समाज
सामाजिक मान्यताओं के आधार पर चलता है। लम्बे समय से चली आ रही
मान्यतायें को आधार बनाकर क़ानून बना दिया जाता है। मान्यताओं
के आधार पर ही समाज में संतान की जाति-धर्म को तय किया
जाता है । दो तरह की सत्ताएं होती
हैं , एक - पितृ सत्ता , दूसरी मात्र सत्ता। संतान की
जाति व् धर्म जब पिता की जाति-धर्म से तय हो , उसे
पितृ सत्ता कहते है।
संतान
की जाति व् धर्म जब माताश्री की जाति व् धर्म से तय
हो ,उसे मातृसत्ता कहा जाता है । विश्व के अधिकतर धर्मों ,
समाज , जातियों में आज भी पितृ सत्ता चलती है।
विश्व
के सबसे प्राचीनतम सनातन धर्म ( “हिन्दू धर्म” )
में पितृ सत्ता चलती है। पिता की जाति से ही संतान
का धर्म व् जाति का निर्धारण होता है। एक धारणानुसार
सामाजिक-धार्मिक एकरूपता व् सदभाव के लिए विवाह
उपरांत धर्मपत्नी का धर्म भी पति के अनुरूप हो जाता है। “हिन्दू
धर्म” एक बहुत ही प्रगतिशील धर्म
है। समय की मांग के अनुसार इसकी परम्पराओं में परिवर्तन होता
रहता है। जैसे पहले मान्यता थी – “हिन्दू जन्म से
बनता है “। परन्तु अब इस मान्यता में परिवर्तन हुआ है। अब
यदि कोई व्यक्ति हिदूं धर्म है अपनाता चाहता है
तो हिंदू धर्म में जन्म लेने की बाध्यता नहीं है। वह
अन्य धर्म में जन्म लेकर भी हिन्दू धर्म का पालन कर सकता है। इसी
लचकता के कारण हिन्दू धर्म विश्व के अन्य देशों में भी फल- फूल रहा है
विधवा-विवाह
की मनाही , सती-प्रथा जैसी बुराई इस धर्म से कभी की
छू मंतर हो गयी । हिन्दू धर्म में पहले पिताश्री का अंतिम
संस्कार पुत्र/पुरूष द्वारा ही किया जा सकता था , परन्तु
सीमित परिवार व् परिवार में केवल पुत्री ही होने पर , पुत्री
को मान देते हुए , हिन्दू धर्म ने इस मान्यता को भी तोड़ दिया है।
आज पुत्री अपने पिता का अंतिम
संस्कार कर सकती है। निश्चित ही यह धर्म
की महानता को दर्शाता है।
इतना
सब होने पर भी इस धर्म में जातियों का बंधन जिस हिसाब से टूटना चाहिए था, उस
हिसाब से नहीं टुटा है। जातियों के आधार पर आरक्षण इसका एक
कारण हो सकता है।
वर्ष
2014 के चुनाव में एकतरफा छद्यम सेकुलरिज्म फेल होने के बाद से
तो नेताओं में ब्राह्मण , हिन्दू बनने की होड़ सी लगी है।
पिता/पति का धर्म चाहे अन्य हो , परन्तु न
जाने क्यों कुछ नेता अपने को हिन्दू धर्म
की स्वर्ण जाति -कुल का बताने से भी
नहीं चूकते ।
शायद सत्ता
के लिए कुछ नेता अपने को ऐसा कहने लगे है ।
मीडिया के कुछ लोग भी इसी तरह की रिपोर्टिंग करते है।
मीडिया को इस प्रकार की गलती से बचना चाहिए।
अंत
में यह कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म की मान्यताओं में पिता
धर्म -जाति ही , संतान की धर्म-जाति होती है। हाँ !
यदि कोई हिन्दू धर्म को अंगीकार कर, आरक्षण का लाभ लेने
के लिए आरक्षित जाति या स्वर्ण बनना चाहे तो न तो
हिन्दू धर्म के अनुसार न ही
भारतीय क़ानून के अनुसार यह मान्य है। यदि ऐसा हो तो जातिगत आरक्षण
का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।
खैर
! जो भी हो चुनाव में जिस तरह से नेताओं को अपने आप को
हिन्दू सिद्ध करने की होड़ लगी है , कह सकते है -
यह सनातनी परम्परा वाले हिन्दू धर्म का जादू
ही है जो कहता है - “गर्व
से कहो - हम हिन्दू है” !
जय
हिन्द , जय भारत।