‘गौहत्या करने वालों को फांसी हो’
‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करो’
‘जीवों पर दया करो. शाकाहारी बनो’
‘जय गुरुदेव!’
सड़क पर नारा लगाते जा रहे लोग, जिन्होंने वस्त्रों की जगह टाट पहन रखा था. इन्हें देखकर कोई भी ठिठक जाए. नारा वारा तो सही है. सबकी अपनी मांग हो सकती है. मगर डिजिटल दौर में जिस्म पर टाट. ये चौंकाने वाला है. टाट पहने ये लोग भक्त हैं बाबा जय गुरुदेव के. जब थोड़ा सा इनके बारे में जाना तो पता चला कि इनके बाबा जय गुरुदेव ने ही इनको वस्त्रों का त्याग करने को बोला है. क्योंकि उनका कहना था कि ये ‘वलकल वस्त्र’ हैं, जो राम-लक्ष्मण ने वनवास जाने पर पहने थे. पता नहीं इसका कोई प्रमाण भी है या नहीं? मगर बाबा गुरु जयदेव ने बोल दिया था तो भक्तों के लिए इतना ही काफी था.
साल 2012 में जय गुरुदेव की मौत हो चुकी है. लेकिन आज भी उनकी याद में जगह-जगह हजारों लोग जुट जाते हैं. एक अनुमान है कि दुनियाभर में उनके दो करोड़ भक्त हैं. 15 अक्टूबर 2016 को उनकी जयंती के मौके पर वाराणसी में प्रोग्राम था. दो दिवसीय समागम में भक्त शामिल होने जा रहे थे. राजघाट पर भगदड़ मची और 24 लोगों की मौत हो गई थी. ऐसा दीवानापन बाबा के लिए.
जयगुरुदेव के लिए भी भक्तों का दीवानापन ऐसे ही है जैसे राम रहीम के लिए उसके भक्तों का था. भक्तों ने सरकारी ज़मीन पर कब्जा कर रखा है. डेरा सच्चा सौदा जैसा मामला दोबारा न हो, इसी को देखते हुए इलाहबाद हाई कोर्ट ने योगी सरकार को आदेश दिया है कि वो मथुरा एसआईडीसी की जमीन बाबा जय गुरुदेव धर्म प्रचार संस्थान से खाली कराए. एक्शन लेने के लिए भारी सुरक्षा बल लगाया जाए. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मथुरा में डेरा सच्चा सौदा जैसे हालात नहीं बनने देंगे. इसके लिए अभी से आवश्यक कदम उठाए जाएं.
कोर्ट ने कहा है कि जयगुरुदेव संस्थान को एक हफ्ते में कारण बताओ नोटिस दिया जाए और जितनी भी जमीन पर कब्जा किया गया है उसे एक हफ्ते में खाली कराकर स्थानीय नगर निगम को कब्जा सौंप दिया जाए. क्योंकि रिहायशी इलाकों में उद्योग नहीं चल सकते. वहां पार्क बहाल होने चाहिए. जय गुरुदेव पर भी ज़मीन कब्जाने के बहुत सारे आरोप हैं.
18 मई 2012 की रात मथुरा में जब जय गुरुदेव की मौत हुई तो उनके पास करीब 4000 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. 100 करोड़ रुपए नगद और 150 करोड़ की 250 लग्जरी गाड़िया थीं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वो 12 हज़ार करोड़ के मालिक बन गए थे. त्याग और आध्यात्मिक साधना की बात करने वाला कैसे करोड़ों का मालिक बन गया?
कौन है ये जय गुरुदेव
मथुरा का जवाहरबाग़ कांड तो याद ही होगा. 2 जून 2016 को रामवृक्ष यादव से से ज़मीन खाली कराने के लिए पुलिस को कितना संघर्ष करना पड़ा था. करीब 270 एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा ज़माकर अपनी सत्ता चलाने लगा था. ज़मीन खाली कराने पहुंची पुलिस पर उसके भक्तों ने हमला कर दिया था और दो पुलिस अफसरों की मौत हो गई. जवाबी कार्रवाई में 27 लोग मारे गए थे. ये रामवृक्ष यादव जिसको अपना गुरु मानता था वो जय गुरुदेव ही थे.
