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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 14

28 मई 2022

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अगले दिन आयुष हॉस्पिटल जल्दी पहुंच गया। उसे लगा कि रोज़ की तरह शायद प्रिया भी जल्दी आ जाएगी। सभी इंटर्नस आ चुके थे। पर प्रिया का कहीं कोई पता नहीं था।

आयुष- (अंकुर से) अभी डॉक्टर कपूर और डॉक्टर साक्षी नहीं आए क्या।

अंकुर- साक्षी तो मेरे साथ आ गयी थी सर। नीचे गयी है। प्रिया अभी आई नहीं। 

तभी साक्षी और प्रीति भागते हुए आते हैं। 

प्रीति- सर, प्लीज़ जल्दी चलिए। नीचे चलिए।

आयुष- डॉक्टर गांधी, क्या हुआ है? आप इतना घबराए हुए क्यों हैं। और नीचे क्यों जाना है।

साक्षी - (आयुष को खींचते हुए) चलिए ना सर।

आयुष उनके साथ नीचे जाता है। वहां का मंज़र देख उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। स्ट्रेचर पर प्रिया खून में लथपथ पड़ी थी। उसे देख आयुष के होश उड़ जाते हैं।

आयुष- ( साक्षी से) ये.... कैसे...?

साक्षी- ( रोते हुए बोली) सर, एक्सीडेंट हुआ है। प्रिया के गले में हॉस्पिटल का कार्ड था इसलिए लोग उसे यहां ले आए।

तभी वहां डॉक्टर मनोज तिवारी आते हैं। वह आयुष के साथ बहुत से ऑपरेशन कर चुके थे। 

डॉक्टर मनोज- आयुष, चलो, लेट्स मूव फास्ट। डॉक्टर कपूर को ओ.टी में लेकर चलें। 

आयुष- ( एकटक प्रिया को देखते हुए) मनोज....

आयुष कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसे लगा कि जैसे उसकी ज़िंदगी उससे दूर जा रही है। तभी वहां जतिन आता है।

जतिन- ( आयुष को झकझोर कर यथार्थ में लाते हुए) सर, आपको अपनी ज़िन्दगी को बचाना है। प्लीज़, होश में आएं।

आयुष- ( एकदम वापस आते हुए) साक्षी डॉक्टर कपूर के पेरेंट्स को इंफोर्म कर दें। चलो मनोज मूव टू ओ. टी.

आयुष और मनोज ऑपरेशन के लिए तैयार होते हैं। आयुष की आंखों से नमी हट ही नहीं रही थी। 

डॉक्टर मनोज- आयुष, मेरे ख्याल से तुम ऑपरेट करो। मैं असिस्ट करूंगा।

आयुष- मैं... हां मैं ही तो करूंगा।

डॉक्टर मनोज- आयुष तू ठीक तो है ? तेरे हाथ क्यों कांप रहे हैं?

आयुष- ( अपने आप को संभालते हुए बोला) नहीं मनोज, मैं ठीक हूं। 

आयुष ने एक गहरी सांस ली। आज वह अपनी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल ऑपरेशन करने जा रहा था। आज उसे किसी की बेटी, किसी की दोस्त को ही नहीं बचाना था बल्कि अपनी ज़िन्दगी को बचाना था। ज़िंदगी और मौत की इस जंग में आज ज़िन्दगी को जीतना ही था। 

आयुष ने ऑपरेशन शुरू किया। उसकी आंखें बार‌ - बार नम हो रहीं थीं। हाथ, अभी भी कांप रहे थे। पर उसने अपने मन को दृढ़ कर रखा था। उसे हर हालत में प्रिया वापस चाहिए थी। आज खुशियों को उसके दरवाज़े से अंदर आना ही पड़ेगा। 

लगभग घंटे भर के ऑपरेशन के बाद आयुष और मनोज, प्रिया को मौत के मुंह से खींच लाए। बस अब इंतज़ार था उसके होश में आने का।

आयुष बाहर आया तो प्रिया के मां - बाप, नेहा, गौरव, प्रीति और वसुधा खड़े थे। आयुष को देखते ही उसके माता-पिता उसकी तरफ भागे। 

मिस्टर कपूर- आयुष, कैसी है प्रिया?

