया है व् वेंडरों की ख्याति को बड़ा धक्का लगा है। इसी
कुकृत्य से उनकी रोजी रोटी प्रभावित होने की आशंका है Ɩ ठीक
ही है एक मछली सारे तालाब को गंदा
कर देती है।
कोरोना के डर के कारण कहीं-कहीं कुछ क्रेता , वेंडरों/विक्रेताओं से पहचान पूछते है। मीडिया में इसी को लेकर तिल का
ताड़ बनाया गया है। भला
जिस विक्रेता के कार्य-कलाप से क्रेता, व् उसके पूरे परिवार की जान पर बन जाए तो उसकी पहचान पूछना कौन सा गुनाह है ?
बैंक में खाता खोलने के लिए ग्राहक को KYC (Know –Your
– Client /Customer ) फार्म स्पोर्टिंग डोक्युमेन्ट्स
के साथ देना होता है, वेंडर्स को माल सप्लाई करने वाली कम्पनी को KYS ( Know –Your –Suppliers
) फार्म
देना होता है , जिसमें PAN , BANK , एड्रेस, आधार , GST आदि की डिटेल होती है।
अतः जब अविश्वास का वातावरण का
निर्माण हो ही गया है , तो उपभोगता/ क्रेता दवरा वेंडर्स से पहचान डाक्यूमेंट्स
मांगना एकदम न्यायोचित है। इसी से वेंडर्स की क्रेताओं के बीच पहचान, गुडविल का निर्माण होगा।
अविश्वास के माहौल में झारखण्ड , बिहार
में कुछ विक्रताओं ने उपभोक्ताओं का डर दूर करने व् विश्वास पैदा करने के
उद्देशय से सराहनीय पहल कर , पहचान रूप में भगवा धवज प्रदर्शित किया।
लेकिन खबरानुसार पुलिस ने शिकायत पर भगवा ध्वज पर रोक लगा दी। जो पूर्णतः क्रेता व् विक्रेता के बीच विश्वास को तोड़ने जैसा है Ɩ
उत्तर प्रदेश- मेरठ शहर - एक
वेंडर दवरा इसी तरह की सराहनीय पहल करते हुए उपभोगताओं में विश्वास पैदा करने उद्देश्य से , पहचान के रूप में भगवा ध्वज प्रयोग किया । सेक्युलर व्यक्ति ने खतरा
भांप टवीट कर , पुलिस को संज्ञानित किया , परन्तु कुछ भी गलत न होने के कारण मामले के टॉय टॉय फिस हो गयी Ɩ
जब अविश्वास का माहौल निर्मित कर दिया गया हो , उपरोक्त के
आधार पर कहा जा सकता है कि वेंडर्स को पहचान कर उससे लेन -देन करना एक क्रेता/उपभोगता
का अधिकार है इसमें भला सेकुलरिटी , धर्म , राजनीती कहाँ
पैदा होती है । हर बात को धर्म, राजनीति के
चश्में से देखना मतलब गयी ,
भैस
पानी में ।
कोरोना ने दुनिया बदल दी, उपभोगता/ क्रेता हित में अगर वेंडर्स की
पहचान अनिवार्य हो, के नियम बदल जाए तो क्या बुराई है? वेंडर्स
पहचानिये , सुखी- स्वस्थ रहिये