नया मोटर व्हीकल एक्ट विदेश में लाखों खर्च कर, वहां लागू क़ानून की स्टडी पर आधारित है, नए एक्ट में जुर्माने की भारी राशि अमेरिका, जापान, इंग्लैंड जैसे देशों को ध्यान में
रख कर तय की गई है। ऐसा इस एक्ट से जुड़े लोगों का
कहना है। एक्ट में जुर्माने की राशि राज्य सरकारें कम नहीं कर सकती, इसमें भी CAG पेंच फंसा है ,साथ ही इसमें प्रत्येक वर्ष
10% वृद्धि /बढ़ोतरी का प्रावधान भी है Ɩ
देश में इस समय भारी भरकम जुर्माने की राशि को लेकर हाहाकार मचा है। इसी लिए राज्यों न जनता नाराज न हो जाए के डर से अभी तक नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू ही नहीं
किया इसमें सत्ता पक्ष व् विपक्ष दोनों पार्टियों की राज्य सरकार है।
इस एक्ट में हर रूल तोड़ने/ कागजात न होने पर सभी के लिए अलग- अलग जुर्माना निर्धारित है ,जो चालान में जुड़ता चला जाता है Ɩ एक समय में जुर्माने की कोई अधिकतम सीमा नहीं है । जुर्माने की राशि व्हीकल की कुल कीमत से भी अधिक हो सकती है जैसा कि देखने में आ रहा है।
इसकी जद में किसान, मजदूर, मध्यम वर्ग, उच्च वर्ग, व्यापारी, उद्योगपति सभी हैं ।
अमेरिका जिसकी आबादी भारत
की कुल आबादी का लगभग एक तिहाई के बराबर , अमेरिकी भूभाग भारतीय क्षेत्रफल से लगभग तीन गुना अधिक व् मुद्रा/करेंसी ( डॉलर) की क्रय-शक्ति भारतीय करेंसी
से लगभग 70 गुना ज्यादा है। अतः वहां के जुर्माने की भारत में तुलना करना मेढ़की के पैर में नाल ( लोहे की बनी नाल घोड़े, बैलों, भैसा आदि के खुरों में ठोकी जाती है ) ठोकने जैसा है , भारत में यह कहाँ तक उचित है इसका मूल्यांकन तो आने वाला समय ही करेगा।
सभी जानते है, ट्रेफिक रूल फॉलो करने के
साथ, वाहन के साथ अन्य बातों के
अलावा कुछ अनिवार्य
कागजात/सर्टिफिकेट भी होने जरूरी है। जैसे ड्राइविंग लाइसेंस (DL), गाड़ी रजिस्ट्रेशन
सर्टिफिकेट(RC), वाहन की बीमा पालिसी व् एक अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज “प्रदूषण नियंत्रित प्रमाणपत्र” (PUC) जिसे “पोल्लुशन सट्रिफिकेट” या धुवें की पर्ची/ सर्टिफिकेट के नाम से भी जाना जाता है।
न्यूज पेपर्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में दिल्ली में लगभग 1 करोड़ 15 लाख 93 हजार से अधिक वाहन रजिस्टर्ड है। यह बात अलग है कि इनमें से कितने सड़क पर रोजाना चलते है ? कितने सप्ताह में एक या दो बार या कितने वाहन रजिस्टर्ड तो दिल्ली में है परन्तु चलते दिल्ली से बाहर है। कितने वाहन या तो काटे/ खत्म किये जा चुके है या कबाड़ में पड़े है।
इसका आंकड़ा शायद ही किसी के पास हो। यह भी तथ्य है कि कुल चालानों में से 40% टू-व्हीलर, 25% कारों का चालान होता है Ɩ
इस प्रकार देखा जाए तो जुर्माने की सबसे बड़ी मार टू-व्हीलर व् कार वालों पर है। ऑन लाइन बिक्री
के युग में आज टू व्हीलर सीधा सीधा लोगों के रोजगार से जुड़ा है Ɩ
