U.P. चुनावी परिणाम से तथाकथित सेक्युलर नेता व् चुनावी पंडित अवाक व् भोचक्के है। सभी तरह-तरह के तर्क-वितर्क में उलझे है।
विकास, जाति, सेक्युलरिज़्म, नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, ट्रिप्पल तलाक, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, महागठबंधन, क़ानून-व्यवस्था, नजराना-शुक्राना-हकराना और जबराना जैसे भ्रष्टाचार के मुददे , वोटिंग (EVM) मशीन, “कुछ का साथ-कुछ का विकास “, “शमशान-कब्रिस्तान” , “रमजान-होली”, “ईद-दीवाली” , शादी में शलमा-सरिता में भेद , बिजली-सड़क, रोजगार , मोदी फैक्टर आदि तरह-तरह के पैमानों को लेकर एक पार्टी की जीत व् दूसरी पार्टी की हार को परख रहें है। परन्तु चुनाव में गधा फैक्टर को इग्नोर किया जा रहा है।
ऐसा लगता है जैसे गधे ने दुल्लत्ती मार, सबकी भैस खोल ली हो। हम बचपन से बात-बात पर, गाहे-बजाहे गधे की ढेचूं-ढेचूं का राग सुनते आये है , गधे वाले फैक्टर को इन चुनाव परिणामों में चुनावी पंडितों द्वारा इस तरह नजरअंदाज करना, कुछ हजम नहीं हुआ, जैसा लग रहा है। यह मुद्दा चुनावी पंडितों में ऐसे गायब है जैसे गधे के सर से सींग। शायद इन लोगों को गधे की अहमियत पता ही न हो। जो "रूखा सूखा खाई के ठंडा पानी पीव , देख पराई चुपड़ी मत ललचावे जीव ", वाला जीव है।
गधा और कुम्हार, चाक और चिकनी-मिटटी के बर्तन समाज के हर वर्ग व् हर सुख-दुःख में मरते समय तक साथ रहें है। कुल्हड़ की चाय, करवा, मटके का ठंडा पानी, शादी-विवाह, गृह प्रवेश से पहले कुम्हार के चाक का पूजन भला किसे याद नहीं रहता है। किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान या अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान वाली कहावत रोम की तरह एक दिन में यूं ही नहीं बनी।
जिस दिन UP के लड़कों ने चुनाव में गधा कार्ड खेलना शुरू किया तो जनता को गधे की वफादारी देख उससे सहानुभति होना लाजिमी हो चला था और विपक्ष की दुर्गति का परिणाम आज हम सबके सामने है। बात ठीक ही है - दुर्बल को ना सताइये जाकी मोटी हाय , मुई खाल की स्वांस से लोह भसम हो जाए.
हजारपति से अरबपति बने कुछ नेता हार छुपाने के लिए खिसियानी बिल्ली खम्बा नौचे की तरह, हार का ठीकरा वोटिंग (EVM) मशीन पर फोड़ रहे है। बात शीशे के तरह साफ़ है, हाथ कंगन को आरसी क्या? 125 करोड़ टीम इंडिया के देश में "सबका साथ सबका विकास" ही एक वो मूल मन्त्र है जिसे किसी मसाला फिल्म की तरह कुछ जातियों- धर्म के गठजोड़ या किसी सेक्युलर अपील की जरूरत नहीं। ना उसे MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की जरूरत है ना दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण की।
सभी को भय मुक्त समाज चाहिए, रोजगार चाहिए , विकास चाहिए,शिक्षा-चिकित्सा, बिजली व् सम्मान से जीने का अधिकार चाहिए। काठ की हांडी जैसे बार-बार नहीं चढ़ती, ठीक वैसे ही राजनीती में किसी मशाला फिल्म की तरह यह समीकरण भी हिट नहीं हो सकता। खैर ! जिंदगी में हार जीत तो लगी रहती है। भूल सुधार का अभी समय है। आइये हार-जीत भूल एक दूसरे के गले मिल ,शुभ कामनाएं देकर मिल-जुलकर यह कहते हुए- “होलिया में उड़े रे गुलाल कहियों से मंगेतर से” ! होली मनाये। हैप्पी होली !
आइये मिलकर प्रार्थना करें -
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
जय हिन्द जय भारत !