जया- आयुष, बेटा कुछ हुआ तो नहीं मेरी प्रिया को। 

आयुष- आंटी, प्रिया, खतरे से बाहर है। बस उसके होश में आने का इंतज़ार है। घबराने की कोई बात नहीं है।

मिस्टर कपूर- मैं जानता था आयुष, तुम प्रिया को कुछ नहीं होने दोगे। 

आयुष- आप लोग अभी घर जा सकते हैं। जब उसे होश आएगा तो इंफार्म कर देंगे। 

जया- नहीं मैं यहीं रहूंगी। मैं कहीं नहीं जाऊंगी। 

मिस्टर कपूर- आयुष बेटा, हमें रुकने दो।

आयुष- ठीक है अंकल। मैं समझ सकता हूं। (वह गौरव को बुलाता है) डॉक्टर गौरव, आप देखिएगा कि अंकल- आंटी को कोई प्रोब्लम ना हो। मैं थोड़ी देर में आता हूं।

आयुष अपने कैबिन में आ जाता है। वहां आदिल उसका इंतज़ार कर रहा था। 

आदिल- कैसी हैं डॉक्टर कपूर अब? 

आयुष-( सोफे पर निढाल हो कर बैठते हुए बोला) आउट ऑफ डेंजर। 

आदिल- तुझे फोन कर रहा था। तूने फोन नहीं उठाया तो जतिन को फोन किया। उसने बताया प्रिया के बारे में।
तू ठीक है ना मेरे भाई।

आयुष- ( अपने आंखों से बहते आंसुओं को रोक नहीं पा रहा था) जानता है आज पहली बार मेरे हाथ ऑपरेशन करते वक्त कांप रहे थे। आंखों से नमी खत्म ही नहीं हो रही थी। मैंने कहा था ना आदिल,‌ खुशियों को मुझसे प्रोब्लम है। जब भी मेरा दिल किसी को प्यार करने लगता है, ये उसे मुझसे खींच कर ले जाती हैं। 

आदिल- पर तूने उसे मौत के मुंह से बाहर खींच लिया आयुष। क्यों जानता है? क्योंकि, तुम दोनों एक-दूसरे के लिए बने हो। 

आयुष- ( रोते हुए) आदिल, आज अगर प्रिया को नहीं बचा पाता तो अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाता। सोनल की मौत का बोझ तो उठा कर घूम ही रहा हूं, प्रिया का तो मैं झेल ही नहीं पाता।

आदिल- आयुष, जब सोनल का एक्सीडेंट हुआ था तब तू नहीं था वहां। इस बात को समझ भाई। और इस गिल्ट से बाहर निकल। ज़िंदगी हर किसी को एक दूसरा मौका ज़रुर देती है। तुझे भी दिया है। 

तभी गौरव का फोन आता है।

गौरव- सर प्रिया को होश आ गया। 

आयुष- ( एक गहरी सांस भरते हुए) डॉक्टर मनोज को इंफोर्म करो। मैं आता हूं। आदिल, प्रिया को होश आ गया।‌

आदिल, आयुष को गले से लगा लेता है। 

आदिल- जा जाकर मिल ले।

तभी नर्स आकर आयुष को वॉर्ड में आए एक एमरजेंसी केस के बारे में बताती है।

आयुष- (आदिल की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोला) प्रिया से बाद में मिलूंगा। पहले वॉर्ड की एमरजेंसी को देख लूं। लाइफ की एमरजेंसी को इंतज़ार करना पड़ेगा।


उधर आई. सी. यू में मिस्टर कपूर, जया, नेहा और कमला ताई प्रिया के पास खड़े थे। डॉक्टर मनोज उसका चैक अप कर रहे थे। 

