बापू, लोगे किसका प्रणाम?
सब हाथ जोड़ने आए हैं।
ये वे, जिनकी अंजलियों में
पूजा के फूल नही दिपते,
ये वे, जिनकी मुट्ठी में भी
लोहू के दाग नही छिपते;
ये वे, जिनकी आरती-शिखा
हाथों मे सहमी जाती है;
मन मे अगाध तम की छाया
को पास देख घबराती है।
श्रद्धा के सिर पर ग्लानी-भार,
गौरव की ग्रीवा झुकी हुई ।
व्रणमयी भक्ति की आँखों में
काले-काले घन छाए हैं।
बापू! लोगे किसका प्रणाम,
सब हाथ जोड़ने आए हैं।
(1949)