वाहनों की संख्या को देखते हुए , दिल्ली में लगभग 940 प्रदूषण जाँच केंद्रों की संख्या नाकाफी है Ɩ कुछ मामलों को छोड़ , बाकी को हर 3 माह में एक बार प्रदूषण जांच करवानी आवश्यक है।
अतः दिल्ली में प्रदूषण केन्दों की संख्या ऊँट के मुहं में जीरा
है, एक अनार सौ बीमार वालों
जैसी है।
उपरोक्त के आधार पर केंद्र सरकार/राज्य सरकारों से अनुरोध है -
1- फोरस्ट्रोक इंजन वाले वाहनों के लिए “PUC” सर्टिफिकेट की वैधता अवधि 3 माह से बढ़ाकर 12 माह की जानी चाहिए।
2- ट्रेफिक पुलिस को
प्रदूषण जांच से अलग करना चाहिए।
प्रदूषण जाँच , संबंधित विभाग मशीनों से जाँच करे।
3- यदि ट्रेफिक पुलिस प्रदूषण की जांच करती है
तो उसे अल्कोहल मीटर की तरह , प्रदूषण जांच जैसी मशीन/ किट से लेस किया जाए।
केवल सर्टिफिकेट न होने से वाहन को बिना जांचे यह कैसे सिद्ध
किया जा सकता है कि वाहन प्रदूषण फैला रहा है। भारी जुर्माने राशि को
देखते हुए, इसमें भ्रष्टाचार की अपार संभावनाएं है। साथ ही यह प्राकृतिक न्याय के सिंद्धातों के विपरीत है, जो यह कहता है -"भले
ही सौ अपराधी छूट जाएँ परन्तु किसी निरापराध को सजा न हो "Ɩ
TET (टीचर्स के लिए ) , AIBE ( वकालत के लिए ) के एग्जाम इसके सटीक उदाहरण है। जहाँ डिग्री के साथ, एग्जाम पास करना भी आवश्यक है Ɩ
३- प्रदूषण सर्टिफिकेट की वैधता समाप्त होने के बाद, वाहन चालकों को कम से कम 7 दिन की रियायत दी जानी चाहिए। जिसके अंदर वह वाहन का पुनः पोलुशन करा सके। अभी इस तरह कोई रियायत नहीं है।
4- केंद्र/राज्य सरकारों को वाहन चालकों से वसूले जुर्माने
को आय का साधन नहीं बनाना चाहिए , एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार नए मोटर व्हीकल से
दिल्ली सरकार को इस वर्ष पिछले वित्त वर्ष के 50 करोड़ रूपये के मुकाबले चालू वित्त वर्ष में लगभग 160 करोड़ रूपये की कमाई हो चुकी है।
जनहित में लोगों को केम्प आदि लगाकर ट्रेफिक रूल्स के प्रति जागरूक करना चाहिए। भारी
चालान/जुर्माना कोई समाधान/सलूशन नहीं है। क्या मृत्यु दंड या आजीवन कारावास जैसी सजाओं के डर से अपराधी जुर्म नहीं करते ?
5- किसानों को खेती में
उपयोग होने वाली मशीन जैसे ट्रेक्टर आदि को मोटर व्हीकल एक्ट के
दायरे से बाहर करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो इससे खेती पर विपरीत प्रभाव पड़े। किसान किसानी छोड़, बीमा , प्रदूषण आदि की लाइन में लगा रहे या भारी चालान भर, आत्म ह्त्या मजबूर हो जाए ।
लोगों में नारजगी से सरकार कि स्तिथि कहीं ऐसी न बन जाए कि गए थे चौबे बनने, दूबे बन के लौटे वाली हो जाए । Ɩकृषि क्षेत्र का हमारी अर्थव्यवस्था में
बड़ा योगदान है।
आशा है केंद सरकार जनभावना को
ध्यान में रख नए मोटर व्हीकल एक्ट में भारी जुर्माने पर पुर्विचार करेगीं व् जनता को राहत देने का काम करेंगी।
बहुजन सुखाय -बहुजन हिताय के साथ
-जय हिन्द !जय भारत !