डॉक्टर मनोज- डॉक्टर कपूर, अब आप बिल्कुल ठीक हैं।‌बस कुछ टैस्ट करने हैं। 

प्रिया- सर, थैंक्स ए लॉट फॉर सेविंग माई लाइफ। 

डॉक्टर मनोज- डॉक्टर कपूर, थैंक्स कहना है तो आयुष का करिए। उसने ही ऑपरेट किया है आपको। पर मैंने उसको कभी भी इतना नर्वस नहीं देखा जितना वह आज था।‌‌ पर उसने कर दिखाया। 

यह सुन प्रिया की आंखें नम हो गईं। वह आयुष को ढूंढ रही थी। पर आयुष कहीं नज़र नहीं आ रहा था। 

सारा दिन बीत गया पर आयुष प्रिया से मिलने नहीं आ पाया। प्रिया जानती थी कि वह ज़रुर किसी एमरजेंसी केस को हेंडल कर रहा होगा। 

रात को जब आयुष प्रिया से मिलने पहुंचा तो रूम के बाहर उसके माता-पिता और नेहा मौजूद थे। 

नेहा- डॉक्टर कुमार, कहां थे आप सारा दिन? 

आयुष- नेहा डॉक्टर की लाइफ़ ऐसी ही होती है। एक एमरजेंसी केस आया हुआ था। वही हेंडल कर रहा था। 

मिस्टर कपूर- आयुष, रिपोर्ट आईं?

आयुष- जी अंकल। आ गयीं। सब ठीक है। घबराने की कोई बात नहीं है। अंकल आप सब अब घर चले जाइए। वैसे भी आई.सी.यू के बाहर किसी को रुकने नहीं देते। आप घर जाएं और आराम करें। यहां प्रिया का ख्याल रखने के लिए बहुत डॉक्टर हैं। और फिर मैं भी यहीं हूं। ( नेहा की तरफ देख कर बोला) नेहा प्लीज़ अंकल - आंटी को ले जाएं। कल सुबह आ जाइएगा। 

जया ने प्रिया को खिड़की से झांक कर देखा। वह सो रही थी। जया की आंखों में आंसू भर आए। 

आयुष- ( जया को हल्के से गले से लगाते हुए बोला) आंटी, आप घबराइए मत। आपकी बेटी बहुत स्ट्रांग है। 

जया आयुष के गालों पर प्यार से हाथ फेरती है। फिर सब वहां से चले जाते हैं।


आयुष आई. सी. यू का दरवाज़ा खोल अंदर जाता है। प्रिया के आस पास बहुत सारी मशीनें लगी हैं।‌ आयुष सारी मशीनों पर एक नज़र मारता है। वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सब ठीक से काम कर रही हैं कि नहीं। फिर वह प्रिया के पास बैठ जाता है। काफी देर तक उसके हाथ को अपने हाथों में पकड़ कर बैठा रहता है। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। 

फिर वह धीरे से उसके हाथ को नीचे रखता है और जाने के लिए खड़ा होता है कि तभी प्रिया उसका हाथ पकड़ लेती है।

प्रिया- आज बिना डांटे ही जा रहें हैं? 

आयुष- (मुस्कुराते हुए उसके पास बैठ जाता है) डांटूगा क्यों?

प्रिया- गाड़ी देखकर चलानी चाहिए थी, आप बहुत लापरवाह हैं... वगेरह वगेरह। यह सब नहीं बोलेंगे। 

आयुष- ( प्रिया की आंखों में देखते हुए) आप बच गयीं यही सबसे बड़ी बात है। और मैं जानता हूं कि एक्सीडेंट में आपकी गलती नहीं थी। आप अपने सामने अचानक आए बच्चे को बचा रहीं थीं। 

प्रिया- डॉक्टर मनोज बता रहे थे कि आप आज ऑपरेशन के वक्त बहुत नर्वस थे। 

आयुष- ( प्रिया के हाथों को अपने हाथों में लेकर बोला) नर्वस नहीं था, डर गया था। आपको खो देने के ख्याल से डर गया था प्रिया। आज मैंने अपनी जिंदगी का सबसे मुश्किल ऑपरेशन किया है। क्योंकि आज मेरे सामने सिर्फ मरीज़ नहीं था बल्कि मेरी ज़िंदगी थी। अपनी ज़िंदगी को अपने हाथों खो देने का डर था। 

