मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
मोह तिमिर है, मोह मृत्यु है;
छोड़ो इसे अभागो रे !
भय का बंधन तोड़ अमृत के
पुत्र मानवो ! जागो रे !
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
दमन करो मत्त कभी, सत्य को
मुख से बाहर आने दो,
भय के भीषण अंधकार में
ज्योति उसे फैलाने दो ।
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
जुल्मी को जुल्मी कहने में
जीभ जहाँ पर डरती है,
पौरुष होता क्षार वहाँ,
दम घोंट जवानी मरती है ।
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
सत्य न होता प्राप्त कभी भी
सत्य-सत्य चिल्लाने से,
मिलता है वह सदा एक
निर्भयता को अपनाने से ।
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
निर्भयता है ज्योति मनुज की,
निर्भयता मानव का बल,
निर्भयता शूरों की शोभा,
वीरों की करवाल प्रबल ।
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
अभय, अभय ओ अमृतपुत्र
बेबसी, वेदना बोलो भी,
दम घुट रहा सत्य का भीतर,
द्वार ह्रदय का खोलो भी ।
मा भै:, मा भै:, मा भै:, मा भै:।
(1949)