बापू ! हम अगुणी, कृतघ्न,
पर, आंसू बलशाली है,
और जगत में कभी नहीं
बलिदान गया खाली है ।
गगन-रंध्र में गूँज रहा
आकुल आह्वान तुम्हारा,
बोल रहा सबके मस्तक पर
चढ़ बलिदान तुम्हारा ।
बलि का विशिख लगा,
भारत का उर फटता जाता है,
भ्रम का जाल मनुज की आंखों
से हटता जाता है ।
डूबेगा यह देश रूह की
इस बढ़ती खाई में,
उतरेंगे हम कभी प्रेम की
असली गहराई में ।
बापू ! तुमने होम दिया
जिसके निमित्त अपने को,
अर्पित सारी भक्ति हमारी
उस पवित्र सपने को ।
क्षमा, शान्ति, निर्भीक प्रेम को
शतश: प्यार हमारा,
उगा गये तुम बीज, सींचने
का अधिकार हमारा ।
निखिल विश्व कें शान्ति-यज्ञ में
निर्भय हमीं लगेंगे,
आयेगा आकाश हाथ में,
सारी रात जगेंगे ।
(1949)