सुबह के साढ़े छै बजे थे जब उसकी नींद अचानक ही उचट गई । हालांकि वह रात तीन बजे के लगभग सोया था फिर भी यह उसकी संकल्प शक्ति का ही प्रभाव था जो सुबह ठीक साढ़े छै बजे वह जग गया । उसने सुबह के सात बजे प्रोफ
ट्रिन ट्रिन । ट्रिन ट्रिन । ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन । लगातार बजती टेलीफोन की घंटी ने उसे नींद से जगा दिया । आंखें मलते हुए उसने घड़ी की ओर देखा । अभी रात के ढाई बजे थे । "कौन आ मरा इस बेवक्त ?" पव
होटल दिलबहार भोजन से निवृत्त होकर पवन ने काफी का ऑर्डर दे दिया था और अब आराम से सिगरेट के कश लेता हुआ कॉपी सिप कर रहा था । जब भी उसका मस्तिष्क उलझन में होता था वह सिगरेट के साथ काफी लिया करता था और इस
फ्लैट पर पहुंच कर उसने ताला खोला और बैग एक कोने में डाल कर सीधा बाथरूम में घुस गया । कपड़े उतार कर उसमें शावर खोल दिया । पानी की ठंडी ठंडी फुहार ने उसकी थकान को पल भर में ही दूर कर दिया । देर तक वह फ
पवन ने अपनी रेडियम डायल वाली रिस्टवॉच में समय देखा । साढ़े सात बजे हुए थे । इस समय वह उसी रहस्यमयी किले के एक कमरे में कोने में बैठा हुआ था । कमरा धूल और मकड़ी के जालों से अटा पड़ा था । कमरा पूरी तरह
पवन की आंखें खुली तो उसने स्वयं को एक छोटे किंतु हवादार कमरे में पाया । कमरे की दीवारें छत तथा खिड़कियां और दरवाजे भी सफेद रंग से पेंट किए हुए थे । जिस पलंग पर वह लेटा था वह सफेद पेंट से पुता हुआ था
सीढियाँ समाप्त करके वे जैसे ही नीचे आंगन की ओर पहुँचे उनके रोम-रोम सिहर उठे । आंगन का दृश्य रक्त जमा देने वाला था । विशाल आंगन में इस समय चार नर कंकाल पूरे जोशो खरोश के साथ नाच रहे थे । नाचते हुए
पवन ने जब अपनी मोटरसाइकिल ले जाकर प्रोफेसर प्रभाकर के कंपाउंड में खड़ी की उसकी घड़ी उस समय रात के ठीक आठ बजा रही थी । मोटरसाइकिल से उतर कर वह बाहरी बरामदे में चढ़ा और कालबेल की बटन पर उंगली रख दी ।
जब पवन की नींद टूटी तब तक खूब दिन चढ़ आया था । दिन के ग्यारह बजने वाले थे । बस्ती के सभी मछुआरे नावें लेकर मछली पकड़ने जा चुके थे । स्त्रियां बाजार गयी थीं और केवल बूढ़े और बच्चे ही बस्ती में बच रहे थ
आंखें खोलने पर उसने स्वयं को उसी सूखे तालाब के पास पड़ा पाया । तालाब सूखा हुआ था और उसकी तली में कीचड़ दिखाई दे रही थी । दिन निकले देर हो चुकी थी । सूरज की चढ़ती धूप में अब गर्मी सम्मिलित हो गई थी ।
जब पवन अपनी स्टीमर पर पहुंचा शाम का धुंधलका फैलने लगा था । सदा की ही भांति उसने स्टीमर को चट्टान से अलग किया और स्टार्ट करके समुद्र की ओर चला गया । वह दो चट्टानों के बीच से होता हुआ जब खुले समुद्र म
पता नहीं कितनी देर बेहोश रहा वह । जब उसकी आंख खुली तो कमरे में दिन का उजाला फैला हुआ था । धूल से अंटी टूटी फूटी फर्श पर वह मुंह के बल पड़ा था । पूरा कमरा धूल और कूड़े से भरा था । दीवारों पर जाले लटक र
रात का समय और सन्नाटा । गहन अंधकार चारों ओर छाया हुआ था । वातावरण में निस्तब्धता थी । समुद्र की लहरें अपेक्षाकृत शांत दिख रही थीं । रात के ग्यारह बज चुके थे । एक स्टीमर किनारे से लगभग चार किलोमीटर
नाहक तु चिंता करे,मन मे करे सवाल है,तेरी चिंता कर रहा,शिव भोले महाकाल है ।क्युँकर सोच में बैठा है,गर आई भी विपदा भयंकर है,मंदिर में जाकर न खोजना,कंकड़ -कंकड़ में शंकर है l
किसी के आसेब ने इस क़दर कब्जा कर लिया,जैसे बाज़ ने उड़ते परिंदे पर कब्जा कर लिया।हवा में ज़हर ही ज़हर फिका रहा फजा का रंग,ये किस ने आब-ओ-हवा पर क़ब्जा कर लिया।अंधेरों की ख़ुश-मिजाज को कैसी आदत लगी,उजा
और एक दिन दो दोस्तों मे शर्त लगी की अकेले कौन जाएगा तो पहले एक दोस्त उसी तरह अकेले दिवाल तरफ से उसी थिएटर मे पंहुचा और पूरी सेकंड स्टोरी और छत पर भी जाकर वहाँ से इशारा किया और चला आया और ऐसे ही दोबारा
भाग 31बटुक नाथ फिर से उस स्थान को शुद्ध करके लिपवाता है और फिर से वेदी बनाना शुरू करते हैं,!!!शालिनी सुशांत और प्रोफेसर ,महल के चारो ओर कवच का घेरा बना रहे थे , वह मंत्रोच्चार करते हुए राय छिड़क
भाग 30सभी लोग गांव में पहुंचते हैं ,!!बाबा त्रिलोकी नाथ कहते हैं ,*" आप सभी लोग सुबह थोड़ा जल्दी आइएगा , क्योंकि काफी काम रहेगा ,सबसे पहले तो महल के बाहर साफ सफाई करवानी होगी ,और फिर गाय माता का गोबर
भाग 29 सुंदरी और गायत्री के साथ कई भूतों को तैयार देख सभी खुश होते हैं ,!!बाबा त्रिलोकी नाथ कहते हैं ,*" हम कल भोर से ही पूजा प्रारंभ करेंगे परसो अमावस्या के दिन में हो सबको खत्
भाग 28सभी लोग घर में थोड़ा रेस्ट करते हैं , आज उन भूतो के लिए गायत्री के पिता ने दो बकरे बनवाए थे, वह चाहता है की उसके बेटी को मुक्ति मिल जाए ,और उसकी बेटी को भी मटन मसाला बहुत पसंद