अरब क्रांति की
शुरूआत ट्यूनीशिया से हुई जो तेजी से अरब देशों में फ़ैल गयी, लीबिया के जालिम तानाशाह गद्दाफी इसी क्रांति की भेट चढ़ गए। धरने, हड़ताल, मार्च, रैली, विद्रोह आदि
के माध्यम से वर्षों से जमे इन अरब अलोकतांत्रिक
देशों के तानाशाहों की अरब क्रांति से चूले
हिलने लगी उनकी सत्ता ताश के पत्ते की तरह
ढहने लगी।
इसी अरब
क्रांति का असर भारत में भी पड़ा। दिल्ली
में बैठे आंदोलनकरियों ने वहां हुई क्रांति के तौर तरीकों
को अपना लिया। दिल्ली में अन्ना आंदोलन इसी तरह की उपज था।
नयापन होने से इसमें जनता व् मीडिया का खूब साथ
मिला। आंदोलन में लोकपाल बिल, भ्र्ष्टाचार जैसे मुद्दों को हथियार बनाया गया। 2G , कॉल G , मिस्टर 10%, जमीन घोटाले इसी दौरान निकल
कर आये। घोटालेबाज छिपते फिरने से लगे। आंदोलनकारियों को लगा- बस
भारत में भी अरब क्रांति अब आयी, के अब आयी ।
परन्तु आंदोलनकारी यह भूल गए कि भारत में तानाशही नहीं, बल्कि एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था
है। इमरजेंसी के अत्याचार का बदला जनता चुनाव
में लेती है Ɩ पंचायत चुनाव से
लेकर , राज्य व् केंद्र तक कदम-कदम पर चुनी सरकार
होने के कारण देश में अरब जैसी लहर फैलना नामुमकिन है।
फिर भी उस समय दिल्ली में आंदोलन का कुप्रभाव यह हुआ कि अच्छा
काम करने के बावजूद , दिल्ली राज्य की शीला सरकार, केंद्र
के घोटालों व् मिस्टर 10% जैसे लोगों की वजह से चुनाव
में औंधे मुहं जा गिरी। दिल्ली में सत्ता परिवर्तन से आन्दोलनजीवियों
को भारत में भी अरब क्रांति की उम्मीद जगी ।
उन दिनों अपना
लक्ष्य पाने के लिए देश के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी के अवसर पर , सरकार पर और ज्यादा दबाव
बनाने के लिए राजपथ पर गणतंत्र समारोह से पूर्व धरना दिया। यह
अपनी तरह का देश में पहला धरना था और शायद 26 जनवरी पर इस तरह के धरनों की शुरूआत भी यही से हुई Ɩ
गुजरात
में चाहे वह पटेल की क्रांति हो या दिल्ली में शाहीन बाग़ का धरना जिसका अंत दिल्ली को दंगों के रूप हुआ । या अभी किसानों
के कंधे पर बन्दूक रख कर चलाया जाने वाला - किसान आंदोलन Ɩलम्बे आंदोलन से
कुछ बातें साफ़ नजर आ रही है, कि न्यूनतम मूल्य( MSP ) पर अनाज खरीदी में कुछ न
कुछ लफड़ा है। और शायद यही आंदोलन की जड़।
कोवा कान ले गया की रट लगाकर किसानों को गुमराह कर चुनाव
में राजनैतिक रोटियां सेंकने के सिवा इस आंदोलन
में कुछ नजर नहीं आता ।
वरना
यह कैसे हो सकता है कि किसान बिना खेत जाये, सड़क पर ट्रेक्टर लेकर बैठा रहे और रिमोट
कंट्रोल से खेती होती रहे। यकीन मानिये मैंने भी कालेज
की पढ़ाई तक खेती की है। आंधी हो या मेह
ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब हरे चारे के लिए खेत पर न जाना हो। दुधारू पशु
को चारा न डालना हो, पानी न पिलाना हो या दूध न
दूहना हो।
आंदोलन
में बैठे लोगों को अन्य किसानों को महीनों धरने पर बैठ , बिना खेत जाये , न्यार लाये , रिमोट कंट्रोल तकनीक से की जाने वाली
खेती का ज्ञान देना चाहिए। ताकि इस तकनीक का लाभ वो भी
ले सकें।
राष्टीय
पर्व पर लाल किले की हिंसा , तिरंगे का अपमान ने किसान -मजदूर व् आम जनता बुरी तरह से आहत
किया है। हमारी रक्षा में जी जान से जुटे पुलिस
कर्मियों पर बिना कारण हमला करने वाले किसी भी हालत में यह
लोग क्षमा के काबिल नहीं है Ɩ दिल्ली
में ट्रैक्टर से उपदव्र से आम
आदमी की उनके प्रति सहानुभति समाप्त है ।
देश
को आन्दोलनकारियों का क्रांति वाला व् राजनैतिक एजेंडा साफ़ नजर आ रहा है। जो 85% सीमान्त
किसानों के हितों को हानि पहुंचा रहें
है। भटके आंदोलनजीवी से लोगों की दिनचर्या बुरी तरह से बाधित है , रोजगार, व्यापार, यातायात
पर कुप्रभाव पड़ रहा है । कुछ फैक्ट्री बंद है। सरकार का रिवेन्यू घटा
है।
इतने नुक्सान के बाद भी मीडिया
किसान आंदोलन की क्रिकेट मैच की तरह रनिंग कॉमेंट्री कर रहा है। फ्लॉफ़
हो चुके इस शो में आंदोलनजीवी बस इस उम्मीद पर
ज़िंदा है - क्या पता कब , अंधे का तीर बिटौड़े में लग जाए Ɩ. क्रांति हो जाए !
जय
हिन्द जय भारत