आज किसान नेताओं की बाढ़ आ गयी है।ऐसे ही
बिना जनाधार नेताओं ने राजनीती में उतरने व् खुद को चमकाने
के लिए राजधानी के चारो ओर डेरा डाला है।इससे न केवल आम लोगों की नाक में दम कर
रखा हैƖ आंदोलन से नित्य दिनचर्या , रोजगार बुरी तरह से प्रभावित हुए
है। सड़क यातायात प्रभावित हुआ
है। किसानों की फल सब्जी की ढुलाई लागत बढ़ी
है। दिल्ली में फल सब्जी के दाम बढे है Ɩ
अभी तक यह लोग देश को करोड़ों का फटका लगा चुके
है , 26 Jan.21 को जिस तरह लाल किले पर तिरंगे का अपमान हुआ, इससे
असली किसान की साख को भारी बट्टा लगा है। ऐरा-गैरा, नत्थू-ख़ैरा
हर कोई किसान नेता सिद्ध करने पर तुला है।
वोट बैंक की चाह में किसान नेताओं की पूछ बढ़ी है। शहर में RWA /मोहल्ला/कल्याण समिति की तरह गांव-गावं
में भारी संख्या में कुकरमुत्ते सी किसान यूनियन की बाढ़ आ गई है , जैसे-जैसे
चुनाव नजदीक आते जायेगें, वैसे-वैसे किसान यूनियन के क्षेत्र
में और भी जेबी, परिवारिक किसान यूनियन बनने की प्रबल संभावनाएं हैं । हर
कोई गरम तवे पर रोटी सेंकने पर लगा है।
हर कोई अपने को असली किसान हितेषी व् नेता
सिद्ध करने पर तुला है , खेत में काम करने वाला असली किसान हो या
घर के आँगन में गमले में गेंदा उगाने वाले आन्दोलनजीवी ,
नेता
हो या अभिनेता , करोड़ों के वारे न्यारे करने वाले जमीन
कारोबार से जुड़ ,अपने को जमीन से जुड़ा नेता कहने व् देश-विदेश में करोड़ों की दौलत वाले लोग, सभी आज किसान
की पदवी लेना चाहते है ।
एयर कंडिशनी बुद्धूजीवी हो या बुद्धिजीवी , आन्दोलनजीवी
हो या परजीवी यह सभी प्राणी आँख के अंधे व् गाँठ के पुरे है , आज भी किसान
को साठ के दशक का अनाड़ी किसान समझते है , बिना बदलाव के पुरानी पड चुकी किताबों में लिखी बातें पढ़, उन्हें
आज भी भारत सपेरों का देश व् किसान अनपढ़, नासमझ नजर आता है।
किसानों के पैरवीकार आज
खेती व् उसकी आवश्यकता कितनी बदल गयी है, शायद ही
जानते हों । छोटी जोत होने के कारण व् देश- विदेश
की आवश्यकता को देखते हुए आज खेती में बड़े बदलाव की आवश्यकता है। कृषि को केवल
परम्परागत खेती जैसे गेहूं ,धान या गन्ने की खेती तक ही
सीमित नहीं रखा जा सकता है।
देश में वनस्पति तेल जैसे सरसों ,सूरजमुखी , मूंगफली, दालों
के साथ जड़ी-बूटियों की भी आवश्यकता है , परिवार
के सदस्य बढ़ जाने के खेती की जोतें छोटी है। ऐसे में केवल परम्परागत कृषि
पर जीवन-यापन करना मुश्किल है Ɩ कृषिजीवी परिवारों की आय में वृद्धि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसे फार्मूले
से ही संभव हो सकती है।
कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से किसान की जमीन चली जाएगी यह बचकाना
है। उदाहरण के लिए-क्या ईंटों भटटा मालिक जो एक निश्चित अवधि के लिए ईंटों
को पाथने , मिट्टी उठाने के किसान से जमीन लेता है , क्या वह तय अवधि के बाद जमीन पर कब्जा कर लेता है ? कॉट्रेक्ट
फार्मिंग भी बस इसी तरह का एक समझौता है।
कॉट्रेक्ट फार्मिंग व् कृषि में बदलाव से कृषि उत्पादों का निर्यात और बढ़ सकता है। जिससे किसान की आय में
निश्चित रूप से वृद्धि होगा।
बदलाव जीवन के विकास का एक जरूरी अंग है । शुरू-शुरू में
बदलाव का विरोध हमेशा होता आया है।
क्या राजीव गांधी ने कम्प्यूटर का विरोध नहीं झेला ? क्या इमरजेंसी के दौरान लागू हुए संजय
गांधी के हम दो, हमारे दो , नसबंदी प्रोग्राम को लोगों ने सहज ही स्वीकार कर लिया ?