जय गुरुदेव कब पैदा हुए इस बारे में जानकारी नहीं मिलती, कहां पैदा हुए, इस बारे में यूपी का इटावा ज़िला बताया जाता है. और पैदाइशी साल 1896. गुरुदेव को बचपन में लोग तुलसीदास के नाम से बुलाते थे. उनके गुरु श्री घूरेलाल जी थे, जो अलीगढ़ के चिरौली ग्राम (इगलास तहसील) के रहने वाले थे. उन्हीं के पास गुरुदेव सालों साल रहे.
भक्त बताते हैं कि गुरुदेव के गुरु घूरेलाल ने उनसे मथुरा में किसी एकांत जगह पर अपना आश्रम बनाकर ग़रीबों की सेवा करने के लिए कहा था. तब घूरेलाल की मौत (1948) के बाद गुरुदेव ने अपने गुरु स्थान चिरौली के नाम पर साल 1953 में मथुरा के कृष्णा नगर में चिरौली संत आश्रम की स्थापना कर दी.
बताया जाता है कि साल 1962 में मथुरा में ही आगरा-दिल्ली हाईवे पर मधुवन क्षेत्र में डेढ़ सौ एकड़ ज़मीन ख़रीद ली. जय गुरुदेव आश्रम की लगभग डेढ़ सौ एकड़ ज़मीन पर गुरुदेव की एक अलग ही दुनिया बसी है. उनके भक्त जय गुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था और जय गुरुदेव धर्म प्रचारक ट्रस्ट चला रहे हैं.
गुरु के नाम पर बनवाया ये मंदिर ताजमहल की तरह दिखता है
घूरेलाल की याद में जयगुरुदेव ने मंदिर बनवाना शुरू किया. ये मंदिर 1973 में ही बनना शुरू हो गया था. 160 फुट ऊंचे इस मंदिर को ‘योग साधना मंदिर’ का नाम दिया गया. सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर ताजमहल जैसा दिखता है. यह मंदिर 29 साल बाद 2002 में बनकर तैयार हुआ. गुरु के इस मंदिर का डिज़ाइन मंदिर-मस्जिद का मिलाजुला रूप लगता है. इसके पीछे ये कहानी बताई जाती है कि जय गुरुदेव ने मुस्लिम और हिंदू दोनों को अपना भक्त बनाने की कोशिश की थी. लेकिन मुस्लिम उनकी शरण में न आ सके.
देश में आपातकाल लगा, बाबा जेल की सलाखों में पहुंच गए
29 जून 1975 को इमरजेंसी के दौरान जय गुरुदेव को जेल जाना पड़ा. पहले इन्हें आगरा जेल में रखा गया. उसके बाद बरेली की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया. वहां उनके भक्तों का तांता लगने लगा था. तो इस वजह से बैंगलोर की जेल में भेजना पड़ा, जहां से दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया. 23 मार्च 1977 को 3 बजे वो रिहा हुए. हर साल उनके भक्त इस दिन को मुक्ति दिवस के रूप में सेलिब्रेट करते हैं और 3 बजे तक व्रत रखते हैं.
चप्पलों से पिट जाने का किस्सा मज़ेदार है
ये किस्सा इमरजेंसी के दौरान जेल जाने से पहले का है. 13 जनवरी साल 1975. कानपुर के फूलबाग, नानाराव पार्क में रैली होने वाली थी. महीनों से इसकी तैयारी चल रही थी. जय गुरुदेव ने दावा किया था कि रैली में खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस आ रहे हैं. लोग यह माने बैठे थे कि वो तो प्लेन क्रैश में मारे जा चुके हैं. लेकिन इस ऐलान के बाद पार्क में हजारों की भीड़ पहुंच गई. मंच पर जयगुरुदेव आए. सारी आंखें टकटकी लगाए देख रही थीं कि अब सुभाष आएंगे. बाबा ने दोनों हाथ उठाकर कहा, ‘मैं ही हूं सुभाष चंद्र बोस’.
बस फिर क्या. लोग भौचक रह गए. सुनना इतना था कि मंच पर चप्पल और पत्थर बरस पड़े. गुस्साई भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया. बाबा जान बचाकर सुट लिए थे. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इतना बड़ी नौटंकी दिखाने के बाद भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई.
