डीमॉनेटाइजेशन (Demonetisation)(विमुद्रीकरण अथवा नोटबंदी )के निर्णय पर विचार करने से पहले हम देश की आजादी के बाद लिए गये कुछ एक निंर्णयों पर प्रकाश डालते है। जिनमें से कुछ सफल रहे, कुछ विवादास्पद रहे, कुछ का नतीजा सिफर अर्थात ठन-ठन गोपाल रहा। किसी-किसी निर्णय में देश की जनता को जान-माल के साथ-साथ काफी परेशानी उठानी पड़ी।
देश को गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उठाये गये कदम। राजीव गांधी की कम्प्यूटर क्रांति। जनता पार्टी के समय रेडियों, TV के लाइसेंस समाप्त करना, अटल जी के समय उपभोगता की मांग पर रसोई गैस के कनेक्शन देना आदि- आदि जहाँ कुछ सफल निर्णय के उदाहरण है, वहीं कुछ विवादास्पद निर्णय भी रहे जैसे देश में आपातकाल लागू करना, व्यापार ियों, नेताओं, पत्रकार, वकील, अध्यापक आदि को आपातकाल के समय सरकार का विरोध करने पर जेलों में नजरबंद करना। जबरन नसबंदी, आपातकाल के समय 50 वर्ष की आयु में युवाओं की रोजगार देने के नाम पर सरकारी कर्मचारियों का जबरन रिटायमेंट।आदि-आदि।
सरकार का डीमॉनेटाइजेशन निर्णय कैसा रहा इसका मूल्यांकन अभी से करना जल्दबाजी होगी । परन्तु इसके दो उद्देश्य एकदम साफ है - पहला देश के भीतर से अघोषित आय (जिस पर टैक्स न दिया गया हो) अर्थात काला धन उजागर कर उसे समाप्प्त करना। दूसरा जाली करेंसी जो हमारी अर्थव्यवस्था को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है, को समाप्त करना।
उपरोक्त दो को हम डीमॉनेटाइजेशन का मुख्य उत्पाद (Main Product) कह सकते है। इसमें सरकार कितनी सफल होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा परन्तु आज डीमॉनेटाइजेशन के कुछ उप-उत्पाद ( Sub-Product) जरूर सामने आ रहें हैं।ठीक उसी तरह जिस तरह गन्ने का मुख्य उत्पाद चीनी (शक्कर) है, परन्तु उप उत्पाद के रूप में शीरा, खोई, बिजली उत्पादन, एथनॉल आदि के रूप में बहुत कुछ मिल जाता है। जो गन्ने की कीमत में कई गुना वृद्धि कर देता है। खैर छोड़िये ! अब डीमॉनेटाइजेशन के उप-उत्पाद पर आते है, जो मीडिया में रह-रह कर उछल रहें है - डीमॉनेटाइजेशन से -
- कैशलेश इकोनॉमी को प्रोत्साहन।
- देश में नयी ब्रांडिड करेंसी का आगमन।
- कश्मीर में पत्थरबाजी पर लगाम।
- नक्सलवादियों का भारी संख्या में आत्मसमर्पण।
- क्राइम ग्राफ में कमी।
- विवाह आदि में फजूल खर्ची पर रोक।
- जनता का अधिक बचत पर जोर।
- कुछ राजनैतिक पार्टियों का भ्रष्टाचार का मुद्दा अपहृत हुआ।
आदि-आदि ।
जिस प्रकार किसी उद्योग से लाभ और दोष दोनों होते है उसी प्रकार डीमॉनेटाइजेशन से कुछ लाभ के साथ-साथ हानि भी हो रहीं है। - डीमॉनेटाइजेशन से
- कैश क्रंच से व्यापार पर विपरीत प्रभाव
- किसान, कृषि पर कुप्रभाव
- रोजगार के अवसर कम हुए।
- अव्यवस्था से नागरिकों को मानसिक यंत्रणा, तनाव।
- नोटबंदी के सदमें में या बैंक की लाइनों की अफरा-तफरी में कुछ लोगों की जान-माल की हानि।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि डीमॉनेटाइजेशन का निर्णय एकदम सही है, देश की जनता सरकार के साथ है। इसी लिए वह शांति से बैकों की लाइनों लगी है। कैश से खाली ATM, बैंकों की ओर ऐसे देख रही है जैसे भूख से बिलबिलाता बच्चा माँ को दूध की उम्मीद में टकटकी लगाकर देखता है।
आज 33 दिन से ऊपर बीत जाने पर भी जिस प्रकार देश में कैश की भयंकर कमी है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि डीमॉनेटाइजेशन के निर्णय को सही ढंग से लागू नहीं किया गया। कैश की कमी में लोगो का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है । सरकार को जनता के मनोबल में वृद्धि करने के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए:-
- बैकों में बंद नोट जमा करने की अंतिम समय सीमा 30 Dec.16 है व् RBI में जमा करने की समय सीमा 31 March, 17, को मीडिया के सभी माध्यमों का प्रयोग करते हुए प्रचारित करना चाहिए । सभी बैकों में इस घोषणा का बैनर लगा हो।
- बैंकों की अव्यवस्था को देखते हुए बैकों में बंद नोट जमा कराने के समय सीमा को कम से कम 31 Jan, 17 तक बढ़ाये जाने की तुरन्त आवश्यकता है। ताकि जो किसी कारणवश बंद नोट जमा नहीं करा सके उनके मानसिक तनाव को कम किया जा सके।
- विदेशी मुद्रा की तरह घर में कैश रखने या घर से बाहर करेंसी लाने या ले जाने की सीमा निर्धारित कर दी जाये। ताकि तलासी में दुरूपयोग न हो ।
- नोटबन्दी के चलते जिन लोगों को जान-माल से हाथ धोना पड़ा है उन्हें उत्तर-प्रदेश सरकार की तरह कुछ अनुग्रह राशि प्रदान की जानी चाहिए। - विपक्ष लोकतंत्र में एक प्रहरी का काम करता है, उससे बातचीत कर विश्वास में लिया जाना चाहिए। जनता सरकार के हर कदम के साथ है जनता को भी लगना चाहिए कि सरकार भी उसके साथ है