आज बदलाव के कारण ही कंप्यूटर , IT ने देश की नाक ऊंची की हुई है। वर्क फ्रॉम होम के कांसेप्ट ने IT सेक्टर व् देश-दुनिया को एक नई
दिशा दी है। IT सेक्टर से जुड़े कुछ किसान परिवारों के बच्चे कोरोना काल में गांव
से ही लैपटॉप पर वर्क फ्रॉम होम पर कार्य कर रहें है Ɩ
बंटवारे में छोटी जोतें आने के कारण किसान परिवार के बच्चे , जीविका
के लिए कृषि के बजाय रोजगार के अन्य विकल्प को अपनाने लगे है। इससे किसान परिवार
से निकले प्रतिभाशली बच्चों ने, न केवल अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, वरन
देश का माथा भी गर्व से ऊंचा किया है । सैमन
मछली से स्वभाव वाले किसान परिवारों से निकली प्रतिभा ने आज भी अपनी
छोटी
से जोत को दिल से जोड़ कर सहेज कर रखा हुआ है , मेरी ही तरह दिल्ली में नून तेल लकड़ी के जुगाड़ में आये ,ऐसे ही किसान परिवारों
के लाखों सदस्य है जो अपना रिटायरमेंट गावं व् अपनी पैतृक जमीन
की उसी छोटी सी जोत पर जीना का सपना पाले हुए है ,जहां खेत की लहलहाते फसलों
के बीच एकांत में लैपटॉप पर ब्लॉग की शक्ल में वो अपने
जीवन को अनुभव को लोगों को बाँट सके !
आज छोटी जोत वाले किसान परिवार के लाखों की संख्या में बच्चे , सेना/पुलिस/सुरक्षा
बलों, शिक्षा, मेडिकल फील्ड , क़ानून क्षेत्र जैसे वकील , जज, संसद/विधान सभा , CA
, CS जैसे
प्रोफेशन से भी जुड़े है । कुछ परिवार के बच्चे IIT
/ PHD आदि
कर विदेश में तिरंगे की शान में चार चाँद लगा , बुलंदी
पर पहुंचा रहें है ।
बस फर्क इतना है कि यह लोग मीडिया
की चोंध से दूर चुपचाप देश प्रगति, मान-प्रतिष्ठा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहें है। मीडिया
में छाये रहने वाले आन्दोलनजीवी, परजीवी की तरह यह कैमरों की
बाईट से
दूर ही रहते है।
ख़ैर ! किसान आंदोलन की तरह यह ब्लॉग
कुछ ज्यादा ही लंबा हो चला है। अब मुख्य विषय पर आते
है ।
अब समय आ गया है , यदि यह तकनीकी व् कानूनी रूप से संभव हो तो सरकार को - "किसान
लीडर्स रेगुलेटरी अथॉरिटी ", का गठन करना चाहिए। ताकि असली/नकली/आन्दोलनजीवी/
परजीवी नेताओं का टंटा सदा-सदा
के लिए खत्म हो जाए। और छोटी-छोटी जोतों वाले किसानों के हित में सरकार दवरा उठाये गए क़दमों का लाभ बिना किसी रोक-टोक के उन्हें मिल
सके।
अपने हितों का फैसला वो स्वयं करें ! उन्हें आन्दोलनजीवी परजीवी
जैसे लोग जिनकी जीविका ही आंदोलनों से ही चलती प्रतीत होती है की पैरवी की जरूरत ही न पड़े
!
शायद इस कदम से जेबी/परिवारिक किसान यूनियन व् आंदोलनकारी
नेताओं से छोटी जोत वाले किसानों जिनकी संख्या बहुत ही ज्यादा है, के
हितों की आन्दोलनजीवी से रक्षा की जा सके।
वन्दे मातरम
जय हिन्द जय भारत ,!