जींद उपचुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार ने उम्मीदानुसार
चुनाव हारते ही खिसियानी बिल्ली खम्बा नौचे की स्टाइल में हार का ठींकरा फिर से EVM पर
फोड़ दिया। कहने का अर्थ यह है -परिणाम पक्ष में आये तो ठीक, नहीं तो
EVM खराब।
मतलब- मीठा-मीठा गप-गप, कड़वा-कड़वा थू ! मानों
EVM ना हुई, ICAI का CA EXAM हो
गया ! जिसमें फेल होते ही छात्र, दोष एग्जाम तैयारी में रही कमी को न
देकर, CA EXAM पर मढ़ देते है।
वैसे देखा जाए EVM व् CA EXAM
दोनों में समानता है। जैसे- दोनों का कार्य ट्रू एंड फेयर (True & Fair) रिजल्ट
देना है। एक रिजल्ट से नेता, जन प्रतिनिधि बनता है, दूसरे रिजल्ट से
छात्र CA
EVM व् CA EXAM दोनों ही परिणाम दिखाते है । एक
चुनाव परिणाम, दूसरा परीक्षा परिणाम। दोनों का रिजल्ट सीमित होता है। और तो और दोनों ही केशों में रिजल्ट के बाद “ड्रापआउट”
संख्या बढ़ जाती है। नेताओं की तरह CA
ड्राप आउट की संख्या लाखों में है (आखिर मैं भी
CA “ड्रापआउट” हूँ) स्तिथि गए थे चौबे बनने,
दुबे बनकर लौटे, वाली हो जाती है। जींद इलेक्शन में कांग्रेस के साथ यही हुआ
!
दोनों के ही परिणाम के बाद कुछ नेता,
नेतागिरी छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं, कुछ छात्र CA. दोनों ही प्रोफेशंस में संघर्ष, पेशेंस, कड़ी
मेहनत, लगन ,अनुशासन , वाणी संयम , उचित समय पर उचित व् शीघ्र
निर्णय लेने की क्षमता की आवश्यकता है। करत-करत अभ्यास के जड़ मति सुजान की कहावत दोनों ही प्रोफेशंस पर लागू होती
है।
दोनों
प्रोफेशनस का तुलनात्मक अध्ययन कर यही कहा जा सकता है कि
दोष EVM या CA EXAM रिजल्ट में नहीं अपितु दोष तैयारी में है। EVM व् ICAI के CA EXAM एक दर्पण की
भांति है। अरे भई ! हाथ कंगन को आरसी क्या ? पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या ?
आजकल नेता चुनाव में जनता की बीच विकास जैसे स्थाई कार्य न
कर, तिकड़म बाजी, डिवाइड एन्ड रूल ( Divide & Rule),धर्म, जाति, गठबंधन -महागठबंधन जैसे शार्ट कट अपनाकर चुनाव
जीतना किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहते है। ठीक वैसे ही CA
EXAM में कुछ छात्र अधूरी तैयारी के एग्जाम में उतरते है।
परिणामस्वरूप नतीजा ठन-ठन गोपाल ! सिफर ! ढ़ाक
के तीन पात !
नेता/छात्र हार/फेल की गम/खीज छुपाने के लिए दोष
EVM व् ICAI के CA EXAM को सार्वजानिक रूप से देने लगते है
। उल्टा चोर कोतवाल का डांटे ! तर्क-वितर्क के आधार पर
यही जा सकता है कि नेता को चुनाव में हार का दोष EVM
पर नहीं, अपनी नीति, नियत को देना चाहिए। जिस कारण वो जनता के दिलों तक
अपनी ब्रांडिंग की मार्केटिंग नहीं कर पाया ।
चुनाव
में जनता जहां परीक्षक की भूमिका में होती है ,वही नेता
परीक्षार्थी के रूप में। EVM वोट डालने, गणना
करने जैसे एक अति महत्वपूर्ण
व् सहायक टूल के रूप में होती है। (जो
चुनावी कोस्ट कटिंग व् पेपर का प्रयोग न के बराबर न होने के
स्वच्छ पर्यावरण में सहायक भी है।)
ठीक
वैसे ही जैसे परीक्षक के लिए छात्र की कॉपी का मूल्यांकन के
लिए पेन, कॉपी, केकुलेटर आदि मूल्यांकन में सहायक है । EVM में वोटों का इनपुट जनता करती
है, रिजल्ट आउटपुट उसी के अनुरूप आता है । परीक्षा में परीक्षक
छात्र का मूल्यांकन उसकी आन्स्वर सीट के
आधार पर करता है। परीक्षा सहायक सामग्री का मूल्यांकन में कोई भमिका नही
होती । भाई- भतीजावाद, चाचा-
अम्मा- मामा-नाना- दादा- दादी , दीदी- जीजा वाद का EVM में कोई स्थान नहीं होता । कारण वो इन
सभी भावना से परे होता है।
हाँ ! अब यदि कोई हार छुपाने के लिए हार के बाद कोई अपना
आंतरिक मूल्याकन न कर , सहायक टूल्स पर
ही हेरा-फेरी, हैकिंग या परिणाम
प्रभावित करने वाले आधारहीन बे सिर पैर के आरोप मढ़ने लगे तो यह शत्रुमुर्ग की तरह आने वाले खतरे
से अनजान/*अनदेखा कर , रेत में गर्दन देने
जैसा ही है। बुद्धिमान नेता समय रहते
स्वयं अपनी हार का मूल्यांकन करता है ,न कि सार्वजानिक रूप से
हार का दोष EVM पर निकलता है !