आयुष और प्रिया दोनों की आंखों से आंसू बह निकले। आज आयुष ने प्रिया को उसके प्रति अपनी भावनाओं को बहुत खूबसूरती से कह दिया। 

प्रिया उठ कर बैठना चाहती थी। आयुष ने उसके बेड को ऊपर उठा दिया और उसे आराम से बैठा दिया।

 प्रिया- आयुष, आज घर से निकलते वक्त सोच कर निकली थी कि आज आपसे वो सब कह दूंगी जो कब से मन में था। जब एक्सीडेंट हुआ तो बेहोश होने से पहले एक ही बात दिमाग में थी कि कहीं मेरे दिल की बात आज अधूरी ना रह जाए। ( प्रिया ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा) आयुष, क्या आप ज़िन्दगी के इस सफर में मेरे साथ चलना पसंद करेंगे?

जिस खूबसूरती से आयुष ने अपने दिल की बात को बयान किया था उतनी ही खूबसूरती से प्रिया ने भी किया।

आयुष ने प्रिया के हाथों को अपने हाथों में ले लिया। कुछ पल प्रिया को देखता रहा। 

आयुष- प्रिया, मेरी ज़िंदगी की इन खामोश राहों में अगर तुम्हारा साथ मिल जाए तो मुझसे ज़्यादा खुशनसीब कौन होगा। 

प्रिया आयुष के कंधों पर सिर रख कर बहुत देर तक बैठी रही। दोनों भले ही खामोश थे पर दोनों के दिल की धड़कनें एक दूसरे से बात कर रहीं थीं। 

आयुष- प्रिया अब आराम करो। जितना आराम करोगी उतना जल्दी ठीक होगी। 

आयुष प्रिया को लेटा कर बाहर आ गया। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी। दिल की धड़कन अभी भी बहुत तेज़ थी। और वो उसे नॉर्मल करना भी नहीं चाहता था। 

एक हफ्ते में प्रिया को आई.सी. यू. से रूम में शिफ्ट कर दिया। अब बाकी सब इंटर्नस जब भी फ्री होते वह प्रिया से मिलकर आ जाते। 

आयुष ज़्यादातर रात को ही प्रिया से मिल पाता था। वह काफी देर तक उसके साथ बैठता। उसे पूरे दिन का हाल-चाल सुनाता। नये और पुराने सभी मरीजों की सारी डिटेल्स उसे देता। फिर एक दिन उसने वीडियो कॉल कर आश्रम के सब बच्चों से उसकी बात कराई।

परी- प्रिया दीदी आप ठीक हो जाओ। हम सब मिलकर पार्टी करेंगे। 

प्रिया- बिल्कुल मेरी नन्ही परी। ज़रुर करेंगे। 

श्रीधर बाबा- प्रिया बेटा, आयुष तुम्हें पूरा समय दे रहा है ना? अगर ना दे तो मुझे बताना। इसके कान खींच दूंगा।

आयुष- (हंसते हुए) क्या बाबा, देखें, दे तो रहा हूं समय।

बाबा- तुम दोनों हमेशा खुश रहो मेरे बच्चों। 

यह कह वह कॉल बंद कर देते हैं।

लगभग महीने भर में प्रिया बिल्कुल ठीक हो जाती है।‌ और‌ हॉस्पिटल फिर से जॉइन कर लेती है। 

वैसे तो डॉक्टर्स की लाइफ़ में आराम और फुर्सत के पल कम ही होते हैं। पर आयुष और प्रिया को जो भी समय मिलता वह एक साथ गुजारते। दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझने लगे थे। पर प्रिया को हमेशा आयुष से एक शिकायत रहती थी कि आयुष ने उसे कभी सही से ऑफिशियली प्रपोज नहीं किया।

