डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को अदालत द्वारा दो साध्वियों के बलात्कार के लिए 20 साल कठोर कारावास और 30 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाने के बाद उससे जुड़ी तमाम बातें सामने आ रही हैं। गुरमीत राम रहीम मामले की जाँच कर चुके सीबीआई के पूर्व डीआईजी एम नारायणन ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कई बड़े खुलासे किए हैं। नारायणन के अनुसार डेरा सच्चा सौदा के सिरसा स्थित मुख्यालय में प्रवेश पाना भी सीबीआई के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ था। नारायणन के अनुसार सीबीआई टीम को स्थानीय गुंडों ने तमाम तरह की धमकियां दी थीं। नारायणन के अनुसार राम रहीम अपने आश्रण (गुफा) में मध्यकालीन सामंतों की तरह रहता था। वो हर वक्त महिलाओं (साध्वियां) से घिरा रहता था। नारायणन के अनुसार डेरा की प्रमुख साध्वी हर रात करीब 10 बजे एक साध्वी को गुरमीत राम रहीम के कमरे में सोन के लिए भेजती थी। नारायणन के अनुसार गुरमीत राम रहीम किसी शातिर अपराधी की तरह अपने किए अपराधों के सारे सबूत-निशान मिटा देता था। नारायणन ने न्यूज 18 से कहा, “उसके कमरे में कॉन्डोम और गर्भनिरोधक का ढेर था। वो मैनियाक था, असली जानवर।”
गुरमीत राम रहीम के खिलाफ अज्ञात साध्वियों का पत्र साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को मिला था। लेकिन साल 2007 में जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मामले का सं ज्ञान लिया और जांच सीबीआई को सौंप दी। नारायणन के अनुसार सीबीआई के तत्कालीन प्रमुख विजय शंकर ने साल 2007 में उन्हें जांच के लिए साध्वियों का पत्र, पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और एक साध्वी के भाई रंजीत सिंह की हत्या की फाइलें सौंपी थीं। विजय शंकर ने जांच दल को हाई कोर्ट के निर्देशानुसार 57 दिन में मामले की जांच पूरी करने का आदेश दिया था। चूंकि साध्वियों द्वारा लिखे पत्र पर कोई नाम , पता या पहचान नहीं थी इसलिए सीबीआई को शुरूआती जांच में दिक्कत हुई। नारायणन के अनुसार सीबीआई आखिरकार गुरमीत राम रहीम द्वारा रेप का शिकार बन चुकी 10 पीड़िताओं से संपर्क करने में कामयाब रही। लेकिन उनमें से ज्यादातर शादीशुदा थीं इसलिए वो राम रहीम के खिलाफ केस नहीं कराना चाहती थीं। सीबीआई ने दो पीड़िताओं को शिकायत करने के लिए तैयार किया और 56वें दिन अंबाला कोर्ट में आरोपपत्र दायर कर दिया।
2009 में सीबीआई के संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए 67 वर्षीय एम नारायणन ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा कि वह खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं कि डेरा प्रमुख को दोषी करार दिए जाने के दौरान वह दिल्ली से दूर हैं। केरल के उत्तरी कासरगोड जिले में सेवानिवृत्ति के बाद से रह रहे नारायणन ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, “हम सिरसा में उनके आश्रम गए थे। राम रहीम ने मुझे मिलने के लिए 30 मिनट का समय दिया था। वहां वह एक गुफा में रहते थे, जिसमें ऐशो-आराम की सारी सुविधाएं मौजूद थीं। हम वहां पहुंचे और करीब तीन घंटे तक उनसे पूछताछ की।”
वह अपने पुराने दिनों को याद करते हैं, जब आपराधिक मामलों की जांच के दौरान उनके पास मोबाइल भी नहीं हुआ करते थे। कई बार उन्हें तीन-तीन महीने के लिए बाहर रहना पड़ता था और कई बार इससे भी अधिक समय के लिए, और उनकी पत्नी उनके कुशलक्षेम को लेकर चिंतित रहती थीं। नारायणन कहते हैं, “वह सोचती रही होगी- क्या मैं जिंदा भी हूं? तो मेरे परिवार में सभी समझते थे कि मुझ पर कितना दबाव रहता था।”