भक्ति के बाद बाबा राजनीति में भी कूद पड़े
शायद बाबा हर जगह अपनी चलाना चाहते थे. तभी तो वो अपने भक्तों के बलबूते राजनीति में भी उतर आए, मगर उन्हें मालूम नहीं था. धर्म राजनीति पर हावी नहीं होता, बल्कि राजनीति धर्म का इस्तेमाल करती है. भक्त देशभर में हो सकते हैं, लेकिन चुनाव इलाके के वोटों से जीता जाता है, दुनियाभर में फैले भक्तों की तादाद से नहीं.
जय गुरुदेव ने 24 मार्च 1980 को ‘दूरदर्शी पार्टी’ बना ली. 1989 के लोकसभा चुनावों में 12 राज्यों की 298 सीटों पर अपने उमीदवार भी उतार दिए. खुद भी चुनाव लड़े, लेकिन सभी हार गए. हारे ही नहीं बल्कि 1997 में पार्टी भी खत्म हो गई.
बाबा के गैर कानूनी कामों के किस्से
1. साल 2000 में उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (यूपी एसआईडीसी) ने जय गुरुदेव के खिलाफ जय गुरुदेव के आश्रम पर सैकड़ों एकड़ औद्योगिक जमीन हड़पने का आरोप लगाया. यूपी एसआईडीसी ने 16 केस मथुरा कोर्ट में दर्ज कराए.
2.आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के मुताबिक जय गुरुदेव के भक्तों ने 14 ऐसे टीलों को नुकसान पहुंचाया जो ऐतिहासिक तौर पर महत्व रखते थे.
3. मथुरा के पूर्व डीएम संजीव मित्तल के मुताबिक उन्हें जय गुरुदेव के आश्रम द्वारा किसानों की जमीनों पर अवैध कब्जा करने की 23 शिकायतें मिली थीं. ये आरोप किसानों ने लगाए. जिनका कहना था कि आश्रम के नाम पर उनकी ज़मीनों पर जबरन कब्ज़ा कर लिया गया.
बाबा जय गुरुदेव के बाद कौन संभाल रहा है उनकी विरासत
साल 2012 में जब गुरुदेव की मौत हो गई तो उनके बाद उनकी विरासत हथियाने के लिए दो गुट बन गए. एक गुट था बाबा के ड्राइवर पंकज यादव का, दूसरा गुट था उमेश तिवारी का. जय गुरुदेव की तेरहवीं पर शाम के समय बाबा के एक प्रमुख भक्त फूल सिंह ने सबके सामने एक चिट्ठी पढ़कर सुनाई और दावा किया गया कि ये चिट्ठी खुद गुरुदेव ने लिखी थी.
चिट्ठी के मुताबिक 20 जुलाई 2010 को बाबा ने इटावा की सिविल कोर्ट में लिखित में दिया था कि उनके बाद पंकज यादव को उनका वारिस बनाया जाए. काफी विवाद के बाद पंकज को उत्तराधिकारी बना दिया गया. उसी दौरान तीसरा गुट बन गया रामवृक्ष यादव का. जो खुद गुरुदेव की संपत्ति का मालिक बनना चाहता था.
मथुरा के जवाहरबाग़ में धरना देने के लिए रामवृक्ष यादव ने दो दिन के लिए सरकारी ज़मीन मांगी थी. वो बाबा गुरुदेव की मौत का सर्टिफिकेट मांग रहा था. उसने दो दिन तो छोड़िए धीरे-धीरे 270 एकड़ ज़मीन पर ही कब्जा कर लिया और अपने समर्थकों के साथ अलग ही दुनिया बसाकर रहने लगा था. पुलिस जगह खाली कराने जाती थी. और वो औरतों बच्चों, बुजुर्गों को आगे कर देता था. अंत में पुलिस से संघर्ष हुआ. दो पुलिस अफसर मारे गए. और पुलिस की गोली से मारा गया जय गुरुदेव का ये चेला. ऐसे ही और भक्तों पर ज़मीन हथियाने के आरोप हैं. बाबा के संगठन पर भी. तभी तो हाईकोर्ट को ज़मीन खाली कराने का ऑर्डर देना पड़ा.
साभार : The Lallantop