आयुष- ( आयुष प्रिया को बाहों में भरकर बोला) अरे! ये क्या बात हुई? ऑफिशियल क्या होता है? हम - तुम जानते हैं एक-दूसरे की मन की बात। बस बहुत है। 

प्रिया- जतिन से सीखिए कुछ। घुटनों पर बैठके‌ , हाथ में गुलाब का फूल लेकर प्रपोज किया था नेहा को। 

आयुष- जतिन के दिमाग में ही आते हैं ऐसे खुराफाती आइडिया। मुझे यह सब नहीं आता।

प्रिया- ( गुस्से में जाती हुई बोली) गुड़ बॉय, डॉक्टर कुमार। आप बहुत खराब हैं। 

आयुष हंसते हुए उसे देखता है। फिर कुछ सोच कर आदिल को फोन करता है।और उसे कुछ समझाता है।

आयुष- देख, कुछ गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। एकदम परफेक्ट होना चाहिए सब।

आदिल- मैं आज ही जाकर सब अरेंजमेंट कर देता हूं। एक गुड़ न्यूज़ है। तेरी भाभी आ रही है इंडिया। अब देवर-भाभी बैठ कर करना मेरी बुराइयां।

आयुष- देखा मैं बुलाऊं और भाभी ना आए । ऐसा हो सकता है कभी। 

आदिल- हां, मेरी आज़ादी तुझसे देखी नहीं जाती।

आयुष- ( ज़ोर से हंसते हुए) कैसे देख सकता हूं। पिछले एक महीने से खुला घूम रहा है तू। तुझे बांधने के लिए भाभी का होना जरूरी है।

आदिल- तेरे जैसे दोस्त हों तो दुश्मनों की ज़रूरत किसे है। 

आयुष- (हंसते हुए) चल, रखता हूं। तू सही से काम कर देना।

फिर आयुष जतिन को फोन करता है और कुछ समझाता है। 

आयुष- गड़बड़ मत करना वरना इतना पिटेगा कि नेहा शादी से इंकार कर देगी। 

जतिन- सर, इतना गुस्सा? मैंने क्या बिगाड़ा आपका?

आयुष- भाई मेरे, तेरी वजह से ही तो ये सब करना पड़ रहा है। क्या ज़रूरत थी तुझे नेहा को घुटनों के बल बैठ कर प्रपोज करने की। प्रिया मुझ पर भड़क उठी। इसलिए कुछ भी गड़बड़ मत करना। और नेहा को भी साथ ले आना। 

जतिन- येस बॉस।

अब आयुष को इंतज़ार था अगले दिन का। वह उस दिन को प्रिया की ज़िंदगी कि सबसे यादगार दिन बनाना चाहता था।

क्रमशः
आस्था सिंघल


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चले ना ज़ोर इश्क पे (एक छोटी सी प्रेम-कहानी)
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प्यार - हमारे जीवन का अस्तित्व है। यह एक एहसास है जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। सच्चा प्यार वहीं होता है जो अच्छे - बुरे सभी हालातों में हमारा साथ दे। प्यार इंसान को बदल देता है। उसके अंदर एक निर्मल और स्वच्छ भाव पैदा करता है। दुनिया में लोगों ने कितनी नफरतों को प्यार से जीत लिया। तो नफरत प्यार के आगे हमेशा हार जाती है? शायद! पर क्या हमारे दिल में किसी के लिए इतनी नफ़रत हो सकती है कि किसी का प्यार हमें दिखाई ही ना दे? क्या नफ़रत में इतनी ताकत है कि वह सच्चे प्यार को हरा सके। ऐसी ही एक कहानी है आयुष और प्रिया की। आयुष के दिल में बसी नफ़रत को प्रिया के निश्छल प्रेम ने हराया ज़रूर पर क्या ख़त्म कर पाई? ऐसा क्या हुआ कि आयुष की नफ़रत प्रिया के मासूम प्यार पर भारी पड़ गई।
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चले ना ज़ोर इश्क पे!! भाग 20 (आखिरी भाग)

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